डाइक् बाँहाँ

रामप्रकाश ‘अन्धकार’
१५ असार २०७८, मंगलवार
डाइक् बाँहाँ

डाइक् बाँहाँ

उ बेला फेन मोर डाइ
लहंगा बिलोज घाल्के
उपरसे फरिया पेह्के
टा«सनंसंगे माँजिरक छुनछुनमे
गोहिनसंगे मन लागटसम् सखिया नच्लि
पैले रहि टिरिया जनम्
टिरियाहस् उर्टि
ओ गोरु बेर्हेबेर
ठरवना पहिरन घाल्के
सजना गैटि
जब गाउँ गाउँ घुम्टि रहि
डाइक् मन चिरियाहस उर्टि रहे
मन खुसिसे बड्रि छुटि रहे ।

डाइ फोन उठाइ सिख्ले बटि
मने मन लागलमे करे नैजन्ठि
आझ अन्खोहर लाग्टिन डाइहे
जब डाइक् मोबाइलके घन्टि बजठ
उठैनासे पैह्ले खुसि होजइठि
एक डु दिनमे फोन कर्ना छावा
जब चार पाँच डिन अँटरके करठ
डाइक् खुसिकसंगे मनके पोक्रि खुले लागठ
अरे छावा ढुंगा नैहो
बालु, छर्रि नैबोके मिल्ठो
खुँटा, पस्ठि, बाटि काटे नैमिल्ठो
कैसिक घर बनैबो रु
टुहुनके बैठना कोन्टि नैहो
फेन काकरे हो रु
डिन भर गारि
ढुङ्गा, बालु, छर्रि बोक्टि रहठ
अगुवा टे सरकारि कामके लग कहठ
घर बनैना नैमिल्ना
सरकारि कामके लग
हमारे रखाइल बनवँम्से
हमारे लाल पुर्जा रलक लडियमसे
मन लागठसम् बोके पैना
कहाँ लिखल बा इ छावा
टैं टे पर्हले लिख्ले बटे
अइसिन कैयौं सवाल डाइ पुछ्टि रठि
मटिमे पराइ गोर टेक्ले रहठ
मोर छाटिमे बरा जोरसे गरठ
मै असिन पसिन हुजाइठुँ ।

कोरोनाक महामारीसे
मोर सवाल अन्खोहर लाग्ठुइ
कहुँ छोट टे कहुँ झोहर लाग्ठुइ

छावा कसम खाके कोह्टे
डेसके नागरिक हुइस्
डेसहे पे्रम कर्ठे
डेसके लग रकट पस्ना चुहैलेटे
टे फेन काकरे रु
अपन घर बनाइ नैपाइठुइस् रु
अपन डगरमे नेंगे नैपाइठुइस् रु
कैयौं हत्याकाण्डमे
टोर डोस नैहो
फेन डोसिके बिल्ला बोक्टि
काकरे न्याय नैपाइठुइस् रु
इहें कोइ चुनाव हार्के
मन्त्री, प्रधानमन्त्रीक सपठ लेके
सिंहदरबार छिर्ना
टैं छावा हट्करि लगाके
जेल जैना
इ सासन नाहि हैकम चल्टा
इ सब हुके फेन अस्रा नैमरल हो
सप्ना नैटुटल हो
उठ, आब टे उठ
इ माटि
इ पानि
इ दरबार
इ राज्य सट्टा
सबका सब टोर फेन हो
आगि बन्के उठ
हैकमहे जराके जरटुट करा
बस् छावा सासन चला
हैकम नाहि
इ सब टुहिं असम्भव लागठुइ
मने कर्ना इहे बा ।

रामप्रकाश ‘अन्धकार’
महाडेवा डेउखर, दांग

डाइक् बाँहाँ

रामप्रकाश ‘अन्धकार’