बिरहुल बसिया

सुशील चौधरी
८ असार २०७८, मंगलवार
बिरहुल बसिया

बिरहुल बसिया


इतिहासके पन्नाम रकट पस्नाले लिखल्
बर्बरता ओ विभेद भरल
शब्द्म संगीत भर्क सिरुर्टी बा, आझ
म्वार विरहुल बसिया ।

अपन्हे अन्ढार कोन्ढ्वा मसे निकार्क
सभ्यताके गीत गाए सिखैलक्
उह नादन मर्दावनके
क्रुर बन्धनम बैठ्लक
जन्याओन्के झन्खन्
बिट्खोर्टी बा आझ
म्वार बिरहुल बसिया ।

मनै–मनै बीच समानताके
पर्दा भिट्टर
जातीय विभेदके मारम पर्क
टिच्कल मन ह
सढलैटी बा आझ
म्वार बिरहुल बसीया ।

भुमिपुत्र, मुल आदिवासी
जे बन्झर जमिनह गुल्जार पारल
उह, कालान्तरम दासताके जन्जीरम
लपेट्गिलक यथार्थ
खिट्खोर्टी बा आझ
म्वार बिरहुल बसिया ।

आपन भाषा, भेष ओ संस्कुतिम
रमाइल रंगविरगं फुलरिया म्वार देश
सांर्कतिक साम्राज्य ओ अपचलनले
घायल मोटहन
सुम्सुमैटी बा आझ
म्वार बिरहुल बसिया ।

टमान जालझेल, अपमान, शोषण
दमन ओ अपसंस्कृतिहन
चुनौती डेटी
मुक्तिक् गीत गुनगुनैटी बा आझ
म्वार बिरहुल बसिया ।
सुशील चौधरी
मजोरबस्ती बर्दिया

बिरहुल बसिया

सुशील चौधरी