विस्वासघात

सागर कुस्मी
३ असार २०७८, बिहीबार
विस्वासघात

ढेर पैसा कमाके अपन घर परिवार हे खुसी से जिन्दगी बिटैम कहिके रमेश मलेसिया गैल रहठ् ।
बिदेशमे नेंट के मजा सुबिढा हुइलेक ओर्से रमेश रात दिन नेंट मे झुलल रहठ । बठिनियन् संघरिया बनैना चौबिसो घन्टा गफ कर्ना रमेशके बानी दिन दिने बडल्टी गैलिस ।


रोज दिन रन्जु से बाट कर्टी कर्टी मैयाँ बाझ जैठिन बिना किहु डेखल । एहोर रन्जु अपन घरक मनैन् भोजक् टाम्झाम करे कहठ् ।
रमेश बिना बटैले घरे आके डोसर लौडी प्रमिलाहे भगाके सेंडुर डारसेक्ले रेहे । रन्जु हे जुन कुछ पटा नै रहिस ।


रन्जु जब राजापुर बजारम् अपन भोजहा सामान किने गैल टे रमेश ओ प्रमिला संगे हाँठ जोरके नेंगठ डेखठ् । टब पटा चलठ् कि बिना डेखल बिस्वास कर्बो टे इहे हाल हुइठ् कहिके ।

सागर कुस्मी 

विस्वासघात

सागर कुस्मी