गजल
थारुन भिन्सरहें खेट्वम जैठै बर्खा लागल बा ।
नारीन् भिन्सरहे भात रिझैठै बर्खा लागल बा ।
कलकल बिलबिल चारुवर खेट्वामे कर्टी,
बरे राहरंगीसे बियार लगैठै बर्खा लागल बा ।
हिल्ला किच्चा पानी संगसंगे बिट्ना डिन,
एक ओहर सजना गित उठैठंै बर्खा लागल बा ।
खलभल खलभल पानीम नेंगटी ढान लगैना,
साथमे मिठ बाट बट्वैठंै बर्खा लागल बा ।
टकटक आँहआँह कहटी लेवा हुइठुइ गोचा,
आउ हाली लगाडेहे बलैठैं बर्खा लागल बा ।
सुरज चौधरी
राजापुर,बर्दिया