कपिलवस्तुहे चिठ्ठी

सागर कुश्मी “संगत”
३ जेष्ठ २०७८, सोमबार
कपिलवस्तुहे चिठ्ठी

ढेर ढेर सम्झना ओ डन्डुर डन्डुर मैया बा कैलालीक् तरफसे । आधा बरस होगैल कुछ हाल खबर नै पठैले हुइटो । कहाँ हेरा गैलो कि कहोंरो व्यस्त बटो कि ?

हुइना टे हो नि का, समय परिवर्तनशिल बा । दुनिया, समाज, मनै, बहुत परिवर्तन होसेक्ले बटाँ । लेकिन समय परिवर्तन संगे चल्ना स्वभाविक हो तर अपन सबचिज भुलाके अपन अलग्गे दुनियामे फुरफुरैना महि अच्छा नै लागाठ ।

महि किल नाही टुँ फेन टे हाठेम् हाठ मिलाके, बातेम बात मिलाके, हाँ मे हाँ हामि भरके ऊ दिन पक्का बात ओ बाचा कैले रहो । लेकिन आझ टुँ इ दुनियामे काहे फरक हुइटी जाइटो ? हमार समाजके संस्कृति भित्तर विकृति काहे लानटो ? मै बुझे नै सक्ठु । मै ढेर बात नै कहम् ।

आझ टुहिन हे अप्नही सोचे पर्ना बा । कि कपिलवस्तु मे हमार थारु भाषा, कला संस्कृति, साहित्य, गीतबाँस जोगैना टोहार फेन टे जिम्मा हो । हम्रे मानव प्राणी होके मानवताके गुण डेखाई परठ, दानवताके नाही ।

असल मित्रके पहिचान डेहम कैह्के तौलेश्वरनाथ बाबासे बाचा कसम खैलक् आझ आके सब बिस्रा गैलो । मै टुहिन हे कौनो विपरित लजर हेरल नै हो । कपिलवस्तु जिल्ला मे थारु भाषी साहित्यकार शुन्य रहल डेख्के मोर मन बहुत कुलबुलाइट कि यी ठाउँमे थारु साहित्य मे लावा युवा लोगन हे कैसिक सक्रिय बनाई सेक्जाई ? यी मोर मनके चिन्तनके विषय बनल बा ।

जब जब मै कपिलवस्तु अइठु तब तब मोर मन मष्टिस्क मे इहे बात खेल्ती रहठ । अपन काम, दाम, घर, परिवार छोरके भुखे पियासे बाहेर किही बैठना मन रही । अब्बा हम्रे जैसिन युवा लोग अइना पिढी हे ओ लावा युवा लोगन हे जागरुक नै बनाइ सेकब कलेसे पाछेक् पुस्ता जरुर हम्रहिनहे धिक्करहीं ।

हमार गाउँ ठाउँमे आझकल बहुत थारु लोक साहित्य गीतबाँस, नाचकोर, कला संस्कृति, दिन दिने हेरैती जाइताँ । इहि संरक्षण कैना हमार दायित्व ओ कर्तव्य हो । आपन संस्कृति पर मैया सब जहन के लगना चाहि कहना मोर अग्रह बा ।

आब तुहिन हे मौलार, भोग्लार हुइना समय आइल बा । टोहार जिल्ला मे एक्थो किल थारु भाषाक् साप्ताहिक पत्रिकाबुद्धसनेस प्रकाशित हुइटी बा । बुद्ध सनेस हे निरन्तरता डेना टोहार फेन बहुत भारी जिम्मेवारी हो । सँगसँगे आपन साहित्यिक यात्रा ओ पत्रकारिता क्षेत्र बल्गर, डल्गर बनैना टोहार फेन हाठ डर्ना जरुरी बा ।

मै एक घचिक् कैलालीक् बात जोरे जाइटु हम्रे कैलालीम् फेन हरेक महिनक् अन्तिम शनिच्चर के रोज साहित्य कार्यक्रम कैठी । आझकल ऊ कार्यक्रममे तीन दर्जन से उपरे साहित्यकारन् के सहभागीता रहठ । संघरियन्के सहभागीता डेख्के लागठ टे आब कैलालीमे थारु भाषक्, साहित्यिक माहुल जम्कल बा । उहे प्रभाव आब यी पंक्तिकार कपिलवस्तु जिल्लामे फेन सर्ना सोंच लेके यहाँसम छिरलक् हो ।

यदि सेक्बो कलेसे टुँ फेन महिन जरुर साथ डेबो कहना मोर अस्रा बा । कपिलवस्तु हे साहित्यक चहल पहल किल नाही थारु साहित्यमे हिलाके जैना बा । मुरझुराइल, नुकल, छुकल, निडाइल श्रष्टा लोगन उठैना बा जगैना बा ।

प्यारी कपिलवस्तु मैंया प्यार के बात सँगसँगे आब हम्रे थारु पहिचान फेन खोज्ना जरुरी बा । यी मनैन् के जिन्गीमे कुछ करके जाइक परठ् कहना मोर मान्यता हो । अस्ते अस्ते विचार चिन्तान मनन् कैना टोहार फेन जिम्मेवारी हो । मोर अनुरोध बा आझ टुँ गहिर से एक्चो बिचार करो ना ।

मै ढेर नै बोलम् काहेकी महिन लागठ् टोहार ठन ढेर बात सुन्ना समय नै हुई फिरभी आझ दुई चार बात सुन डेह्लो, पर्ह्डेलो यी मोर लग भारी उपलब्धी हो कैह्के मै महसुस कैले बटुँ ।

मोर लजरसे दिन दिने बिलिन ना होउ । हाली से हाली सम्पर्क मे आके मोर कहाइ हे निरन्तरता डेउ । कपिलवस्तु हे फेन थारु साहित्यक नमुना क्षेत्र बनाऊ । जस्ते कि यहाँ गौतम बुद्ध के नमुना क्षेत्र मान जाइठ । यहाँक् ताल तलैया, बनवा, पखवा, हावा पानी, जल जमिन, प्राकृतिक स्रोत के उत्थान कैना जरुरी बा । थारु साहित्यक विधा मे यी चिज के दस्ताबेजीकरण कैना जरुरी बा । हमार समग्र थारुन के इतिहास कोरना जरुरी बा ।

कपिलवस्तुहे चिठ्ठी

सागर कुश्मी “संगत”