हरबड्डा

लहुराम चोधरी
६ असार २०७८, आईतवार
हरबड्डा

लघुकथा
हरबड्डा
अपन जिउँक् मैयाँ टो सखुन रहठ । चाहे चिरैचुरुंगी रहैं या जनावर रहैं । एक डोसरसे कि टो मैँयाँ कि टो डुस्मनी रठिन रठिन । ढेर डिनके बाड बनबिलरा अहरा खोज्टी खोज्टी खैरिन्हियाँ बन्वाँओर पुगठ । कैसिक हेरठ् खैरूक रुख्वम् कुटरियाहे डेख लेहठ ओ मनमनमे सोचठ । अझ कुटरिया मोर अहरा बनी । बनबिलरा ढिरेढिरे रुख्वामे चर्हे लागठ कि कुटरिया भुर्रसे उरठ ओ कहठ । वाह वाह बनबिलरा, मोरपर टिर, खैबे गुहक् खिर । सुनके बनबिलराहे बरा रिस लग्ठिस् । मुह फोरके कहठ् रुक कुटरिया, आझ राटके बटैम् टुहिन छोरबे नैकरम्, खाके छोरम् । डुनहुनके हरबड्डा होजैठिन् ।

साँन्झके झोल्पट होजाइठ, बनबिलरा ढुकैया लागल रहठ । डरा डरा कुटरिया अपन ठाँठमे बास लेहे आइठ । एक्के घचिक निंडा जाइठ । निंडैटीकिल कुटरियक् गाँर सुटपुटरो सुटपुटरो बोले लग्ठिस् । कुटरिया अभिन जागल बा कहिके बनबिलरा ढुकैया लग्ले रहिजाइठ । अढ्ढा राट कुटरियक् निंड पुग जैठिस् । गाँर बोल्ना बन्ड होजैठिस् । बनबिलरा सोचठ भरखे कुटरिया निंडाइल । रुखुवम् चहुँरठ् । कुटरियाहे पुगेपुगे करे लागठ कि कुटरिया ’डुस्मन’ कहटी भुर्रसे उरजाइठ । बनबिलराहे बरा रिस लग्ठिस् । रिसके मारे रुख्वक् उप्परसे कुड परठ । खटसे एकठो गोरा टुट्जैठिस् । टब बनबिलरा टुटल गोरा पकर्ले कहठ्–लेले कुटरिया हरबड्डा टहीं जिट्ले । हार मोरे हुइल ।
लहुराम चोधरी
भजनी–९ पहलवान कैलाली

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