गजल
इ जित हो कि हार बुझ नैसेक्नु ।
कि हो जिना आधार बुझ नैसेक्नु ।
मनैन् किन्ठ मनैन् बेच्ठ बजार म,
कलियुगके व्यापार बुझ नैसेक्नु ।
डाह्रि पकर्के खोब सोच्नु बहुट बेर,
के बनाइल पापी संसार बुझ नैसेक्नु ।
कबु ठकाइ मेटैना कबु चिन्टा हटैना,
काहे पिठैं डारु जाँर बुझ नैसेक्नु ।
धर्ति उहे, हावा उहे, उहे बा खैनापिना,
फरक बा सबके बिचार बुझ नैसेक्नु ।
अशोक चौधरी
पुनर्वास नगरपालिका–२ मोतिबस्ती कंचनपुर