दुई किनार

सन्जीप चौधरी
१३ असार २०७८, आईतवार
दुई किनार

दुई किनार
जिन्गी टे रात दिन बहटी रहना लडियक् पानी जो हो । जस्टे कि लडियक् पानी लगटार रुपमे गन्तव्य हे स्थानके खोजीमे गन्तव्येह यात्रामे बहटी रहठ । अस्टके हमार जीवन फेन गन्तव्य स्थानके खोजीमे लगटार रुपमे डौरटी रहे । टबे टे कठैं जीवन एक लडिया हो । जिन्गी एक यात्रा हो कहिके मै फेन अपन यात्रा सुरु करनु । कबु खल्हुवा टे कबु उँचुवा, कबु तराइ टे कबु पहार । कबु गाउँ टे कबु शहर कबु बनुवाँ टे कबु लडियक् ढिक्वा अस्टके मै अपन बिसांै वसन्त पार कैके एकठो सहयात्री मिल्ली । हम्रे डुनु जाने अपन अपन जिन्गीके सुःख दुःखके बात बट्वाइट् डगरे डगरे नेंगटी गइली । ना उ हाँ कहे सेक्ली ना मै नैकहे सेक्नु ।

बैशाखके डुपहरिक् घाममे नेंगट नेंगट हम्रे मिच्छा गैल रहि । कुछ आघे जाके एकठो चौतारी मिलल् । वहाँ हम्रे अपन भरुवा ढैके बिसाइ लग्ली आउर कुवाँ मनिक जुर जुर पानी करुवामे भरके पिए लग्ली । सिट्टर सिट्टर बयालमे सित्राइ लग्ली । कुछ समय पाछे जाके हम्रे यात्रा सुरु करली चौतारीके आघे जाके दुइठो डगर मिलल् । वहाँसे उ अपन डगर लग्ली । मै अपन डगर लग्नु । हम्रे विछोड होगैली । मैफें बिरकुल अकेली होगैनु । मै अपन मनमे मेरमेराइक बात साेंच्टी डगरे डगरे नेंगट गैनु । कुछ आघे जाके मै प्रेम नगर पुग्नु । जहाँ मोर मामक् घर रहे ।

मै अपन मामा के घर कुछ दिन बैठ्ना योजना बनैनु । एक दिन मै साँझके मामनके अंगना खटियम् बैठल रहँु । ठीक ओहे समय ओहे लवन्डी हमार मामन घर टिना मागे अइली । उ महिन डेख्टी कि मुसुक्कसे हँस्ली ओ कलि अपने यहाँ……। मै कनु हजुर यि मोर मामा घर हो । आघे मै कनु उ दिन हम्रे संगे अइली मै टोहान नाउँ नाइ पुछे सेक्नु । बटाउ टोहान नाउँ का हो ? उ फें मुसुक्कसे हाँसके कलि मोर नाउँ पुजा हो । अत्रा कहिके उ टिना लैके चल गैली । मै पुजाहे हेरटी रहिगैनु । उ दिनसे टे ओ मोर मन पुजाहे किल चाहे लागल । रोज दिन पुजक् किल सपना डेखे लग्नु । मै पुजामे मैयाँमे दिन दिने टरपटी गैनु । उ बहुट सुग्घर रहि गोह्रर गोह्रर गाल करिया भुट्ला सुग्घुर मुस्कान, जान परटा उ स्वर्ग मनसे आइल परि हुइ । हुँहिन बनुइयाँ वाला फें कत्रा फुर्सदसे बनाइल हुइ । कहिके मै साेंचेफें नाइ सेक्नु वास्तवमे ।

पुजा फें महिन बहुत ढेर मैयाँ करि हमार मैयाँफें अस्टेके दिन दिने बह्रटी गैल । कबु लडियक् ढिक्वा टे कबु बियारके अख्वारी करना करममे नुकनुक के भेटघाट वह्रटी रहल । हमार मैयाँ एकदम लस्कर होगैल । हम्रे एक औरेक बिना जिए नाइ सेक्ना होगैल रहि । मै एक घचिक पुजाहे नाइ डेखँु टे भुलाइल अस लागे । अस्टके एक दिन पुजा ओ मै लढियक ढिक्वामे बैठके मैयाँ प्रेमके मिठ मिठ बात बट्वाइ टहि । बस ओहे समय हमार मामा घाँस काटे आइ टहिंट । हमहन डेख लेनाइ । घरे आके माइक् ठन बटाडेनाइ । मै घरे अइनु टे माइ महिन गरियाइ लग्ली । ओ कली भैने टुँ कैसिन लवन्डीसे मैयाँ करठो ? टोहाँर लाग लवन्डी नैमिल्नै ? मै कनु माइ पुजक्मे का कमी बटिन । सुग्घुर बटी मोर मनके बात बुझठी और महिन का चाही यिहिनसे ढेर ।

अटरे कि उ पह्रल लिखल नाइ हुइ टबे कहलो….? अटरा बात कहट सुन्टी कि मै आउर रिसाके काहे लग्ली पुजा बोक्सिनियाँ बा । अट्रा बात सुन्टी कि मै हाँसे लग्नु ओ कनु आझ फें हमार थारु समाज ओहे पुरान अन्धविस्वास ओ रुदीवादी परम्परामे अरझल बा । आझ विश्व जोन्ह्याँमे मनै पुग्गैनै बड्रमिे चिलगारी उराइटंै । लकिन हमार थारु समाज बिरकुल ओहे पुरान अन्धविश्वास ओ रुदिवादी परम्पराके पाछे डौरटि बा । अट्रामे माइ आघे कठी–हेरो भैने पुजा बोक्सीनियाँ किल नाइ होके भोजही फेन हो उहिन सारा डुनियँक् मनै बोक्सिन बा कठै । टबे टे उ अपन ठरुवाहे भोज हुइलेक एक बरस बिटे नैपाइल टे खा डारल ।

पुजा भोज करल हुइ कहिके टे महिन पट्टा फेन नैरहे । मै माइहे कनु पुजा कैसिक भोजही हुइ सेकहीं भक्खर टे १६ बरस हुइल बटिन । अट्रा छोट्टेम् कैसिक भोज हुइ सेक्हीन । अट्रामे माइ आउर आघे कठी पुजा १० बरस के रहिन टे भोज होगैल रहिन । आउर बात मै नैजन्ठँु । अट्रा कहिके माइ अपन काम करे चलगैलीन । पुजा भोज करल हुइन कहिके सुन्टी किल मोर मनमे मेरमेराइक वात खेले लागल साेंचे लग्नु । मै पुजाहे सच्चा मैयाँ करुँ लकिन पुजा महिनसे विश्वासघाट करले बटिन । अट्रामे ठीक ओहे समय पुजा मोर ठन अइली । मै कनु पुजा टुहिनसे कुछ बात बा । पार्क ओर चलो जाइ । वहाँ जाके मै पुजाहे कनु पुजा हे टुँ टे बरे मजासे मैयाँ प्रेमके सोंग काहारे जानलेठो ना……? मै टुहिन एकठो सच्चा मैयाँके नमुना मन्ले रहँु । लकिन टुँ टे महिन विश्वास घात करके यि समाजमे जिए सेक्ना ना मुए सेक्ना बना डेलो ।

अट्रा कहट सुन्टी कि पुजा रोइ लग्ली ओ जवाफ डेली । मै टे टुहिन एकठो पह्रल लिखल समाजके बात बुझ्ना शिक्षित मनै जन्ले रहँु । लकिन टुँ फे अपन सच्चा रुप डेखा डेलो । टँु फें आझ ओहे पुरान रुदिवादी समाजके पाछे लागके महिन बहुत सहजेसे विस्वासघाती बना डेलो । यि स्वार्थी डुनियाँमे टँु किल रहो मोर मनके बात बुझुइया । लकिन आन्दोलन टँु फें महिन दोषी डेख्लो ना …..? आब मै यि स्वार्थी डुनियाँमे केकर साथ पाके जिएम । यि समाजमे टे जियलसे मुवल ठीक बा । ६÷६ बरस यि समाजसे संघर्ष करटी आझ टोहाँर साथ पाके बहुत खुशी रहुँ का करे कि टँु फें यि रुदिवादी समाजसे संघर्ष करेक लाग साथ डेबो कहिके टे टुँ संघर्ष करो कहेक छोरके ओहे पुरान रुदिवादी समाजके पाछे डौरटो टुहिनके पत्ता यि डुनियाँ कट्रा स्वार्थी बा । ६÷६ बरस मै कैसिक संघर्ष करटी अइनु टुँ कवि बुझ्न कोसिस करलो ? उल्टा महिन विश्वासघाती कहटो ।

यी सब मै टोहाँर लाग करनु टँु महिन अपन ज्यानसे फे जेडा मैयाँ करठो । अगर मै टोहान ठन बटाडेटँु मै भोज करल हँु, टुहिन मैयाँ नैकरठुँ टे टँु प्यारमे पागल होजैटो । टबे मै टोहाँर दिल डुखाइ नैचाहानु । मै साेंच्नु टुँ अपनहि पत्ता पालेबो ओ मोर जीवनसे सडा सडाके लाग बहुत दुर होजैबो । कहिके मै औरे जनहन दुःखी बनाइ नैचाहाठँु । मै टे खुद जलमके डुख्यारी हुइटँु । खुशी कलेक का हो महिन टे पत्ता फेन नैहो । अपन ओठमे नक्कली हाँसी हाँसके मै औरे जनहन हँसैना कासिस करठुँ । सन्जीप टुहिन टे मोर जीवनके एक भागफें पत्ता नैहो । अगर मोर ठाउँमे रटो टे यहाँ नैहोके भगवान के घर रटो । अट्रा विचमे मै पुजक् बातहे कट्टी कनु पुजा टोहाँर भोज अत्रा छोटमे कैसिक होगैल ? पुजा आघे की हेरो सन्जीप एकर पाछे वहुत लम्बा कहानी बा ।

जब मै ५ बरस के रहुँ टे मोर डाइबाबा डुनु जाने बिटगैनै सन्तानके नाउँमे सिर्फ मै किल रहुँ । मामा महिन अपन घर नानल ओ पालल पोषन करल बरवार कराइल । मामा बहुत मडुवा रहे । खोरियक् जारमे रात दिन भुलल रहे । अस्टेक जाँर पियट पियट एक्ठो घर बहुत पंैसा डेना होगैलिस । बस पैंसा टिरे नैसेकके महिन सौंप डेहल । उ समयमे सिर्फ मै १० बरसके किल रहु । भोज कलेक का हो । महिन पत्ता फेन नैरहे । मोर उ घर गैलक् १ बरस बिटे नैपाइल टे उ घरक् लवण्डा मरगैल । टब राँरी टुँवारी बनगैनु । टबसे मोर पर नैमजा व्यवहार करे लग्नै । दिन भर काम करकरके पेट भरके खैना नैमिले लागल । सारा समाज महिन नैमजा व्यवहार करे लग्नै । अलिच्छन बा । बोक्सीनिया बा कहिके घृणा करे लागल । आब टुँहिं बटाउ सन्जीप का मै सहि बोक्सीनियाँ बटु …? अपन ठरुवाहे का महि खैनु ? अत्रा कहिके मोर कोनुम पुजा रोइ लग्ली । मै पुजाहे समझैटी कनु पुजा महिन माफ करो मै बात नैबुझके टोहाँर दिल डुखैनु । आझसे कबु नैअइसिन बात बट्वइम । आझसे यी समाजमे टुँ किल नाही मै फें टोहाँर संगे बटुँ । हमरे डुनु जाने मिलके यि पुरान रुदिवादी समाजहे लावा समाज बनैबी । अत्रा बात करके हमरे अपन अपन घर चलगैली । यी दिनसे टे आउर हमार मैयाँ डुलरिक् चट्नी हस् लस्गर होगैल । हरेक काममे एक औरेक साथ चाहे लागल ।
सन्जीप चौधरी
कैलारी ६ बेंडौली कैलाली

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सन्जीप चौधरी