सुदूरपश्चिमके एक फन्का

प्रेम चौधरी
३० जेष्ठ २०७८, आईतवार
सुदूरपश्चिमके एक फन्का



२०७२ साल फागुन महिनाके टिसरा हप्ता । कैलाली बहुमुखी क्याम्पसमे आम सञ्चार तथा पत्रकारिता विषय टिसरा वरषमे अध्ययनरत हम्रे १२ जने अछाम, डोटी ओ डडेल्धुराके भ्रमणके लाग जइना निर्णय करली । भ्रमणके प्रमुख रूपमे दुई उद्देश्य रहे– क) अछाममे रहल रेडियो सोसाइटी एफएममे विज्ञापनके अवस्थाबारे अध्ययन, अनुसन्धान ओ ख) सुदूरपश्चिमके पर्यटन स्थलके भ्रमण । यी अनुसन्धान आम सञ्चार तथा पत्रकारिता विषय टिसरा वर्ष अन्तर्गत ‘विज्ञापन, जनसम्पर्क ओ मिडियाके मुद्दा’ विषयके प्रयोगात्मक सत्र रहे । हम्रे २०७२ फागुन २३ गते अछामके सदरमुकाम मंगलसेन पुग्ली ।

रेडियो सोसाइटी एफएम, अछाम
सामुदायिक सञ्चार अभियान, नेपालसे सञ्चालित रेडियो सोसाइटी एफएम ८९ मेगाहर्ज सुदूरपश्चिमके पहिल म्यागेजिन रेडियो स्टेशन हो । अछाम जिल्लाके सदरमुकाम मंगलसेनमे स्टेशन रहल यी रेडियोके प्रसारण क्षमता १०० वाट के बा । यी रेडियो के अछाम, डोटी, डडेल्धुरा, बाजुरा, बैतडी, दार्चुला, बझाङ, कैलाली, सुर्खेत, कालीकोट, हुम्लालगायत जिल्लामे पहुँच रहल सञ्चालक हुक्रनके दावी बा । बिहान ४ः४५ बजेसे रातके ११ः१५ बजेसम प्रसारण हुइटी आइल रेडियो सोसाइटीके नारा बा– ‘अब एउटै सुने पुग्छ’ (आब एक्के सुन्लेसे पुगी) । ओ, सञ्चालक हुकनके दावी बा– ‘हमारसँग साढे ११ लाखसे धेर रेडियो स्रोता बटंै ।’

वैद्यनाथ धाम
औरे दिन अर्थात् फागुन २४ गते हम्रे मंगलसेनसे साँफेबगरमे सकारेके खाना खाइ पुग्ली । शिवरात्रीके दिन हुइल ओरसे हम्रे प्रशिद्ध वैद्यनाथ धाम जैना अठोट कर्ली । वैद्यनाथ धाम बुढीगंगा लदयक किनारमे अवस्थित फँट्वामे बा । नेपालके पाशुवत क्षेत्र, बराह क्षेत्र, मुक्तिनाथ क्षेत्र ओ वैद्यनाथ क्षेत्रहे चार धाम मानजाइथ् ।

साँफेबगरसे लगभग एक घण्टाके पैदल यात्रा पश्चात वैद्यनाथ धाम पुग्जाइठ् । डगरमे जाइबेर लुंग्रा गाविसके स्थानीय वैद्यनाथमे चह्राइक् लाग पञ्चैबाजासहित परगलो (कच्चे बाँसके भट्ठामे ध्वजापताका बाँध्के बाजागाजासहित नन्ना) नन्ती रहै । पुरै बाँसके रुखवा हुइल ठाह्र पारके नानेक परलओरसे ओइने परगलो बोक्न हम्मेहम्मे पर्टि रहिन् ।

वैद्यनाथ धाममे विक्रम संवत २०५९ सालमे यज्ञशाला संस्कृतिक पर्यटनसे भोज मण्डप निर्माण करल बा । वैद्यनाथमे सिद्ध गोरखनाथ, स्वामी कार्तिकेय, सिद्ध मण्डपनाथ, जगतमाता पार्वती लगायतके मन्दिर निर्माण करल बा ।

करिब तीन सय वरष आघे वैद्यनाथ मन्दिर अब्बेक स्थानसे उप्पर श्रीकोटमे रहल स्थानीय बटैैठैं । बाढपहिरोसे श्रीकोटमे क्षति पुगलपाछे मन्दिरहे वैद्यनाथमे सारल वैद्यनाथ क्षेत्र विकास समितिके लिखतमे उल्लेख बा । बाढके कारण श्रीकोटमे रहल मन्दिर ओ शिवलिङ्ग वैद्यनाथमे फेला परलपाछे स्थानीय उहे स्थानमे पूजाआजा सुरु करल लोकोक्ति बा । विक्रम सम्वत् १९८६ सालमे साँफेबगर लग्गे बुढीगंगामे किल्ना छिपे खोलामे आइल बिनासकारी बाढ वैद्यनाथ क्षेत्रके प्रायः सक्कु संरचना पुहाइलमे शिवलिङ्ग भर यथावत रहल पाछे वहाँ फेर मन्दिर स्थापना करके पूजाआजा जारी रहल बताजाइठ् ।

विसं १८५२ साल भदौमे नेपालके तत्कालीन राजा रणबहादुर शाह वैद्यनाथ क्षेत्रके तीन गाउँ ओ नौ खेत जग्गामे लालमोहर लगाके राजगुठी घोषणा करल वैद्यनाथ क्षेत्र विकास संस्थाके अभिलेखमे उल्लेख बा । ओस्तेके, विसं १८८० ओर तत्कालीन राजा राजेन्द्रबिक्रम शाह काठमाडौंसे कालीगढ पठाके अछामके चौतरिया पुष्कर शाहके अगुवाईमे वैद्यनाथमे भव्य मन्दिर निर्माण करल पाजाइठ् ।

‘नौमुठे’ गाई (गैया)
अछाम नौमुठे गाई (गैया) पैना नेपालके एकठो किल जिल्ला हो । नौमुठे गैयाहे अछामी गाई फेन महिजाइठ् । यी गैयाके आकार सामान्य गैयासे बहुत कम रहठ् । आघेक् गोरसे जुर्राके
भागसमके उचाई मनैन्के हातके मुट्ठीसे मापन कैलेसे नौ मुठा हुइलेक् ओरसे यिही नौ मुठी या नौमुठे गाई कहल हो । न्यूनतम तापक्रम ५ डिग्री सेल्सियससे अधिकतम ८० डिग्री सेल्सियस तापक्रममे बाँचे सेक्ना यी गैयाके औसत तौल एक सय ५० किलोग्राम ओ साढें (बर्दा) के औसत तौल एक सय ६० किलो रहल स्थानीयके कहाई बा । यी विश्वके सबसे छोट प्रजातिके गैया मानल मानजाइठ् । जिल्ला पशुसेवा कार्यालय, अछामके तथ्यांकानुसार नौमुठे गाईके संख्या चार सय ४७ किल रहल बा ।

वैद्यनाथके दर्शनसँगे झिसमिसेमे बुढीगंगा लदयामे निर्मित आकर्षक झोलूंगेपूल ओ लग्गे रहल परम्परागत पानी घट्टके अवलोकन करली । अछामके दुई दिनके छोट बसाई पाछे हम्रे औरे सकारे (२५ गते) सुदूरपश्चिमके नौठो भगवतीमध्ये डोटीके शैलेश्वरी माताके दर्शनके लाग जइना पक्का करती साँफे फिर्ता अइली ।

शैलेश्वरी भगवती मन्दिर
डोटीके सदरमुकाम सिलगडीमे रहल शैलेश्वरी भगवती मन्दिरके मुलद्वारमे एकठो सुन्दर पंक्तिमे दृष्टि परल– ‘रिस बुद्धिहे खादेहठ, घुस न्यायहे, लोभ इमानहे ओ चिन्ता उमेरहे खादेहठ ।’ आकर्षक कलासे निर्मित शैलेश्वरी मन्दिर रुद्राक्षके माला ओ शेषनागसे घेरल बा । शैलेश्वरी विकास समिति मन्दिरके व्यवस्थापन करती बा । यहाँ ज्ञान मण्डप, सिद्धि मण्डप ओ मुक्ति मण्डप बटंै । शैलेश्वरीके मूर्ति सबजे हेरे नैमिलठ् । शैलेश्वरीहे गुप्त भगवती मानजाइठ् । सुदूरपश्चिमके तान्त्रिक विधिसे स्थापित भगवतीके प्रशिद्ध मन्दिरमध्येके एक मानजाइठ्, शैलेश्वरी मन्दिरहे । बाजुराके बडिमालिका, अछामके बरदादेवी, डडेल्धुराके उग्रतारा, बैतडीके त्रिपुरासुन्दरी, मेलौली ओ निंगालासैनी तथा बझाङके सुर्मादेवीसँगे शैलेश्वरी भगवती मन्दिर यहाँके प्रशिद्ध शक्तिपीठ मानजाइठ् ।

विसं १९१६ सालमे काठमाडौं असन न्हैकन्तला तुम्बहालके गुजेंनारायण राजभण्डारी (श्रेष्ठ) सिलगढी बसाईसराई करल शैलेश्वरी मन्दिरके मूलद्वारमे सिंहके जोडी ओ मन्दिरके छाना निर्माण करल साथे एक सय आठ घण्टी चढाइल शिलालेखमे उल्लेख बा । ऊ सिंह ओ घण्टी जीर्ण हुइलपाछे हुकन सन्ततीसे २०५७ साल बैशाखमे ढलौटके नयाँ जोडी सिंह ओ घण्टी ढारल २०५९ साल माघ महिनाके १२ औं लक्ष्यहोमके उपलक्ष्यमे मन्दिरके उप्पर तला ओ तरेक तला वारपार तामाके झलर बनाके चढाइल मन्दिरमे रहल शिलालेखमे उल्लेख बा ।

शैलेश्वरीमे देवीके नित्य पूजा सिलगाउँके भट्ट ब्राह्मणसे करजाइठ् । प्रत्येक वर्ष जेठ ओ कात्तिक पूर्णिमाके दिन लक्ष्यवहन महायज्ञ परम्परागत रूपमे प्राचीन कालसे हुइटी आइल बा । भगवान शिव ओ माता पार्वती भोजपश्चात मधुचण्डिकाके लाग डोटी जिल्लामे अवस्थित रमणीय चन्द्रागिरी पर्वतहे रोजले रहिट् । ब्रम्हा, विष्णु लगायतके देवता भगवान शिवके खोजी करती यहाँ आईलपाछे माता पार्वती देवताहे देखके लज्जास्वरूप शिला बनल हुइल बोला से यिही शिलादेवी अर्थात् शैलेश्वरी देवी नामाकरण रहल लोकमान्यता बा ।

उग्रतारा माताके दरबार
भ्रमणके अन्तिम दिन फागुन २६ गते सुदूरपश्चिमके नौठो भगवतीमध्ये डडेल्धुराके उग्रतारा माताके दरबारके दर्शन करली । उग्रतारा माताके महिमा गानके कुछ अंश अइसिन बा–
‘तारा काली भैरवी, तिम्रो रूप अति,
सम्झ्यो जसले एक, दिन्छिन् राम्रो मति,
तिम्रो महिमा गाउन, कस्ले सक्छ यहाँ,
नाम मात्र जसले दिन्छ, पुग्छ शिवापुरीमा । जय माँ उग्रतारा ।’
अर्थात्,
‘तारा काली भैरवी, तोहान रूप असिन,
सम्झे जो एक, देठैं मजा मति,
तोहान महिमा गाइ, के सेकि यहाँ,
नाम किल जे दिई, पुगी शिवापुरी । जय माँ उग्रतारा ।’
मन्दिरके परिसरमे मूर्तिक सम्मान स्वरूप ‘मूर्तिमे अंकमाल करके फोटो लेलेसे पाप लागि । काहेकि जत्ना मूर्ति बा सब पूज्यनीय हो’ कना उल्लेख करल बा । उग्रतारा मन्दिर सुदूरपश्चिमके भारी शक्तिपीठ तथा ३३ कोटी देवताके धाम फेन मानजाइठ् । यी मन्दिर डडेल्धुराके सदरमुकाम खलंगासे चार किलोमिटर पश्चिमउत्तरओर बा ।

डडेल्धुराके अमरगढी नगरपालिका बागबजारसे करिब ६ किलोमिटर डडेल्धुरा–बैतडी राजमार्गके पश्चिम ओर उच्च विशाल तथा रमणीय फाँट्वा देहिमाडौंमे माता उग्रतारा देवीके वासस्थान बा ।

उग्रतारा मन्दिरके विषयमे टमान मत रहल बा । ग्रामीण महिला विकास तथा एकता केन्द्रके सौजन्यमे उग्रतारा क्षेत्र विकास समिति डडेल्धुरासे प्रकाशित करल ‘उग्रताराके एक झलक’ नामक पुस्तिकामे उल्लेखानुसार– दशमहाविद्वारमे वर्णनानुसार अक्ष्योम्य पुरुष ओ ओकर महाशक्ति उग्रतारा रहल वर्णन पाजाइठ् । हिरण्यगर्भ विद्याके अनुसार निगमशास्त्रमे सक्कु विश्व रचनाके आधार सूर्यहे मनले बा । सौर्यमण्डल आग्नेय हुइट् हिरण्य गर्भके लाग अग्नि जबफेन हिरण्यतामे एक शक्ति बा, ओहे नाउ हो तारा उहीहे उग्रतारा कठंै । ऊ शक्तिहे समन करेक् लाग सूर्यके उग्ररूप ताराके प्रादूर्भाव हुइल अति उग्ररूप ताराहे साम्य हरन अग्नाहुती देनै । ऊबेला अग्नाहुती नईदेलेसे सूर्यशक्ति महाउग्र हुइट ओ सक्कु संसार प्रलय हुजाइट् । ओहे शक्ति उग्रताराके नाउसे प्रशिद्ध हुइनंै ।

उग्रतारा मन्दिरके उत्पत्ति सम्बन्धमे प्रमाणिक आधारमे कौनो शीलालेख फेला नैपरल हो । उग्रताराके एक झलक पुस्तिकामे उल्लेख हुइलानुसार– धेर वरष उग्रतारा भगवती रहल स्थान लग्गे लटाउली गाउँमे साकी जातिके बसोबास रहे । जोन उहाँक् हाल रहलके भू–बनोट फेन स्प्रष्ट पारठ् । उग्रतारा मन्दिर वरपर ओहे लटाउलीके साकी जाति कृषि काम करैं । एक दिन एकजाने किसान हर(हलो) जोत्तिबेलामे हरके फाह्र शीलामे गरके शीलामेसे निरन्तर रगतके धारा बहलकरल । किसान रगत रोकेक् लाग अनेक प्रयत्न करलेसेफेन नै रुकल् । रगतके खोल्ह्वा(खोला) बहन शुरु होगिल । हाल फेन यी खोल्ह्वा तलन्वा खोल्ह्वाके नामसे चिन्जाइठ् । यस्तेक् बहटी रहल रगत रोकेक लाग ऊ खाइक लाग नानल मासके खिचडी उहे शीलाके घाउमे लगाइल्पाछे रगत बहना बन्द हुइल् ।
तत्पश्चात ऊ शीलाहे सुरक्षित करके मन्दिर निर्माण करगिल् । ऊ किसान उहाँके पुजारी हुइनै ओ हुकान सन्तान पुजारी रहटी आइल उग्रतारा क्षेत्रके भित्तर नचनटुक्री कना ठाउँसे सिधै तरे उल्टा शरीर सुत्के करिब पाँच किलोमिटर तरे शैलेश्वर महादेव मन्दिर भित्तरके छोट झ्यालके भित्तर छिरके और परम्परागत काम करती वास्तविक गृहस्थ जीवन छोरके भगवतीके पूजामे रहेक पर्ना प्रचलन बा ।

औरे श्रुतीअनुसार– एक समय उग्रतारा माताके पुजारीके वृद्ध अवस्थासम फेन सन्तान नईहुइल ओ सन्तान पाउ कहिके आग्रह करलपाछे उग्रतारा मातासे पाछे दुःख पाइबो कना सन्देश आइल तभु ऊ सन्तानके ढिपी करल ओ ऊ छावा पाइल् । छावा भारी हुइलपाछे पुजारीक् सब घर व्यवहार छावा सम्हारे, तर एक वरष उग्रताराके मेला हुइना आघेक् दिन गाउँमे बहुत पाहुना अइनै (पाहुना अइना चलन अभिन फेन जारी बा ओ, आइल पाहुनाके सत्कार कर्ना ऊ गाउँके मनै आपन परमकर्तव्य सम्झठैं) आधा रातसम पाहुनाके सत्कारमे ऊ बृद्धके छावापतोहियाके समय बितल् ओ ऊ अवधिमे आपन कौनो वास्ता नैकरल ओरसे बृद्ध आक्रोसके साथ रातके उग्रतारा मन्दिरमे जाके पुकार करलै, ‘हजुरके दरबारसे प्राप्त छावा नष्ट होजाए,’ दोसर दिन मेलाके दिन ठिक १२ बजे हुकान छावाके मृत्यु हुइल किम्बदन्ती बा ।

अस्तेके, कात्तिक पूर्णिमे लग्ना प्रशिद्ध मेला देइजातमे प्राचीन कालमे गर्खागर्खासे लडाकु अपनअपन वीरताके साथ लडाई करके रगतके खोल्ह्वा बहल जोन् यहाँ न्वाखोलाके रूपमे नामकरण करल बा । कात्तिक शुक्ल पूर्णिमाके दिन जिल्ला भरसे किल नाइ औरे जिल्लासे मेला हेरे आइठैं । यी उग्रतारा मेलापाछे जुरार सुरु हुके हिउँद लग्ना हुइना ओ डडेल्धुरावासीके कृषि काममे फुर्सदके दिन आइठ् । खनमडा, छचोडा, दमडा ओ जिलोडामे भन्डार रहल उग्रतारा मन्दिरमे यिहे ठाउँसे देउरो आइठ् । यी मन्दिरमे देउरो आइल आघे चतुर्दशीके रात रत्यौली मनैना, मन्दिर पुग्न आघे लटाउली लगायत खनमडाट, जिलोडा ओ दमडामे साँस्कृतिक जात्रा करके देउरो उग्रतारामे लैजिना गौरवमय परम्परा रहल बा ।

उग्रतारा मन्दिरहे २०३८ सालमे पुनःनिर्माण हुइलेसे फेन बहुत कलाकृतिके अभावके कारण हाल उग्रतारा क्षेत्र विकास समितिके पहलमे नयाँ मन्दिर, कलात्मक मूर्ति से मन्दिर परिसर बहुत रमणीय बनल बा । उग्रतारामे प्रत्येक महिनाके आमावस्या (औंसी), पूर्णिमा, एकादशी, सोह्र श्राद्ध, साउन ओ माघ महिना ओ तिथिमे बलि चढाइ नैमिल्ना मुख्य पुजारी दयाकृष्ण भट्ट बतैलैं ।

अमरगढी किल्ला
भ्रमणके अन्तिम चरणमे फागुन २६ गते सुदूरपश्चिमके केन्द्रबिन्दुके रूपमे रहल करिब दुई सय २५ वरष पुरान अमरगढी किल्लाके अवलोकन करली । अमरगढी किल्ला विक्रमसम्वत १८४७ मे बडाकाजी अमरसिंह थापा स्थापना करले रहिट् । यी किल्ला नेपालके दुईठो किल्लामध्ये पूूर्वके सिन्धुलीगढी ओ पश्चिमके पूर्ण जिवित ओ आपन छुट्टे पहिचान रहल ऐतिहासिक, पौराणिक, धार्मिक ढुंगेकिल्लाके रूपमे अमरगढी किल्ला चिरपरिचित बा ।

२२ ठो ड्युटी पोष्ट ओ तीनठो तोप मर्ना पोष्ट रहल विशाल ढुंगेकिल्ला मासके गाह्रा ओ कठुवासे कलात्मक ढंगसे निर्मित बा । किल्लामे चार सय ५० मिटर गुप्तद्वार रहे हाल तीन सय मिटर ध्वस्त हुइल बा । अमरगढी किल्लासे पश्चिम गढुवालसम तोप मारे सक्ना जानकारओइने बतैठैं ।

यकर निर्माणके वृतान्त अइसिन बा– श्री ५ रणबहादुर शाहके शासनकाल तथा राजकुमार बहादुर शाहके नायवीमे सञ्चालित नेपाल एकीकरणके शिलसिलामे विक्रमसंम्वत १८४७ भदौ १३ गते अँटवारके दिन सेती लदयक् नारीदाङमे कप्तान रणवीर खत्रीके नेतृत्वमे आइल दश कम्पनीके गोर्खाली सैनिक ओ डोटेली सैनिकबीच घमसान युद्ध हुइल् । ऊ युद्धमे गोर्खाली फौजीके सामु डोटेली फौज पराजित हुइलपाछे डोटी राज्य फेन विशाल नेपाल अधिराज्यमे गाभगिल । बडाकाजी अमरसिंह थापा यी क्षेत्रके प्रथम प्रशासकके रूपमे नियुक्ति हुके अइनै । उहाँ यी क्षेत्रके संरक्षण तथा महाकाली उपार फेन विजय अभियानहे जारी राखेक लाग अमरगढी किल्लाके निर्माण करल इतिहास बा ।

यी विशाल किल्लाके कारण १८७३ के अंग्रेजसँगके लडाईमे महाकाली उपारके भू–भागके संरक्षण हुइल रहे । यी इतिहास से १८७४ पाछेक् नेपालके सार्वभौमिकतामे यी किल्लाके सामरिक महत्व फेन धेर रहल प्रष्ट हुइठ् । वडाकाजी अमरसिंह थापा किल्लाहे आधार शिविर बनाके नेपाल एकीकरणअन्तर्गत पश्चिम नेपालके विजय अभियान सञ्चालन करले रहिट् । अमरगढी किल्लाके नेपाली सेनाके टुकडीसे सुरक्षा करती आइल बा । (स्रोतः अमरगढी नगरपालिका कार्यालय, डडेल्धुरासे प्रकाशित अमरगढी किल्लाके एक झलक पुस्तिका)

२०५४ सालमे अमरगढी किल्लाके नामसे अमरगढी नगरपालिका घोषणा हुइल् । नगरपालिका स्थापना पाछे २०५६ सालमे नगरपालिका किल्लाहे आपन संरक्षणमे रख्ले बा ।

अन्त्यमे,
सुदूरपश्चिमहे सुदूर नई्, सुन्दर सुदूरपश्चिम कहि जाइठ् । ऊ ओस्टे कहल नाइहो । सुदूरपश्चिममे भौगोलिक आकर्षण, रमणीय छटा, मनमोहक धार्मिकस्थल बा टबमारे सुन्दर कहल हो । एकचो सुदूरपश्चिमके भ्रमण करी, ओ यहाँके सौन्दर्यपन के मजा ली । एकचो घुम्बी कलेसे अपनेफे जरुर मोहन्या जैबी ।

प्रेम चौधरी
धनगढी केैलाली

सुदूरपश्चिमके एक फन्का

प्रेम चौधरी

धनगढी केैलाली