इ भगनवाँफें कैसिन तक्दिर डेहल

सागर कुस्मी
५ असार २०८०, मंगलवार
इ भगनवाँफें कैसिन तक्दिर डेहल

गजल ४६
घाम पानीसे झरल जिनगी मोर ।
भुँख प्याससे जरल जिनगी मोर ।

विचार कर्बी समस्या हरदम आइठ,
टबमारे खोल्टम गरल जिनगी मोर ।

प्रयास कर्नु हरबखत उम्कक लाग,
टभुनफें ढल परल जिनगी मोर ।

सबके फुललिन झिमिरमिकिर,
मनो कब्बु नै फरल जिनगी मोर ।

इ भगनवाँफें कैसिन तक्दिर डेहल,
दुखेदुखसे इ भरल जिनगी मोर ।
सागर कुस्मी

इ भगनवाँफें कैसिन तक्दिर डेहल

सागर कुस्मी