मोर बुर्हिया अकेली बियार काटट हुइहीं

दिपक चौधरी
९ असार २०८०, शनिबार
मोर बुर्हिया अकेली बियार काटट हुइहीं

गजल
मोर बुर्हिया अकेली बियार काटट हुइहीं ।
समझ समझके राटभर भर जागट हुइहीं ।

मै आइ नैसेक्नु प्रदेशमे रहिके यहाँ,
सक्कारे भाँरा मिस्टि मोर डग्रा हेरट हुइहीं ।

फाटल छट्रि टुटल मचियामे बैठल अकेली,
सजना मैना गाके अपन मन बुझाइट हुइहीं ।

बर्खाहा हिलामाटिमे सरल हाँठगोर अपन,
औकर्निक् आगि फुंक्टि ढुँवम् सेंकट हुइहीं ।

अकेली चरचरव्वा घामेम बियार लगैटि उ,
मै प्रदेशी संग लग्वाहे मनमे सोंचट हुइहीं ।

अउरे साल जारघाम पटा नैचले उ रहिट टे,
असौं घाम लागट कह्टि पस्ना पोंछट हुइहीं ।

दिपक चौधरी “असीम”
कैलारी २ बसौटी, कैलाली

मोर बुर्हिया अकेली बियार काटट हुइहीं

दिपक चौधरी