गजल
कर्या दिनहे पांजरमे सार्के प्रदेश आइल बटुँ ।
डाइबाबाहे पिर महन पार्के प्रदेश आइल बटुँँ ।
परिस्थितिहे याद कैके मजदुुर शरिर बोक्के,
जिउके चाहाना ढार्के प्रदेश आइल बटँु ।
मिलठ् दुख बहुत घनिघनि आनेक देशमे,
झण्डा स्वदेशमे गार्के प्रदेश आइल बटुँ ।
काम बहुत खोज्नु मिल्बोे नैकरल हजुर,
आर्थिक स्थितिसे हांर्के प्रदेश आइल बटुँ ।
हमरहिन युवन काम नैमिलठ स्वदेशमे,
मनके रहर सब मार्के प्रदेश आइल बटुँ ।
नरेश चौधरी
बारबर्दीया–८ मगरागाडी बर्दिया