मै एक्ठो कमैयाँ हुँ

अर्जुन थारु
१५ असार २०७८, मंगलवार
मै एक्ठो कमैयाँ हुँ

मै एक्ठो कमैयाँ हुँ


भिन्सरहें उठके आँखी मिस्टी
जिम्डरवक् घर लुखुर लुखुर
काम करे जाइ पर्ना
साल भरिक खर्चक्लाग सड्डे
कमैयाँ बन्के घर परिवारके
भुख मेटाइ पर्ना
हाँ मै एक्ठो कमैयाँ हुँ ।

मलिक्वा महिन ठन्चे खर्च डेके
डिनभर काम कराइठ्
कबो खेट्वामे
टो कबु घरक्े काम कराके
मोर पसिनक् मुल्य महिन नैडेहठ्
हाँ मै एक्ठो कमेैयाँ हुँ ।

अपन घरक् काम अधुरे कर्के
हर, जुवा, एक गोंइ बर्डन लेके
डिन भर खेट्वामे डिन बिटाके
पानीम् भिजेक् परठ्
घामेमन् जरेक् परठ्
पसिना चुहाइ परठ्
इ सक्कु बेद्नाहे नुकाके
भिट्टर डुखाके
ज्वालामुखी फुटाके
सांझ सक्कार कमैना
मै एक्ठो कमैयाँ हुँ ।

मोर करल मेहनतसे
खेट्वा हराभरा रहठ्
जमिन बन्जर हुइ नैपाइठ
बाली लहर लहर करठ्
मोटी जैसिन दाना फरठ्
बड्लामे महिन तीन भागके
एक भाग ज्याला मिलठ्
एहे ज्यालासे बरसभर गुजारा चलैना
घर परिवार पल्ना
मै एक्ठो कमैयाँ हुँ ।

अर्जुन थारु
बारबर्दिया ५ बनघुस्री बर्दिया

मै एक्ठो कमैयाँ हुँ

अर्जुन थारु