मै फेन आघे बर्हम्, साठ पैम कलेसे

सागर कुस्मी ‘संगत’
२४ असार २०७८, बिहीबार
मै फेन आघे बर्हम्, साठ पैम कलेसे

गजल
मै फेन आघे बर्हम्, साठ पैम कलेसे ।
जरुर कुछ टे करम, हाँठ पैम कलेसे ।

अपन झोंपरीहे, इट्टक् मकान बनैम्,
उँजरा भर बराढेर, गाँठ पैम कलेसे ।

इल्मारी टेबुल डराज, पलंगफे सजैम,
सिस्वा जिन्ना पाँडन, काठ पैम कलेसे ।

घर अंगना बहुट, सोहावन बिलगाइ,
डौना बेबरी गेंडक्, डाँठ पैम कलेसे ।

एकदिन इ संसार फेन, रंगीन बनैम्,
यदि केक्रो खाली, माठ पैम कलेसे ।
सागर कुस्मी ‘संगत’
लेखक हरचाली साहित्यिक त्रैमासिक पत्रिकाके प्रकाशक ओ प्रधान सम्पादक हुइँट् ।

मै फेन आघे बर्हम्, साठ पैम कलेसे

सागर कुस्मी ‘संगत’

लेखक सागर कुस्मी ‘संगत’ धनगढी कैलालीसे प्रकासित हरचाली साहित्यिक त्रैमासिक पत्रिकाके प्रकाशक ओ प्रधान सम्पादक हुइँट् ।