जय गुर्बाबा : अभिवादन अभ्यास

सोम डेमनडौरा
२५ असार २०७८, शुक्रबार
जय गुर्बाबा : अभिवादन अभ्यास

जय गुर्बाबा : अभिवादन अभ्यास
पृष्ठभूमि
६० के दशक् पाछे चर्चाके रुपमे अइटी रहल शब्द हो, जय गुर्बाबा । हरेक यूवा वर्गमे खास करके यूवा साहित्यकार तथा लेखक वर्गमे यी शब्द एकदम मुखारित हुइल बा । किहिनहे अभिवादन करे परलमे जय गुर्बाबा कना करजाइठ । ६० के दशकसे आघे थारू समुदायमे रामराम, सिताराम शब्द प्रचलित रहे । यिहिनसे आघे टे और ढोग किल लग्ना प्रचलन रहे । उ बेला स्यावा लिउँ, पाँइ लागु जस्टे अत्यन्त सौहार्द ओ मृदु शब्द प्रयोग करजाए । थारू समुदायके धर्म हिन्दुकरण हुइल सँगे रामराम, सितारामके अभ्यास हुइटी आइल । ११ औं शताब्दीमे महमुद गजनवी, १३ औं शताब्दीमे मुगल सम्रात, अस्टेक गुरु शंकराचार्यके नेतृत्वमे फेन बौद्धमार्गीहुकन उप्पर बेर बेर आक्रमण हुइल । जिहिनसे थारूहुक्रे बाध्य होके हिन्दु धर्म मानल इतिहास बा (दहितः २०६२) ।

६० के दशकहे नवजागरणके रुपमे लेहे सेकजाइ । यी अवधिमे थारू साहित्यके विकास द्रुत्तर गतिमे हुइल पाजाइठ । ६० दशकके लेखक, पत्रकार, साहित्यकार तथा संस्कृतिप्रेमीहुक्रे ‘जय गुर्बाबा’ शब्दहे अधिक्तम अभ्यास करल पाजाइठ । विशेष करके संचारकर्मी एकराज चौधरीसे प्रचलनमे नानल यी शब्दहे संचारकर्मी तथा यूवा गजलकार सोम डेमनडौरा बृहत रुपमे आमरुपमे अभ्यासमे नन्लैं । संचारकर्मी एकराज चौधरी गुर्बाबा एफएम समेत सन्चालनमे नन्ले बटैं । ६० के दशकमे जंग्रार साहित्यिक बखेरीके साहित्यिक अभियानसे यम्ने मलजल करल पाजाइठ । जेकर सुत्रधार जंग्रार साहित्यिक बखेरीके अध्यक्ष सोम डेमनडौरा हुइँट् ।

अर्थ ओ परिभाषा
जय गुर्बाबाके अर्थ थारू समुदायके थारू धर्मके प्रवर्तकके प्रणाम, अभिवादन तथा प्रशंसाके रुपमे लेजाइठ । यद्यपि यी शब्दहे एक औरेप्रति बिनम्रताके भाव, पारस्परिक सम्बन्धके परिचय, अभिवादनके रुपमे प्रयोग करजाइठ । अंग्रेजीमे हाइ हेलो, गुड मर्निंग, नेपालीमे दर्शन, नमस्कार, नमस्ते, मुस्लिम समुदायमे वाले गुम सलाम कहेजस्टे थारू समुदायमे जय गुर्बाबा कना करजाइठ । यी पहिचानसंग जोरल शब्द फेन हो ।

गुर्बाबा शब्द दुई शब्दके संयोजनसे बनल बा । गुरु वा गुर्वाबाबा । गुर्वा थारू समुदायमे पूजारी वा गाउँक् साझा डेउथानके डेवी डेउटाहुँकनहे पूजा करना व्यक्ति या गाउँक साझा डेउटाहे पूज्ना व्यक्ति हुइँट् । जिहिनहे गुरुके रुपमे फेन लेजाइठ । गुर्वा थारू समुदायके गुरु, ज्ञानी पुरुष हुइट (डेमनडौरा, २०१४) । गुर्वावाहे थारू हँुकनके सृष्टिकर्ता मानजैठैं । गुर्बाबा शब्दके सन्धि विच्छेद करेबेर गुरुंवुवा हुइठ । अतः गुर्बाबा थारू धर्ममे पहिल प्रजापिता हुइँट् (सर्वहारी, २०६९) ।

गुर्बाबा थारू समुदाय, थारू धर्म ओ थारू भाषासंग सम्बन्धित शब्द हो । गुर्बाबा शब्दके अर्थ ः थारू धर्ममे प्रथम प्रजापति, थारू धर्ममे रक्षा करना व्यक्ति, थारू धर्म शास्त्र सम्बन्धी लक्षण एवं आचरण मजासंग जन्ना व्यक्ति, थारू धार्मिक सम्प्रदायके प्रणेता, थारू धर्मके विधि विधानके व्याख्याता, थारू मन्वन्तरके मूल पुरुष, थारू जातिके आदि प्रवर्तक व्यक्ति, सांसारिक प्रपञ्च वा विषय शक्तिसे डेर रहिके परमार्थ चिन्तनमे जीवन बिटैना प्रथम थारू व्यक्ति, थारू सन्त, महात्मा, महर्षि वा सिद्ध, आध्यात्मिक सिद्धि प्राप्त करल योगी थारू पुरुष, समाज वा धर्ममे प्रचलित दुर्गुण हटैटी सुढरटी लैजुइया थारू सुढारक, थारू आख्यान अन्सार संसारके सिर्जना कार्यहे आघे बह्रैना सृष्टिकर्ता (थारू ओ दहित, सन् २०००) ।

भाग्यमानी ओ गौरबशाली रठैं ओइसिन परिवार ओ समुदाय, जेम्ने ओइसिन युगपुरुषहुक्रे जन्मठैं । जे व्यक्तिके इतिहाससे फेन मानव समुदायके इतिहास बनैनामे योगदान पुगाइठ । अपन चिन्तन शैलीसे जिहिनसे प्रतिपादित सिद्धान्त धर्म, कला, दर्शनके आधारशीला बनठ । थारू समुदायमे जन्मेल प्रथम युगपुरुषके व्यक्तिगत परिचय अज्ञात बा । काहेकि मानव जीवनके सम्पूर्ण अवधिमध्ये अल्पअवधिके किल लिखित विवरण प्राप्त बा । टबफेन विशेषणबाचक नाम गुर्बाबासे अद्यापि उहाँ चिन्हजाइठ, गृहदेवस्थलमे स्थापित हुक पुजजाइठ । उहाँक् क्रियाकलाप वाचन करजाइठ, वर्षके एकचो हा¥या गुरैमे जिहिनहे औरे शब्दमे वह्रनख्ना कहिजाइठ (थारू, २०६३) ।

पेरीस विश्वविद्यालयके मानव उत्पत्तिशास्त्री जीजल क्रसकउफ गुर्बाबाके परिभाषा द प्रिमियर थारू कले बाटी । जय गुर्बाबा शब्द मुलतः तीन ठो शब्द संयोजन हुके बनल बा । जय गुर्वा बाबा । अर्थात जय ओ गुर्बाबा के शब्द संयोजन जय गुर्बाबा हो । जय शब्दके अर्थ जीत, जय, विजय, मजा, सत्कर्म, शक्ति, समर्थन, केक्रो प्रशंसा करना हुइठ् । एकर प्रयोग देश प्रेम, राजनैतिक नारा आदि अथवा भजन कीर्तनमे भगवानके प्रशंसाके लाग प्रयोग करजाइठ (जय हिन्द विकिपीडिया) ।

१.युद्ध, विवाद आदिमे विपक्षीके परा—भाव । विरोधीके दमन करके स्वत्व या महत्व स्थापना । जीत । विशेष—संस्कृतमे जय शब्द पुलिंग हो । मने हिन्दीमे एकर प्रयोग स्त्री लिंगमे मिलठ । क्रि. प.—करना । —हुइना । मुहा.—जय मनैना विजयके कामना करना । समृद्धि चाहना । जय हो आशीर्वाद जो ब्राह्मणहुक्रे प्रणामके उत्तरमे डेना करठैं । विशेष—आशिर्वादके अतिरिक्त यी शब्दके प्रयोग डेउटाहँुकनके अभिवादन सूचित करेक लाग फेन हुइठ, जेम्ने कुछ याचनाके भाव मिलल रहठ । जस्टेः जय काली कि, रामचन्द्र जी के जय । उ.—जय जय जगजननि डेबी, सुरनर मुनि असुर सेव्य, भुक्ति भुक्ति दायिनी जय हरणी कालिका ।—तुलसी (शब्द.) । यौ. जय गोपाल । जय श्रीकृष्ण । जय राम, आदि (अभिवादन वचन) (स्रोतः विक्षनरी एक मुक्त शब्दकोश)

जय गुर्बाबा अभ्यासके बारेमे बुझाइ
जय गुर्बाबा, अभिवादनके अभ्यासके बारेमे टमान व्यक्तित्वहुक्रे अइसिन मत ढरले बाटै ंः

एकराज चौधरी, सञ्चारकर्मी तथा पत्रकार
‘जय गुर्बाबा कना शब्द मै २०५९ सालओर थारू भाषाके कार्यक्रम ‘हमार संस्कृति हमार गीत’ सन्चालन करेबेर अभ्यासमे नालल हो । थारू भाषाके ओ थारू समुदायके संस्कृतिके बारेमे व्याख्या करना कार्यक्रम हुइल ओरसे नमस्कार, नमस्तेके सट्टा बिशुद्ध थारू झल्कना अभिवादन करे मिल्ना शब्द खोज्ना प्रयास करनु । यी धर्तीके सृष्टिकर्ता गुर्बाबा हुइट । यी कारण मै गुर्बाबक् जल्मौटी (सृष्टिके उत्पत्ति सम्बन्धी थारू धर्मके प्रथम प्रजापतिके बारेमे उल्लेख हुइल धार्मिक ग्रन्थ) हे आधार मन्टी गुर्बाबा शब्दहे अभ्यासमे नन्नु । असिन करलेसे थारू समुदायके धर्म, धर्मग्रन्थ ओ संस्कृति झल्कना हुइलेसे फेन प्रयोगमे नन्ना जरुरी सम्झनु । शुरु शुरुमे जय गुर्बाबा कहेबेर, यी मनैयाँ बौराइल कि का हो कठैं । मने मै ढुक्क रहुँ, यी शब्द थारूहुक्रे एकदिन अपनत्व महशुस करही ओ प्रयोगमे नन्ही कना बाट । थारू समुदायमे प्रचलित अन्य धार्मिक ओ साँस्कृतिक काव्य, ग्रन्थ हुइलेसे फेन उ हिन्दु धर्मसंग मेल खाइठ । उ पाछे किल आइल आयातित हो । मने गुर्बाबक जल्मौटी थारू हुँकनके अपन मौलिक काव्य हो ।’

सुशील चौधरी, लेखक एवं कवि
‘गुर्बाबा थारूके लोकजीवनहे गयुइया ओ पथप्रदर्शन करना महापुरुष हुइट । समाजहे साँस्कृतिक अनुबन्धमे बाँढक् लाग विश्वासके खाँचो रहठ । ओ यी कार्य गुर्बाबा करले बाटैं । उहाँ थारू संस्कार, संस्कृति ओ लोकसंस्कृतिहे जनमुखी बनैना भारी योगदान पुगैले बाटैं । समय समयमे जन्मल ओ मानव कल्याणके लाग योगदान पुगाइल महान पुरुषहुकनके समष्टीगत नाम गुर्बाबा हो । जय गुर्बाबाके नाउँसे अभिबादन करना पुर्खाहुकनके सम्मान, लोकदर्शन ओ संस्कृतिके सम्मान करल जस्टे लागठ महिन । यी समय अनुसारके प्रगतिशील, परिष्कृत ओ संस्थागत करना उपाय ओ डगर फेन हो । गुर्बाबा माटिक डल्लामे नुकल सोनजस्टे हुइट । कोइ पहिचान करे सेकल कलेसे अकबरी सोन ओ पहिचान करे नैसेकल कलेसे माटिक डल्लाके महत्व नैहुइल जस्टे हो । जय गुर्बाबा थारू समुदायके मौलिकता हुइल ओरसे अभ्यासमे नान्के स्थापित करना आवश्यक बा ।’

कृष्णराज सर्वहारी, लेखक, पत्रकार तथा साहित्यकार
‘गुर्बाबक् जल्मौटीमे पृथ्वीके उत्पत्तिके विषयमे उल्लेख हुइल बा । उहाँ सृष्टि कर्ता हुइँट् । यसर्थ थारू संसारके पुरान, पहिल बासिन्दा हुइँट् । उहाँ थारू समुदायके सबसे भारी तथा प्रथम गुरु हुइँट् । राम राम कना शब्द हिन्दु धर्मसंग सम्बन्धित बा । मने गुर्बाबा शब्द अपन मौलिक शब्द हुइल ओरसे अपनत्व ढेर बा ।’

छविलाल कोपिला, साहित्यकार तथा पत्रकार
‘महिन जय गुर्वावा सम्बोधन एकदम सुन्दर लागठ, जहाँ हमार असली पहिचान बा । थारू समुदायके धार्मिक ग्रन्थ गुर्बाबा हो । यी शब्द स्थापित करना जरुरी बा । एकर लाग राम राम शब्द ढिरेसे छोरटी जाइपरठ । राम राम कना थारू समुदायकमे कहुँ फेन स्थान नैहो । मने, यादवहँुकनके प्रभावसे थारू समुदाय सिखल हुइँट् । जय गुर्बाबा थारू समुदायके अपन पहिचान हो । गुरुवाहे थारू समुदायमे बाबा (पिता) सरह मन्ना संस्कार बा थारू समुदायमे । ओहेकारण बोल्टी बोल्टी गुर्वाहे गुर्बार्बा कहल हुइसेकठ । मने गुरुदेब नाइहो । गुरुदेब भारतके हिन्दु प्रचारकके एक व्यक्ति हुइँट् । थारू समुदायके स्वभाव व्यक्तिहे पूजा करना परम्परा नैहो । पेसा ओ कामके सम्मान करठैं । गुरुदेवमे लागल थारू समुदायके गलत बुझाइ ओ भ्रम किल हो ।’

सागर कुश्मी, कैलालीके यूवा गजलकार ओ पत्रकार
‘थारू हँुकनके अभिवादन करना यी शब्द एकदम उपयुक्त बा । महिन जय गुर्बाबा कहेबेर आनन्द लागठ ।’

सेभेन्द्र कसुम्याँ, रेडियो कार्यक्रम सन्चालक
‘जय गुर्बाबा, सुन्लेसे सोहैना ओ नरम शब्द लागठ । रिसैलेसे फेन भावुक ओ मिलनसार बनैना शब्द बा । गुर्बाबा कलेसे, नयाँ मनैन्हे यी का हो कना जिज्ञासा फेन जागठ । अइसिन जिज्ञासुसे अर्थबारे जानकारी पाइलपाछे थारू समुदायके पहिचानके बारेमे फेन पटा पैठैं ।

ठाकुर अकेला, यूवा गजलकार
‘बर मजा अनुभूति हुइठ । पहिचानसँग जोरल शब्द लागठ । यिहिनसे थारू हुँकनके धार्मिक आस्था फेन बृद्धि करठ । जय गुर्बाबा सहितके अभिवादन करेबेर गर्वके महशुस हुइठ ।’

सरस्वती चौधरी, यूवा गजलकार
‘जय गुर्बाबा विशुद्ध थारू शब्द हो । जय गुर्बाबा कहेबेर अपनपन, थारूपन लागठ । थारू समुदायमे रहल गुर्वाहे सम्मान करल अनुभूति हुइठ ।’

गुर्बाबा दिवसके औचित्य
थारू धर्मके संस्थापक तथा लोककल्याण महामानवके विषयमे यी तथ्यगत टमान प्रमाणसे थारू समुदाय सबसे प्राचीन मानव हुइट कना दर्शाइठ । थारू समुदायके अपने लोकदर्शन बा । पृथ्वीके उत्पत्ति ओ जलचर, थलचर प्राणीके उत्पत्तिके अलौकिक घटना गुर्बाबाके बारेमे लिखल ‘गुर्बाबक् जल्मौटी’ महाकाव्यमे उल्लेख बा । गुर्बाबक जल्मौटीहे सुर्खेल फेन कहल बा, जेकर अर्थ मानव सभ्यताके प्रारम्भिक चरण कहेपरना रहठ । यिहिनहे विकासवादी दर्शनके बीजसे फेन अत्युक्ति नैहुइ (थारू, २०६३) ।

डा.गोबिन्द आचार्यके अन्सार वि.सं. १६४४ कार्तिक १० गते शुकके दिन यी गाथा टिपल (बाँकी ३ पेजमे) कहलसे संभवतः यी नेपालके सबसे पुरान लोकसाहित्यमे परठ । गुर्बाबक जल्मौटी, गुर्बाबाके जन्म ओ पृथ्बीके उत्पत्तिसंग सम्बन्ध राखठ । गुर्बाबक् जल्मौटीसे कुछ हरफ ः

हाँ हाँ रे पहिल ट बरसल ढुरिया ढुकुन ।
हरे अब डैया कलजुग घेरल मिरटी भवन ।।१।।
हाँ हाँ रे डोसर ट बरसल गोबरक रेख ।
अब डैया चारीपाऊ कलिजुग टेकल मिरटी भवन ।।२।।
हाँ हाँ रे टिसर ट वरसल कोइला कै रेख ।
अब डैया कोइ नही टिकही मिरटी भवन ।।३।।
हाँ हाँ रे सोन अस झलकट आवै अंगिया कै रेख ।
अब डैया छाइल अंगिया मिरटी भवन ।।४।।
हाँ हाँ रे रुखवा बरिखवा जरजर भइलर अंगार ।
जर–जर धरटी मंडा गीत भैलरे अंगार ।।५।।

गुर्बाबा, थारू समुदायके लाग किल नैहुइल । धर्तीके उत्पत्तिसे प्राणीके उत्पत्ति ओ मानव कल्याणके लाग महामानव, महागुरु हुइल ओरसे सब समुदाय ओ जगतके लाग गुर्बाबा हुइट । तसर्थ, यी तथ्यसे गुर्बाबाके महत्वहे अंगिकार करटी उहाँक महिमा, सन्देश, ओ ज्ञानहे जगतमे बटुइयाहे उहाँके जन्मोत्सव तथा दिवस मनैना आवश्यक डेखाइठ ।

थारू समुदायमे जन्मल प्रथम युगपुरुष गुर्बाबाके व्यक्तिगत परिचय, जन्म अज्ञात बा । मानव जीवनके सक्कु अवधिमध्ये अल्पअवधिके किल लिखित लिखित विवरण प्राप्त हुइल ओरसे फेन अइसिन हुइ सेकठ । गुर्बाबा गृहदेवस्थलमे स्थापित होके पूजजाइठ ।

निष्कर्ष
गुर्बाबा थारू समुदायमे जन्मल युगपुरुष, ज्ञानी, महामानव हुइट । थारू धर्मके प्रवर्तक हुइट । यसर्थ, गुर्बाबा शब्द थारूके धर्म, पहिचान, संस्कार ओ संस्कृति संग जोरल बा । यी कारणसे फेन गुर्बाबा, सक्कु गुर्वा, पूर्खाहुकनके सम्मानके लाग थारु समुदाय ‘जय गुर्बाबा’ सम्बोधन अंगिकार करना जरुरी बा ।

सन्दर्भ सामग्रीः

  • दहित, गोपाल (२०६२) थारू संस्कृतिको संक्षिप्त परिचय—२०६२)
  • डेमनडौरा, सोम (२१ फेब्रुवरी २०१४) http://www.tharuwan.com/
  • Tharu Ashok and Dahit, Gopal (2000), Gurbaba-Tharu-Nepali-English Dictionary).
  • थारू, अशोक (२०६३), थारू लोकसाहित्यमा, इतिहास, कला र दर्शन
  • जय हिन्द विकिपीडिया, https://hi.wiktionary.org/
  • विक्षनरी एक मुक्त शब्दकोष, https://hi.wiktionary.org/
  • Krauskopff, Gisele (1989), Maitres Et. Possedes, CNRS, Paris. (http://www.persee.fr/
  • चौधरी, महेश, (२०६४), नेपालको तराई तथा यसका भूमिपुत्रहरु
  • सर्बहारी, कृष्णराज, (२०६९), थारू गुर्वा र मन्त्र ज्ञान

सोम डेमनडौरा

लेखक जंग्रार साहित्यिक बखेरी नेपालके अध्यक्ष हुइँट् ।

जय गुर्बाबा : अभिवादन अभ्यास

सोम डेमनडौरा

लेखक जंग्रार साहित्यिक बखेरी नेपालके अध्यक्ष हुइँट् ।