संस्कृति बुडि

दुर्जन कुमार चौधरी
२७ असार २०७८, आईतवार
संस्कृति बुडि

संस्कृति बुडि
सबके अलग पहिचान रहठ । हमार थारु जातिनकेफें अपन अलग्गे पहिचान बा । अलग टरटिहुवार बा । बिल्कुले फरक नाचगान बा । अलग रीतिरिवाज, चालचलन, पहिरन बा । फरक भाषा, फरक रहनसहन बा । हमार छुट्टे पहिचान बा । मने आब ओहे पहिचान हेराइ लागल बा । हमार पहिचान का आब अस्टे हेराजाइ । आइ सबजे बैठ्के एक ठाउँमे इ खिस्सा, बट्कुही सुनी ओ अपन सिहरा मेटाइ ।

खोट्काहान घर बरा मजा रहिन । उ घरक् मनै फें बरा मजा रहिंट । अपन घर ढौरा माटिसे पोटके महलहस् बनैले रना । मजा का मानेमे रहिंट कलेसे उ घरक् मनै खोंट्या अपने फें खैना ओ अउरे घरक् मनैन फें खवइना । टब मोरेसे उ गाउँक मनै उ घरक मनैन बरा मजा मन्ना । खोट्काहान बरकक् जन्नी बरकी अन्साही रहिन । खाेंट्या खाइबेर लरका पा मरली । टबसे उ बच्चक नाउँ संस्कृति ढार डेलंै । खोंट्या खैना फें टो संस्कृति बचैना हो कहिके संस्कृति नाउँ ढारडेलंै उ लवँरयक् ।

संस्कृति ढिरे ढिरे खेलट पहुरट बरवार हुइटी गैली । संस्कृति जबसे जाने जुकुर हुइली टबसे अपन डाइ बाबासे सुटिया, नठिया, कारा माँगके घाले लग्लि । अपन गोहीन्संग ठाबुडीक् घर घर खेले लग्लि ।

माटीक भाँराबर्तन बनाके, लहंगा, चोलिया घालके ढुरीम् भात पकाके पहुनी पहुनी खेले लग्लि । ओस्टके खेलट खेलट बरवार होगिली । खोब सुग्घुर बठिन्याँ होगिली संस्कृति । संस्कृति बरा हौसियार लांैडी हुइटी कहिके गाउँक मनै बात बट्वाँइट् । संस्कृति हमार थारुनके चालचलन, भाषा, संस्कृति हेराइटा कहिके अभियान चलाइ लग्लि ।

संस्कृति पहिलेक् जबानाके लौंडी रहिन । हमार जबानामे पहिले टे सबके हाँठेम् टँँँरिया, बाजु, बिजायट, अग्ला पछ्ला सुटिया घालिँट । आब टो ओहो नैघाँलट् डेख्ठुँ अच्कलिक लरकन । घेंचामे टिकहा माला, नौलख्खा हार, सुटियामाला, कानेमे बिइर, बुज्कौह्वा झुम्का, झुम्की, रिंगिया, करैलक गेट्टी, कन्सेहरी, नाकेमे बुलाकी, फोंफी, नठिया का का घालिट का का नै । मँगिया, मगौरी सब हमार पहिचान हेरागिल ।

आब उ जबाना नैरहल । इ कल जुगिया जबाना खराब होगिल बा । संस्कृतिहे जिना मुस्किल होगिल बटिन् । आब संस्कृतिहे लग्ठिन कि मै आब बुह्रागिल बटुँ मने मनसे मै जवाने बटुँ । लकिन आब यहाँ रना मोर कौनो जरुरट नैहो । मै हेरैनु ओ संस्कृति पहिचान हेराइल कलक अक्के हो । संस्कृति मोर नाउँ किल नैहो । महि संस्कृति हुँ, काहेकी मै जौन चिज लगैठँु घल्ठुँ टे संस्कृति बचल बा । आब उ चिज कोइ घल्बे नैकरट् । कोइ बचैनामे नैलागल हो । सबजे टे बचैना नाही बेच्नामे लागल बटँै कलेसे मोर अस्तित्व का रहिगिल । मोर अस्तित्व नैहो । टे मोर जिना का फाइदा । यिहीसे मै मोहना लडियक् ढिकुवा टर गैलेसे हुइठ् । आब मै मुना अवस्थामे पुग्गिल बटुँ । महि कोइ जिवाइ सेकी टे यहे कल जुगिया लरका जिवइहीं टे जिवइहीं, नैटे आब मै मोहना लडियम् पुगल हुँ । लडिया हुइटी कहाँ जैम कहाँनै । इ कलजुगिया लरका महिन खोज्ही टबु नै भेटैही । मै समुन्दरमे मिल्टी कहाँ पुग्जिम् कहाँ नै महिन फें पटा नैहो ।

संस्कृति बुडी हम्रिहिन छोरके जाइ लग्लि कहिके कुछ कलजुगिया लरका जुरमुरैलंै । जुरमुराके हेराइल संस्कृतिहे खोजे लग्लैं । संस्कृति हमार ठन रहल सारा सैमर लेके हेरागिल बटी । चली जाइ खोजे । खोज्ना क्रम अपन घरसे सुरु करलैं । जब अपन घर नैपैलै टे अउरेक घर कहाँ पैही । अपन घर हुइटी अपन परोसी घर खोज्लैं । परोसी घर नै मिल्लीन टे ओस्टके करटी अपन पूरा गाउँ खोज्लैं । अपन गाउँमे नैपैलै, डोसर गाउँ जाके खोजे लग्लैं । वहाँ जाके पुछे लग्लैं ।

हमार संस्कृति हेरागिल बा । कोइ डेख्लो कि नाइ ? हम्रे नै डेख्ले हुइ के हो संस्कृति ? अरे के रहि संस्कृति । हमार गाउँमे भेगुवा हेरागिल बा । डेहरी हेरागिल बा । डेबी डेंउटा हेरागिल बटंै । कोइ कोइ डेबी डुर्गन्हे फेंक डेले बा । थारु ढोटी हेरागिल बा । डोला, डोली, गिटबाँस, सजना, ढमार, सन्ढ्रा, भौका, अँरवा, छट्री, बुलाकी, बन्ठी, ढकिया, छिटुवा, छिट्नी, ढक्ली, धान डैना घाना, सुखुन, खह्री, खेन्ह्वा, सुप्पा, बिँरा, सुप्ली, पौवा, ओड्रा, सब चिज हेरैटी बा । बहुट कुछ टे हेरागिल बा । टबे टो खोजे निकरल बटी ।

चली टो हमार गाउँमे फें नैहो । मै फें जाउँ खोजे । हमार यहाँ नैहो टे आब जाइक् टे परल खोजे काहुँ । नैटे अस्टे करट करट हमार अस्तित्व फें हेराजाइ । आउर टे आउर हमार भाषा फें हेरैना टरखरमे बा । चली जाइ खोजे, अपनेन्के गाउँमे फें बहुट चिज हेराइल बा । चली जाइ आब डोसर गाउँ खोजे । कहि डोसर गाउँ ओर रुकल बा कि ? संघारी हमार संस्कृति हेरागिल बा । अपनेन्के यहाँ बावइ कि नै कहिके खोजे आइल बटी ? खैटे बा कि नै हमार यहाँ । बटाइ टे का का चिज हेराइल बा । सायद हुइ टे बटैम । का का चिज हेराइल बा कलेसे डाइबाबा, राउटमाउ, जेठुवाजेिठनियाँ, बुडिबुडु, बरजनेफें, आउर टे आउर बहुरिया फेन हेरागिल बटी । हमार यहाँ फें नैहो हेरि । यहाँ टे जम्मा मम्मीबुवा, डाडाडीडी, बाजेबज्यै, बाबु किल बटैं । हमार गाउँमे टे डाइ बाबा कना चिज पहिलिही हेरागिल बा हो । हमार फें खोजे जाइ परनाहस् बा । चली जाइ टे खोजे । एकसे दुई, दुईसे तीन होजाब टे आउर मजा रहि । चली जाइ उ वहाँ बिल्गाइटा ।

उ गाउँ बा कि रुकल । सायद पहुनी खाइठुइ टे भेटाजाब । चली जाइ टे । जाइट जाइट डोसर गाउँमे फे पुग्ठंै । वहाँ जाके पुछे लग्लैं । वहाँ गाउँक् मनैफें कठैं । हमार यहाँसे फें बहुट कुछ हेरागिल बा । बटाइ टे अपनेन्के वहाँसे का का चिज हेराइल बा । का हेराइल बा कलेसे बटाउँ । बटाइ ना । लि टो सुनी । ठोकौनी, सोरहौनी, औली, भोजहर, निकासी, हरेरी, नठिया, भल्मन्सा, चिराकि अघरिया, कठुवक् लह्रिया, नमह्रैनीक् चोक्लक् औंग, ठरवाटी ग्रिस (सुरिक मोटके), जाँर छब्ना छब्नी बन्कसके, लस्री बिन्ना लहरा, खटिया बहुट कुछ हेरागिल बा हेरी हमार यहाँसे फें । लेउ टे आब अस्टे करबो । ढिरेसे सबचिज हेरवाइल करबो कि का ?

चली अपनेफें खोजे । अपनेफें बरा कलजुगिया लरका हुइटी काहुँ । सब चिज हेरवाइल करना । पाछे पुस्टा पाछे बुद्धि कहेहस् । पाछेसे जाके आब खोज्बी टे कहु हलहल मिली । पहिलेसे इ अभियान चलैटी टे सायद आबलक नै हेराइल रहठ् । कैसिन आब गाउँ गाउँ खोजक् परटा । यहाँ जम्मा जे भल्मन्साहे बड्घर कहे लागल बटंै । कुछ दिनमे हमार लरका भल्मन्सा कबी टो पुछही । का हो बाबा बड्घर कलक ? भल्मन्सा हो कबी फें । चली अपनेफें बरा पटबिस्सर मनै बटी काहँु । अपन गाउँसे सबचिज हेरवाइल करटी । चली अपनेफें खोजे । नैघोच्चारम् मारम् । बरा संस्कृति हेरवाके बरा बरा बात करुइया ।

खोजे फें टे जाइ परल काहुँ । बचैना टे नाउँ नैलेठी । हमार संस्कृति हमार पहिचान हो । थारुनके गहना हो भर कहे जन्ठी । पहिचान हेराजाइ कलेसे पाछे अपनेक् अस्तित्व फें नैरहिजाइ ।

चली चली । ज्यादा बा ना बट्वाइ । इ गाउँसे उ गाउँ जाइट जाइट फेनसे औरे गाउँ जाके पुछे लग्ठंै । वहाँक् मनै फें हमार बहुट कुछ हेरागिल बा कहिके गुनासो करे लग्ठैं । वहाँक् मनै फें बटाइ लग्ठैं ।

हमार यहाँ टे आउर डेबी डेंउटाके रना घर मरवा हेरागिल बा । डेउठनुवाँ, बेन्ह्वा, कुट्नी बुह्रयक् घर, बनसप्टीफें हेरागिल बा । जहाँ टहाँसे अइबो टे नघान कट्ना चलन फें हेरागिल बा । अपने फें हमार जस्टे दुखयारी हुइ । संस्कृतिके नाउँ निसाना फें नैराखके हेरवा डरली । चली अपने फें खोजे । कि नेतन्के नन्हे बरा बरा बात किल बटवइना बा । बात भर बट्वाइ जन्ना, करे भर नैजन्ना । मुहसे भर करना । हाँठगोरसे भर अक्को करे नै जन्ना । इ अच्कलिक् लरकनके चलावे हो काहुँ ।

ठीक बा चली जाइ संस्कृतिहे खोजे । मै नै जैम ठोर्हे कहटुँ । जैम टे काहँु, नैजाइहस् घघोटे लग्ठी । मै फें टे बुझ्ठुँ । बुझके फें बुझ पचाइल हो कहिके कहे नैमिलल । सबकोइ टे जानटी हमार संस्कृति हेरैटी जाइटा । मने कोइ चाले नैकरट् । कैसिक बचाइ कहिके । आब हम्रे अपने चाल करब टब ना औरे जे चाल करही । चली बठिन्याँ गाउँ ओर खोजे । सायद ओहोर सोरहौनी खाइटा कि केक्रो लरकक् ।

जैटे जैटे बन्वाँमे एकठो गयवाँहे डेख्ठंै । कठंै इ गाउँमे हमार संस्कृतिहे डेख्ले बटो । नैडेख्ले हुँ हजूर । मै गयर्वा मनै नैडेख्ले हुँ हेरी । मै गुरुवा फें बटुँ । मोर फें टमान चिज हेरागिल बा । अपनेन्के कुछ खोजटी कलेसे मोर हेराइल चिज फें खोज डेबी ना । का हो बटाइ सेकब टे खोजडेब । अरे का चिज रहि हजूर । गुरै पाटी करना टे करठँु मने टोक्टा हेरागिल । ओ गैया गोरु चह्रैना टे चह्रैठुँ मने एक दुई ठो गोरु रलक कारण ठंगला, ठाँह्राफें हेरागिल बा । हँस्या बाँका अट्कइना करढुन हेरागिल बा । सेक्बी कलेसे एकठो आउर चिज खोजडेबी करढुनमे घलैना छोटमोट हँस्ली हेरागिल बा । उ जैसिक फें खोज डेबी । मोर नटिया ओ नटिनियक् रक्षा करुइया कोइ नैहो । मोर नटिनियक् मनोबल कमजोर होगिल बटिस । नैटे टोर करढुनमे हँस्ली पलि बा टंै काहे डरैठे कलेसे उ खुशी होजाए । आब टे उहि खुशी परना बहाना फें नैहो । मोर हँस्ली हेरागिल कहिके खोबसुन रोइट् । उ फें कलजुगिया लरका ना हो । का करी रोके चित बुझा लेहेठ । मोर कहल सामान ना बिस्रैहो ना । जैसिक फें पुछ डेहो । टोहनके चाहल चिज सायद आघेक गाउँमे हुइ । जाइ सायद कोइ डेख्ले हुइ कलेसे बटाडिही ।

डोसर गाउँ जैठैं टे उ गाउँमे फें बहुट कुछ हेराइल रठिन । भैंसा भैसिनियाँ बहन्ना मलिया, सिकहर, बैहगा (भरवा बोक्ना लपर लपर), धनवासी, टिक्ठी, अहरी, सिरट्टा, बिंरा, बेंररी, पिरका, कहुरा हेराइल बा कहटी उ गाउँक भल्मन्सा एक्के साँसीम सब चिज बटाइँट् । खोजट् खोजट् मिच्छाके कलजुगिया लरका बन्वाँमे एकठो रुख्वाटर बिसाइट् रहिंट । टब दुईठो लरका पहुनी खाइ जाइ रहिंट । टब ओहे पहुनी खाइ जउइया भेभ्ला ओ भोँडु कना लौण्डा लरका बटैलै । वहाँ मोहना लडिया ओर टमान जे लाइन लागल जाइटैं टुहरे फें टो नै जाइटो वहै । जैबो टे जाउ नैटे उइने फें छोरके चलजिही ।

जब वहाँ जैठै टे नाकम्, कानम्, गोरम, घेचम, माँगम घल्ना सब चिज लाइन लागल मोहनामे सम्याइट रहिंट । बहिंगा, डोला, डोली, गिटबाँस, सजना, ढमार, सन्ढ्रा, भौका, अरवा, छट्री, बुलाकी, बन्ठी, ढकिया, छिटुवा, छिट्नी, ढक्ली, धान डैना घाना, सुखुन, खह्री, खेन्ह्वा, डफला, खन्ढरा, सब हमार पहिचानसे जुरल चिज हमार कोइ वास्ता नै करठो कहिके मोहनामे सम्याइट रहे । कुछ चिज पकरलै टे अब्बा लेहंगा, चोलिया, भोजहर, गुरहीहे पहिचान हो कहिके सहेरले बटंै । भेगुवा हमार समय सुहाउँदो नैहो कहिके उहि पकरबे नैकरलै टे सम्यागिल, हेरागिल । भेगुवक् नाउँ निसाना नैहो । भेगुवा किताबी पानामे किल सीमित बा । संस्कृति महिनहे बचाउ बचाउ कहट कहट कठ्ठैली लह्रियामे बैठ्के सम्यागिली । कहुइया सब कोइ करुइया कोइनै । चली चली कहुइया सब कोइ, नेगुइया कोइनै । इ बचाइ उ बचाइ कहुइया सब कोइ, जी जानसे लगुइया कोइ नैटे पहिचान बची । कहि किल नै, करी फें । टब बचि पहिचान ।

अभिन फेन समय बा । बहुट कुछ बचाइ सेक्ना अवस्था बा । हम्रे वास्ता नैकरब टे अभिन फेन आउर संस्कृति हेरैना सम्यैना अवस्थामे बा । समाजमे अपनेक व्यक्तिगत पहिचान बा । ओकर संगसंगे सामाजिक संस्कृतिसे जुरल फें पहिचान बा । सामाजिक पहिचान बचि टब ना अपनेक व्यक्तिगत पहिचान मजबुट रही । टब अपनमे अपनही गर्व करेसेक्बी । याद करी बिचार करी । अब्बा ध्यान नैडेब टे कबडेब । जब हमार पहिचान जम्मा हेराजाइ, लोप हुजाइ । किताब कापीमे किल सिमित होजाइ टब ध्यान डेब टे हमार पहिचान का रहिजाइ । हम्रे फें पश्चिके संस्कृति हमार जिन्गीमे मिलेहस् हम्रे फें अउरेकमे मिलजाब । टबसे हमार अस्तित्व टे का नाउँ निसाने मेटजाइ । आइ मिली जुरमुरराइ । भाषा संस्कृति बचाइ । अपन पहिरन पहिचानहे आघे बह्राइ । यहाँकिल नाही विश्वमे चिनाइ । आपन भाषा संस्कृति प्रति गर्व करी । टब लरका फे गर्व करही । नै टे कहिही हाम्रा मामा माइजु त थारु हुन यार । पहिचान जोगाइ । लरकनहे थारु भाषा संस्कृति सम्बन्धी ज्ञानगुण सिखाइ । लरकनहे कना मौका नाडी । रणभुल्लमे ना पारी । टब कोइ नैपुछी, बुडु हमार पहिचान हेरागिल कि का ? बिचारी संसकृति हेरागैलि कहिके गा पकरके आँस पोंछे परि । हँसिया लेबो कि बेंट ? टोहाँर आउर मोर सदा दिन भेंट । जय गुर्वावा । जय भाषा । जय संस्कृति । जय पहिचान ।
दुर्जन कुमार चौधरी
कैलारी–६, कैलाली

संस्कृति बुडि

दुर्जन कुमार चौधरी