‘डल्ला’ गाउँके पिरा

इन्दु थारु
१६ असार २०७८, बुधबार
‘डल्ला’ गाउँके पिरा

‘डल्ला’ गाउँके पिरा
डल्ला गाँउसंगे संक्रमणकालके अपने पिरा बटिस् । हुइना टे संक्रमणकालीन युद्धके पिरा देशेभर बा । मनो विगतके पिराहे डल्ला आझ खुशीमे बडल सेकले बा । डल्ला आझ केवल डल्ला गाउँकिल नाइ, डल्ला होमस्टेमे परिणत हुइल बा । अपन छुट्टे पहिचान कायम करना सफल हुइल बा । पिरासे गुज्रल ठाँउ नेपालमे टमान बा, मनो ठोरचे किल ठाउँ अपनहे रुपान्तरण करे सेकल बा डल्ला हस् ।

संक्रमणकालके घटनाके बात खिट्कोरबो टे आझ फेन डल्लाबासीनके आँखी आँशसे भरजैठिन । बहुट भावुक बनजइठंै । बिटल बात फेन खिट्कोरुइयन फेन बेकारमे पुछ्ना जैसिन लग्ना । मनो यी बाहेकके सवालमे डल्लामे पहुना बनके अउइयन भरपुर खुशी बनैना प्रयास करठैं डल्लाबासी ।

डल्लाके इतिहास
डल्लाके इतिहास ढेर नैहो । डल्ला गाउँम बस्ती बैठुइया बुद्धिराम थारु एकजाने किल जीवित बटाँ अब्बे । बुद्धिराम थारु विक्रम सम्वत् २०१६ सालमे अपन बाबा ओ औरे ४ परिवारसंगे डेउखरके टीकलीगढसे छारा कैके बर्दिया अइलैं । बर्दियामे जग्गा मिलठ, खाइ बैठे मिलठ कना आसमे । लगभग १५ दिन सम नेंगके बगाल डेउखरसे बर्दिया पुगल रहे । बर्दियाके जमिन्दार युवराज राणा जग्गा डेम कहिके बुद्धिराम लगायत अन्य परिवारन डल्ला गाउँम लन्लै । अब्बेके डल्ला गाँउ उ बेला घना जंगल किल रहे । युवराज कहलै जत्रा सेक्बो जंगल फँरानी करो, बस्ती बैठाउ, खेती करो ओ बटैया महिन डेहो । युवराजके जन्नीक् नाउँ नरेन्द्रकुमारीसे उ गाउँक नाउँ नरेन्द्रपुर ढारगिल रहे । मनो उ छोटमोट बस्तीक घर फेन छोटछोट रहे । छोट बस्तीके घर छोट छोट घर डल्ला (ढेला) हस बिलगाए । टबे गाउँक नाउँ नाउँ डल्ला परगैल ।

डल्लाके लावा बस्तीमे कुलुवापानी नैरहे । वहाँ पानी नैहुइलक् कारण मकै ओ लाही किल उब्जनी होए सुरुके दिनमे । डल्लाबासी भात खाइ नैपाइँ । डल्लामे बैठल करिब ६–७ बरससम डल्लाबासी अपनेहे उब्जाइल भात खाइ नैपइलंै । डल्लामे भाते नैखाइ मिलठ कहिके डल्लाबासी फेन बसाइ सरके सुटैह्या ठाकुरद्वार जैना साेंच बनैलै । मनो जमिन्डार युवराज जाइ नैडेलै । डल्लामे पानी लानक लाग भर उ पहल करलंै । ओकर लाग डल्लाबासीन कुलुवा कोेरे लगाके डल्लामे पानी लन्लंै । ओकर बाड डल्लाबासी धान उब्जनीसंगे भात खाइ पैलै । विक्रम सम्वत् २०२८ सालमे नेपाल सरकारके भूमिसुधार कार्यक्रम अन्र्तगत डल्लाबासी अपन नाउँमे जग्गा पैलंै । भूमिसुधारके एक जन व्यक्तिके नाउँके २८ विघासे ढेर जमिन ढारे नैपैना प्रावधान लानलबाड डल्लाके जमिनमे डल्लाबासीन डेहना युवराज तयार हुइलैं । उहिनसे पहिले डल्लाके जमिनमे युवराजके हक लागे । डल्लाबासी युवराजके बटैया जोटिंट् । अपने नाउँमे जमिन आइल ओरसे डल्लाबासी बटैया करेक छोरके अपने खती सुरु करलैं ।

डल्लाबासी डक्टरवा कैसिन रठैं नैडेख्ले रहिंट । स्कुल नैडेख्ले रहिंट । डल्लाबासीनमे जिम्डरुवक् बटैया करो, पेटभर खाउ ओ सुटो कनासमके किल चेतना रहिन । नेपाली कांगे्रससे सञ्चालन करगैल अभियानमे जनतनहे दुख डेहे नैमिली, थारुहुक्रे आब जिम्डरुवक् बेगारी करे नैपरि कहलक् ठोरठोर सम्झठंै ८३ वर्षिय बुद्धिराम जोगी थारु । पञ्चायतकालके अन्त्य ओहँर डल्लामे झोपरीमे स्कुल सञ्चालन टे हुइल मनो विद्यार्थि मिल्ना कर्रा रहे । डल्लाबासी अपन लरकन छेगरी, गैया, भैंस चरहाइ वनवँम् पठाइँट्, परहाइक् महत्व नैबुझल रहिंट । पठैलेसे फेन एकदिन बरकवाहे स्कुल, छोट्कवाहे बनवाँ, डोसर दिन छोटकवाहे स्कुल, बरकवाहे बनवाँ कैके पालिकपाला पठाइँट् । छाइनहे पहराइ परट कहिके टे कोइ साेंच्बे नैकरिंट, छाइन सस्रार जैठै कहिके ।

संक्रमणकालमे डल्ला
डल्लामे कौनो अइसिन परिवार वा व्यक्ति नैहुइँट् जे संक्रमणकालमे तत्कालीन शाही सेना वा माओवादीके यातना पाइल नैरहे । डल्ला वनवँक् किनारे हुइलक् ओरसे माओवादीके लाग फेन सहज हुइना ओ शाही सेनाके टार्गेटमे फेन डल्ला एकदम रहे । माओवादी आके गाउँ युवन बनवँम् लैजाके तालिम डेहैं । शाही सेना आइँट् ओ माओवादीन नैभेटाइँ टे गाउँक् सर्वसाधारणहे पिटिंट् ओ यातना डिंट् । उ बेला गाउँक् लरका परका होवँइ, चाहे युवा, महिला किहुहे फेन शाही सेना नैछोरिंट । सेना गाउँबासीनके नाम लिस्ट बनाके आइँट् ओ ओहे अनुसार पक्राउ करिंट् । गाउँमे पुरुष ओइन भेटइना कर्रा, सक्कुजे भारत गइल रहिंट । गाउँमे महिला फेन बैठे सेक्ना स्थिती नैरहे । महिलाहुक्रे रात परटी किल नाटपाटन घर या टे अउरे गाउँ सुटेजाइँट् । कोइ फेन सुटे नैडिन टे खेट्वामे फेन रात गुजारिंट् ।

डल्लाके वेदप्रसाद योगी क्रान्तिकारी मानजैठै । डल्लामे माओवादी बनल उ पहिल व्यक्ति हुइँट् । उ माओवादीमे लग्नासे पहिलेसे धनी गरिब बीचके असमानता हटइना बात करिंट । विभेद हटाइ परट कहिके उ गाउँके दलितन घर जाके भात माँगके खाँइट् । ओइसिक कइलेसे औरेजे उहिनहे गरयाइन । शाही सेना उहिनके संक्रमणकालमे वेपत्ता परलिन । वहाँक् सम्झना ओ सम्मानमे डल्लाबासी गाउँके मुख्य चोकमे वहाँके शालिक बनाइले बटैं ।

वेदप्रसादके छावा पुष्पराज चौधरी ओ गर्भवती पटुहिया सम्झना चौधरी शाही सेना गोली ठोकके हत्या करलिन । वेदप्रसादके लग्गेके नाट परना भैयन् मणिराम चौधरी ओ डिलराज चौधरीके फेन शाही सेना हत्या करलंै । वेदप्रसाद, पुष्पराज, सम्झना, मणिराम ओ डिलराज, यी पाँच जाने माओवादीमे संलग्न रहइ । डल्लाके निलप्रसाद चौधरी, दुष्यन्ती चौधरी, टेकनाथ जोगी थारु, बाबा दुर्गाप्रसाद सापकोटा ओ छावा खडक सापकोटा, रुपलाल थारु, हरिप्रसाद थारुहे संक्रमणकालमे शाही सेना वेपत्ता बनैलै । यी सात जाने सर्वसाधारण हुइँट् । शाही सेना डल्लाके ४ जनहनके हत्या करल ओ ८ जनहन वेपत्ता बनाइल । सुराकीके आरोपमे माओवादी डल्लाके राजेश थारुके हत्या करलइ । अइसिके द्वण्द्वकालमे १३ जनहन गुमाइल पिरा बा डल्ला मे ।

संक्रमनकालमे डल्लाके रुपान्तरण
संक्रकणकाल ओराइलबाड भारत गइल सक्कुजे घर फिर्ता हुइल । लथालिंग हुइल अपन खेती सम्हरलैं । व्यापार व्यवसाय सुरु करलैं । गाउँ सामान्य हुइल । डल्लाहे सामान्य डल्ला गाउँके डल्ला होेमस्टेम परिणत करनामे तराई भूपरिधी कार्यक्रम (ताल) नामक् संस्थाके सबसे ढेर भुुमिका बा । राज्य ओ विद्रोही पक्षबीचके शान्ति सम्झौताके बाड यी संस्था डल्ला गाउँहे विशेष महत्वके साथ हेरल । बर्दियाके मधुवन नगरपालिकामे रहल डल्ला गाउँ वहाँ अवस्थित बा, जहाँ एकठो महत्वपूर्ण अन्तर्राष्ट्रिय जैविक मार्ग ‘खाता जैविक मार्ग’ रहल बा । उ मार्ग बर्दिया राष्ट्रिय निकुञ्जहे कतरनियाघाट वन्यजन्तु सेन्च्युरीसंग जोरले बा । यहे डगर होके बाघ, गैंरा, हाँठी ओ अन्य वन्यजन्तु नेपालؘ–भारतमे ओहोरडोहोर करठंै । नेपालमे सशस्त्र द्वण्द्वके अन्त्य हुइलेसे फेन डल्लामे जंगली जनावर ओ डल्लाबासीबीचके द्वण्द्व अभिन कायम रहे । जंगली जनावर अन्नबाली खाडेना, छेग्रीभेरी खाडेना, मनैन मरना काम करइ । डल्लाबासी फेन जंगली जनावरप्रति रिसाइल रहिंट । सिकार करे वनवाँ जाइँट् । मनो वन्यजन्तुके संरक्षण कर परठ कना चेतना डल्लाबासीनमे ताल डेहल । डल्लाके लग्गे रहल शिव सामुदायिक वनवाँके संरक्षण ओ सम्बद्र्धनके डल्लाबासी लागलपाछे दुर्लभ वन्यजन्तु बाघ, गैंरा, हाठी ओ विभिन्न प्रकारके चराचुरुंगीनके वासस्थान बनल बा उ सामुदायिक वनवा । बर्दिया राष्ट्रिय निकुञ्जके क्षेत्रफल बरवार हुइलक ओरसे वन्यजन्तु डेखक लाग भाग्यमानी हुइपरना रहे । वन्यजन्तु डेखे नैपाके ओइने निरास होके जाइँट् । शिव सामुदायिक वनवक क्षेत्रफल १०३.४३ हेक्टर बा । यहाँ जनावर डेखे पइना सम्भावना बर्दिया राष्ट्रिय निकुञ्जके तुलनामे ढेर बा । टबेमारे पर्यटक शिव सामुदायिक वनवँम् आइलग्लै । यहाँ अउइया पर्यटकके संख्या ढेर हुइल ओरसे संरक्षण सम्बद्र्धनके कामहे आउर दिगो बनाइक लाग ताल संस्था होमस्टेके अवधारणा लानल हो । होमस्टेके बात सुनके गाउँे चकित परलंै । ‘अइसिन दुर्गम ठाउँम, थारुनके छोट झोपरिम बैठे ओ थारुनके खाना खाइ के आइ ? केकरठन पैंसा ढेर हुइल बा ओ पैंसा फेकाइ यहाँ अइही ?’ डल्लाबासी यस्टे प्रश्न करिंट । यस्टे सोंच ओ प्रश्नबीच डल्लाहे होमस्टे बनाइक लाग डल्लाबासी तयार हुइलैं । होमस्टेके लाग आवश्यक तालिम डेना ओ अन्य होमस्टे (भादा होमस्टे कैलाली ओ स्याङ्जाके सिरवारी होमस्टे) के अवलोकन करैना जिम्मेवारी सक्कु ताल लेहल । होमस्टे बनाइक् लाग डल्ला पूर्णरुपम तयार हुइल ओरसे २०६७ फागुन १७ गते व्यवस्थापिका संसद प्राकृतिक स्रोत साधन समिसतके सभापति शान्ता चौधरीसे औपचारिक रुपमे डल्ला होमस्टेके उद्घाटन हुइल । उद्घाटनमे मिस नेपाल २०११ सदिक्षा श्रेष्ठके फेन उपस्थिति रहे । सुरुवाती दिनमे ११ घरमे किल होमस्टे सञ्चालन रहल रहे । पहुनन्के अइना क्रम बरहल बाड होमस्टे घरके संख्या १८, २० हुइटी अब्बे २२ घर पुगल बा । यहाँके पर्यटक विकासके लाग तराई भूपरिधी कार्यक्रम ताल, जिल्ला विकास समिति हालके जिसस, जिल्ला वन, बर्दिया राष्ट्रिय निकुञ्ज, मधुवन नगरपमलिका तथा अन्य सरोकारवाला निकायसे सहयोग हुइटी आइल बा ।

द्वन्द्वकालमे अपने घर लथालिंग हुइल डल्लाबासी अब्बे अपन घरके साथे वन्यजन्त्ुके घर बनैनामे सक्रिय बटैं । अइसिक कैलेसे लोेपोन्मुख वन्यजन्तुके दीगो संरक्षण हुइना ओ डल्लाबासीनके फेन दीगो आयआर्जनमे सहयोग पुगल बा । सुविधाजनक शुल्कमे होमस्टे संचालन करगैल बा । पाला लगाके होमस्टेमे पहुना बैठाजाइट् । पहुननसे हुइल आम्दानीके निश्चित प्रतिशत गाउँके कोषमे जम्मा हुइट । उक्त रकम गाउँके विकासमे खर्च करजाइट । स्वदेशी विदेशी करके वर्षमे करिब १३ हजार पहुना डल्ला होमस्टेमे अइठ । ८ चैत २०७२ मे बेलायती राजकुमार प्रिन्स ह्यारी डल्ला होमस्टे आइल बाड अन्तर्राष्ट्रियरुपमे डल्ला परिचित बन सेगक । वन्यजन्तु समस्या किल नाही अवसर फेन हुइट कना बात बुझ्ना डल्लाबासीनहे मदत पुगल बा ।

डल्ला होमस्टे प्रकृति ओ संस्कृतिके सुमधुर सम्बन्ध रहल ठाउँ हो । प्रकृतिप्रेमी, जीवजन्तुप्रेमी, संस्कृतिप्रेमी डल्लामे बहुतकुछ हेरे ओ सिखे पैठैं । डल्लामे विकासके सम्झाबना फेन ढेर बा । स्थापनाकालसे होमस्टेके अध्यक्षके जिम्मेवारी सम्हँरटी आइल परशु चौधरी अपन गाउँक जानकारी डेहटी कहल, डल्ला गाउँ अपने आयआर्जनसे गाउँमे सामुदायिक विद्यालय संचालन करले बा । गाउँक मुख्य चोकमे खाजा पसल खोल्ले बा, वहाँके आम्दानी गाउँ विकासमे खर्च करजाइटठ् । ओस्टेके गाउँमे हेयर कटिङ खोलगैल बा । गाउँक् युवानहे ‘नेचर गाइड’ के रोजगार डेगैल बा । हेरैटी गैल थारु पोशाक, नाच, संस्कृतिके संरक्षणमे डल्लाके युवा पुस्ता लागल बा । गाउँके लोकल मुर्गी, टिना सक्कु गाउँमे खपत हुइठ । बेमौसमी तरकारी खेती कोइ सञ्चालन करे नैसेक्ले हुइँट्, ओकर माग डल्लामे ढेर बा । माछा, अण्डा, दुधके माग फेन ढेर बा ।’

डल्ला होमस्टेके सचिव मंगल चौधरी, जे शसस्त्र द्वन्द्वके समयमे शाही सेनासे यातना पैलै । उ जनआन्दोलन २०६२÷०६३ के घाइते फेन हँुइट् । उ कहठैं, द्वन्द्वके पिरा बिसरइना प्रयास करटी हमरे बहुट आघे बहर सेकल बटी । अव्यक्त पिरा हमार मनमे कट्रा बा कट्रा, मनो होमस्टे अइना पहुननहे खुशी परना भरपुर प्रयास करठी ।

बस्ती बैठैनासे अब्बेसम डल्लाहे डेख्टी आइल बुद्धिराम डल्ला पुरान डल्लासे महाढेर फरक हुइल अनुभव करठै । संसारभरिक मनै गाउँ घुमे अइठै, गाउँक लरका महा चलाख होसेक्लइ कहटी बुद्धिराम मुस्कुरइठंै । द्वन्द्वकालमे जीवन भर भुले नैसेक्ना पिरा पाइल डल्ला मन भर पिरा बोकके फेन पहुनन्हे भरपुर मनोरञ्जन डेना हरदम तयार रठैं ।
इन्दु थारु
धनगढी, कैलाली

‘डल्ला’ गाउँके पिरा

इन्दु थारु