‘डुटिया’ ह्यारबेर

पुनाराम कर्याबरिक्का
२८ असार २०७८, सोमबार
‘डुटिया’ ह्यारबेर

‘डुटिया’ ह्यारबेर
जब मनै इ धर्तीम पहिल पैला ट्याकट टबसे वाकर जिनगि जिना संघर्ष सुरु हुइठ् । आपन जिनगि जियक लाग संघर्र्ष कर भिरठ् । संघर्ष कर्ना क्रम म समय ओ परिस्थिति लेख वाकर जिनगिक डौरानके घोर्वा कबु कहाँ ट कबु कहाँ पुगाइठ । कबु खुसि कबु डुख झेल्टि जिनगि गुजार परठ् । इ क्रमम दाङ, बाँके, बर्दिया, कैलाली ओ कन्चनपुरके मुक्तककार स्रस्टनहे जोरके एक माला बनाइल एक्ठो छुट्ट मेरिक पोक्रि बिट्खोर्ना मौका मिलल् महि । मोतीराम चौधरीके सम्पादन म निक्रटि रहल ‘डुटिया’ संयुक्त मुक्तक संग्रह म कुछ लिख्ना अवसर मिलल् । इ मौकाम सक्कु मुक्तककार संघरेनके मुक्तक पहर्ना सुअवसर डेलक म मोतीराम चौधरीहे ढक्याभर धन्यवाद डिह चाहटुँ । ‘डुटिया’ मुक्तक संग्रह नौ जहनके लिखल मुक्तकके बख्खारि हो ।

साहित्य वास्तवम समाजके परिपुरक हो । जौन साहित्य समाजके अवस्था प्रतिविम्वित करठ, उह साहित्य जिवन्त ओ चिरकाल सम पलि रहठ् । साहित्यकार हुँक्रे समाजहन जट्रा सन्डेस डिह सेक्ठ, ओट्रहे समाज बड्लट ओ उह मार साहित्य जिवन्त रहठ् । समकालिन साहित्य ह्यारबेर मुक्तक विधा आब लोकप्रिय मान जाइठ । पत्रपत्रिका, विधुतिय संचार माध्यम, सामाजिक सन्जाल या कौनो फेन साहित्यक सांस्कृतिक कार्यक्रम म मुक्तक बिना कार्यक्रम न्वान बिनाके टिना जसिन फिक्कल लागठ । मुक्तक साहित्यके लघुतम काव्य विधा हुइलक मारे याकर बाचन सैलि श्रुतिमधुर हुइलक ओरसे सभा समारोहम स्रोटा डर्सक हँुकनके मन खिंच लेहठ । असिक ट इ लघुविधा हुइलसे फेन कला, कौसलता, भाब गाम्भिर्यताके कारणसे गागर भिट्टर सागर कहल जसिन छुट्मुट रचना या सिर्जना भिट्टर सारा संसार ह्यार सेक्जाइठ् । उहमार हरेक कार्यक्रमम मुक्तकके भारि भुमिका हुइटि आइल बा ।

समाज म रहल कुरिति, कुसंस्कार, अन्याय अत्याचार, व्यभिचार, भेदभाव, छुवाछुट, न्याय उप्परके बुलन्द आवाज जो साहित्य अवलम्बन कर परठ् । समाज म पचसेक्ना सिँगारिक, प्रकृति प्रेम, मानवियता फेरना हँग्या डैह्याँ फेन साहित्य भिट्टर अटाए स्याक परठ् । मने पाछक् समय म विसेस कैख मुक्तक विधा म इ बिसयबस्तु म कलम चलैना साहित्यकार हुँक्र डान्चे कम हुइल जसिन लागठ् । जत्राफेन मुक्तक हेरो, पर्हो मैयाँ प्रेम, मिलन बिछरल, ढोका खाइल, असफल, अभाव, निरासता, मनरख्निक बर्णन कैल, सिँगारिक घोचपेच कैल बिसयबस्तु म आझकाल्हिक मुक्तक ढेर जसिन आइल हो कि ? कना अग्रजहँुकन लागल बाटिन ।

हुइना टे ढेर जसिन साहित्यकार सुरुम सिँगारिक ढार मसे साहित्य म आइल बाट । ओ सुस्ट सुस्ट अउरे विधाम कलम चलैठ । कठ जे मुक्तक विधा युबा ठर्याओनके आपन बिसेस्टा ब्वाकल कविताके उपविधा हो । युबा पुस्टा कलक जो मैयाँ प्रेमके खानि हो । लहलहैना उमेरके प्रतिविम्तित मुुक्तक म हुइना जो हो । उहमारसे इ विधा म मैयाँ प्रेम, मिलन बिछोड, सप्रल मैयाँ, बिग्रल मैयाँ, मनरख्निक बयान, बिडेसके बाध्यटा, जिनगिक भोगाइ जसिन विसयवस्तु अइना जो हुइल । उहमार इ ‘डुटिया’ मुक्तक संग्रह फें अछुट नि हो । जस्टके यिहा इ मुक्तक हेरि ।

मैयाँ कर्टि कर्टि घाट हुइ कलसे ।
खाइल कसम टुटैना बाट हुइ कलसे ।
जिन रुइहो समझ्ख उ अटिटके पल,
मै बिना टुहाँर जिनगि बर्बाड हुइ कलसे ।१५।

मैगर जोर्हेन ज्या चिजफेन स्वर्ग लागठ । संगसंग गफ म मायालुहे भुलाइबेर बिच म घाट हुइ स्याकट प्रेम जोडि बरा चोटगर लागट । अजर्या राटम मिठमिठ बाट कर्टि गाला मर्ना ओ मायालुसे संगे बिटाइल पलके झलझलि याड आइठ । ओस्टेक इ मुक्टक हेरि ।

मोर मनहे भिजैना पवित्र सावनके झरि टुँ
मोर कल्पनाके सड्ड अइना स्वर्गके परि टुँ ।
साट सहेलिनके स्वागतके लाग मैयाँसे बिछैना,
प्यारसे भरखरिक लिहल कोरे लौव डरि टुँ ।५।

आपन मन परल मनैयाँ ज्या जसिन रलसे फेन बरा मैगर सुग्घुर लागठ । चाहे बर्खा सावनके झरि रहे, चाहे स्वर्गके परि या कहि प्यारसे बिछाइल डरि इ मैयाँप्रेम म बहुट युबा लोगन भिजा डेहठ् ।

जिनगि यहाँ पलपल अभाब म काजे ।
बिटट् जाइटा यहाँ केक्रो डबाब म काजे ।
सरकार हे डोस लगाउ या जनता ओस्ट,
लागू नि हुइना संविधान किटाब म काजे ।१८।

समाजके वास्तविकता, सत्यता, इमान्डारिता, डबाब, भुख प्यास, निरासापन, डुख अभाब, बेरोजगारि डेसके हालत, सरकारप्रतिके आक्रोसके विम्वहे चित्रण कैगिल बा । चार लाइन मुक्तक म बहुट खिस्सा कहानि अँटाइल पा जाइट । इ मुक्रक हेरि ।

गरिबबन डुख कप हटैबो सरकार ।
खाद्यन्नके भाउ कप घटैबो सरकार ।
कोइ भुखले टो कोइ बेरामसे मुवटा,
निसुल्कमे डवाइ कप बँटैबो सरकार ।१।

समाजके दायित्व ओ जिम्मेवारी फेन युवा बगालनके कन्ढेम आइल बा । आब युबा हुँक्रे डेसबिकास ओ सम्बृढिके लाग एकजुट होक सरकारके ड्वार ढकढकाइ परल साहिट्य मार्फट जन जागरन फैलाइ परल कना युबनके चिन्टा बटिन ।

डेखैटि ललिपप उ डान डेहल ।
कर्के नाउँ बेचके सब टान डेहल ।
यी सब टुहिनके लाग हो कहिके,
खालिमुलि भासनमे सान डेहल ।१३।

झुठा भासन डेके जनतन भुलैना, भ्रस्टाचारि, कालाबजारि कर्ना नेतन सचेट कराइल ओ खबरडारि करल पा जाइट चार लाइन मुक्तक म ।

आइ संघारि खेट खलियानके बाट करि ।
आइ संघारि थारु स्वाभिमानके बाट करि ।
भुमिपुत्र हुइ थारु हम्रे आदिबासि हुइ हम्रे,
बचाइ अस्तित्व ओ पहिचानके बात करि ।१९।

आपन माटिक मैयाँ किहि नैलागि । महि लागट, थारु जाटिके पहिचान परिभासा रहन सहन रिटिरिवाज किही मैयाँ नैलागि । उह टे इहाँ असिख लिख्ठ ।

सुन्टि सोहावन हमार गित गाइ परल रेउ ।
हमार रिटिरिवाज संस्कृति बचाइ परल रेउ ।
पस्छिउह्वा संस्कृति डिनडिने भोंर पेल्गिल,
लौव पहिरन पुरान बात सिखाइ परल रेउ ।२।

गवाहि डेउ टुँ सत्यबादि बन्के टुँ ।
कमाहि लेउ इमान्डारि बन्के टुँ ।
झट्टे रिसैहि टोहानपर मूर्ख मनै,
बात मानो रेउ ढर्मिजन बन्के टुँ ।२३।

समय अन्सार डुनियाँ फेरजैटि गैल बा । उहे अन्सार आपन भासा संस्कृति रिटिरिवाज साहित्यक डगरसे उठान कर परठ कना चेट आबक युवा हँुकन हुइ परल । साहित्य मार्फत सकारात्मक सन्डेस डेना मेरके भावके सिर्जना कर्ना जिम्मेवारी युवावनके कन्ढेम आइल बा । इ ‘डुटिया’ संग्रह असिन मेरिक विसयबस्तु म सचेट रहल बा । समग्र म ‘डुटिया’ थारु समाजके आवाज उठाइल बा । संग्रह भिट्टर बहुट ढेर से ढेर बाट बट्कुहि अँटाइल बा ।

निम्जौनि म हम्र कसिन मेरिक साहित्य लिख परठ कना चिन्टन मनन ओ कचेर्हि करना ब्याला आइल जसिन महि लागठ । एकर सम्पादक मोतीराम चौधरीहे हार्दिक धन्यवाद कहटि सक्कु सर्जक स्रस्टनहे बढाइ ओ सुभकामना डिह चाहटुँ ।
पुनाराम कर्याबरिक्का
दंगीशरण गाउँपालिका–४ सुकडेवा, दाङ

‘डुटिया’ ह्यारबेर

पुनाराम कर्याबरिक्का