मोर कलम

अर्जुन थारु
२ असार २०७८, बुधबार
मोर कलम

कविता
मोर कलम

मोर कलम
महिनसे जवाफ खोजठ्
महिनसे मसिक महत्व खोजठ्
महिनसे अपन अर्थ खोजठ्
मै हरेक शब्दके अर्थ बुझाइ खोज्ठुँ
मने उ महिनसे
मोर जातके अर्थ खोजठ्
मोर पहिचानके अर्थ खोजठ्
ओ मोर अधिकारके अर्थ खोजठ् ।

मोर कलम हरेक पल
महिन साथ डेहठ्
मोर हठियार बनठ्
मोरसंग हरेक लराइ लरठ्
मनो मै उहिन प्रयोग किल करठुँ
महिन जिटाइ खोजठ्
मोर कलम हरेक समस्यक्
समाधान कर्ना कोसिस करठ्
मसिक बलिदान डेहठ् ।

मै बेबुझ
अपन कलमके अर्थ बुझे नाइ सेक्नु
कि इ समाज मोर कलमके
लिखाई नाइ बुझे सेकल
मै जब फेर
अपन जातके
अपन समाजके
ओ अपन रिटभाँटके
बारेमन लिख्नु
सादा पन्ना हिन रंगिन बनैनु ।

मनो मोर कलम महिनसे
फेर जवाफ खोजल
टोर इ लिखाइ के पर्हडी
टोर इ रंगीन पन्नक् बास्तबिक के बुझडी
टैं काँपिक पन्नाहिन रंगिन बनैले
महिन प्रयोग कैले
बरु सेक्बे कलेसे
सरकारसे अपन पहिचान खोज
अपन जातके आवाज उठा
मै ज्या लिख्नु उ नाइ पैनु
टैं ज्या खोज्ले उ नाइ पैले
बरु समाजहिन चेतनशील बना
समाजहिन मोर लिखल
शब्दके अर्थ बटा
रंगीन पानक् माग पुरा करा
टब जाके टुहिन
अधिकार मिली ओ पहिचान मिली ।

अर्जुन थारु
बारबर्दिया नगरपालीका-५ बनघुस्री बर्दिया
हाल-मलेशिया

मोर कलम

अर्जुन थारु