अपन हाँठसे लिखहो अपन खुड्के टुँ तक्दिर

तिलक डंगौरा
१० असार २०७८, बिहीबार
अपन हाँठसे लिखहो अपन खुड्के टुँ तक्दिर

गजल
अपन हाँठसे लिखहो अपन खुड्के टुँ तक्दिर ।
हरबार उठ्जइहो चाहे जत्रा बार जाउ गिर ।

अपन मन्जिलमे पुग्ना भरपुर कोसिस करहो,
आधामे नैछोरम चाहे ठकजाइ टोहाँर शरीर ।

कठैं भाग्यमे जा लिखल बा उहे हुइठ खोब ढेर,
मेहनत करके टुरडेहो असिन लिखल जन्जिर ।

एक ना एकदिन सब्के दिन आइठ कठंै यहाँ,
टोहाँरफे दिन आइ निसाना लगाके मर्हो टिर ।

आझ टुहिन खाइ नैपुग्ठो लगाइ नैपुग्ठो,
मेहनत कर्टी जैबो टो टँुफें बन्बो अमिर ।
तिलक डंगौरा
जानकी १ दुर्गौली कैलाली

अपन हाँठसे लिखहो अपन खुड्के टुँ तक्दिर

तिलक डंगौरा