सिकरिया

दुर्जन कुमार चौधरी
२८ असार २०७८, सोमबार
सिकरिया

सिकरिया
एकठो गाउँ रहे । उ गाउँमे एकठो सुखी परिवार रहे । उ परिवारमे चार डाडाभाइ रहिंट । उ चारु डाडा भाइ पह्रल लिखल टे नै रहिंट मने तीन डाडा भाइ सिपार रहिंट । बरका, मंझला, संझला तीनु भाइ काम सिखल रहिंट । ओइनके हाँठम् अपन अपन सिप रहिन । मने छोट्का भर कुछ फेन काम नैजाने । बश हाँठम् गुरटा गोली लेना चलडेना बन्वाँओर सिकार खेले । सिकार खेले जैना मने अक्को गुडीभांग नैमारके लन्ना । चिरैक भुट्ला टक नैनान पैना । खाली दिनभर बन्वँइ बन्वँइ नेंगना घुम्ना आके घिंच लेना । डाडन् भर दिन भर अपन अपन काम करके ओरवाके आके मजासे खैना । छोट्का सिकरिया भर दिनभर नेंगके किल खैना । ‘सिकार खेले जाइट सारे कुछ फें नैमारके नानट । खाली सिकार खेले जाइटुँ कहिके घरसे निकरट दिनभर गायब रहट ।’ कहिके बरका डाडा मनमने भुनभुनाइ लग्लिस । छोट्का रोज सिकार खेले जैलक ओरसे उहिहे ओकर गाउँक् मनै जम्मा जे उहिहे सिकरिया कहिंट । टबसे ओकर नाउँ सिकरिया परगिलिस ।

छोटका जैसिन रलेसे फेन सबके डुलारु रहट । उ रोज दिन जस्टे आझ फेन अपन घरक कुछ नैहुइलेसे फेन दुईठो गुँइ लेके चह्राइ चल डेहेट । ओ अपन जबियामे गोली गुरटा लेके चट्टा ओर चल परल । यहे काम रोज दिन ओकर दिन चर्या बनगिलिस । जब गोरुनके काम रहल बेला ओकर डाडा गोरुनहे खेटुवा लैजाइस । उ दिन भर उ अपन गयर्वा संघरियन संग दिनभर गल्गल्ला मारके, सिकार खेलके किल बिटा डेहे । फेनसे आके खाना खालेहे ।

छोट्कवक् अस्टे हरकटसे ओकर डाडन्के छोट्कक् भोज करना सल्लाह करठंै । नैटे छोटकक् भोज नैकरब टे यी छोट्कवा अस्टे करटी रहि । काम ना काजके, खाए अनाज डबाके अस्टे काम किल करट छोट्का । आब छोटकक् भोज करही परल कहिके सिकरियक् तीनु डाडन सल्लाह करलेठंै । भोज करब टे सायड कुछ काम करट कि कना हिसाबसे अपन सिकरिया भैयक् जम्मा जे बात चलाइ चल डेठंै । बात चलाके अइठैं । मजासे भोज बियाहके टयारी करठैं । लग्गे भोज आइल बेला फें सिकरियक् चाल ढंग नैबड्लल् रठिस् । घरक मनै डाडा भौजी जम्मा जे परेसान रठैं । भोज आइल बेला फेन इ छोट्कवा असिन करठिन । अक्को सिरियस नैहुइन । हमार लाज टे नैकरैहिन यी छोट्कवा कहटी भौजिन फें बरबराइ लग्लिस ।

जब भोजके दिन एकदम आझीकाल हुइल । कहल के जोरसे बलजब्रे सिकरया बन्वाँ नैगैल । डाडा भौजी अपन छोट्का भैयक् डेवरवक् भोज मजासे करठैं । भोज करल कुछ दिन किल घरे बैठल । फेनसे छोट्कवा अपन पुराने खाँचामे गैगिल । गुरटा गोली उठैना बा ओ बन्वाँ ओर जैना बा । छोट्कक् असिन हरकटसे डाडा भौजी फेनसे रिसाइ लग्लिस । एक दिन बरकी भौजी खेल्वारे खेल्वारे कहे लग्लिस–‘अहोइ सिकरिया डेवरवा अपन गोसिनियाँहे अपन सस्रार घुमाइ नैलैजिबो हो । अभिन टे लौवइ लौवइ बटो । लौवइ लौवइ रहल बेला कमसे कम एक दुई दिन टे अपन गोसिनियाँहे सस्रार लेके जैना हो । लौवइ लौवइ रहल बेला टे संगे जाइ परट । संगे एक दुई दिन रबो । फेन संगे लेके आजिबो । बहुरियाहे फेन टे अपन घरे जैनास लागठुइहिस् । कबु नैअपन घरसे डुर गैल हो । एकफाले सस्रार आगिल । अपन घरक मनैन डाइ बाबा, डाडा भौजी, काका काकीहे डेख्नास लग्हिस कि नै लग्लिस हो । टँु फें बात नैमन्ठो ।’ कहिके कलिस । मंझली भौजीफें का कम ओमेहे फेन छांैक डेलिस –‘अहोइ डेवरया अभिन टे लावइ लावइ डमड्वा बनल टो । अपन सस्रार जैबो टे कत्रा मजासे टोहाँर सस्रारिक मनै स्वागत करही कहोटे । टँु जैटी किल मारे मजासे डमड्वा अइलंै कहिके अंगनामे खटिया बिछाके लाव डरी बिसाके टुहिन बैठे डिही । टब टोहाँर सालीनके काँसक लोटामे अट्ना मजासे पानी पिए डिही । टँु फें नैजन्ठो ।’ अट्रै कटिकिल संझली भौजी कहि मरलीस–‘अत्रै किल कहाँ, मारे लावा डमड्वा या बहनुइ अइलंै कहिके मुर्गी मारके कोन्टीमे मजासे डरीमे बैठाके मिझनी खाइ डिही । फिलौडा भात खाइ डिही । कत्रा मजा आइ हो । मै रटँु टे छोरबे नै करटुँ असिन मौका । यी गन्जाहा डेवरवा कहुँ बात मन्हिन हमार कहलक् ।’ अत्रा कहिके तीनु भौजीन सिकरियक् आघे अपन चुट्टर झराके काममे चलजिठीस । मने सिकरिया अपन भौजीक कलक बात नैमानट । अपन सस्रार जैबे जैबे नैकरल ।

एक दिनके बात हो । सिकरिया अपन सिकार खेल्ना खिडाह करट करट डिन बुरटी बुरटी एकठो बरवारे चिरैया अन्ढरा बटैया डाबेहस् मार मारल । आब चिरैयाँ टे मारल मने कहाँ लैजाउ कहाँ लैजाउ करे लागल । अट्रैमे डिमाग अइलिस कि भौजीनके एकडम सस्रार पठैठंै । यी चिरैयाँ लेके सस्रार जाइ परल कहिके सस्रार चल परठ । सस्रार जाके कहट कि –‘लेउ माउ मै चिरैयाँ मारके लन्ले बटँु । टोहरे भुजभाजके पनापुनुके मारकाटके खाउ ।’ कहट । टब माउ कठिस–‘टे डमड्वा यहाँ काहे लानलेलो टे, मारे घरे लैजिटो टे सक्कु जे मिल्के खैटो काहुँ ।’ सिकरिया फेनसे जवाफ घुुमाइल अपन माउहे–‘अरे का बटैबो माउ । सिकार खेलट खेलट साँझफें होगिल रहे । आउर यहोरही बन्वँइ बन्वँइ सस्रार ओर पुग्गील रहँु । टबमारे मै कहुँ सस्रार लैजाडिउँ । घरक मनैफें सिकार खाइट खाइट मिच्छागिल बटंै । रोज दिन टे तीन÷चार ठो चिरैयाँ मारके लैजाडेठँु । रोज दिन सिकार खाके मिच्छाइल बटंै । टबमारे सोच्नु आझ सस्रार लैजाडिउँ कहिके । मै फेन रोज सिकार खैलक मिच्छाइल बटँु । बरु माउ मोर बख्रा आझ ना लगैहो ।’ अट्रा कटिकिल सस्रारिक मनै चिरैयाँहे भुजभाजके पनापुनुके सिकार भात खाइ लग्ठंै । टब अपन डमड्वाहे बेरी खाइ डेठंै । संगे अपने सिकार भात खैठंै । अपन डमड्वाहे साग भात डेठैं । सिकरिया सिकारहे डेख डेखके खोबसुन लोभ लागिस । मने कहे नैसेके । सिकार डेखके खोब ठुक लिले । जब घरक मनै सक्कु जे बेरी खाके सेक्ठैं । सिकार फेन कुछ कुछ बच्गैल रहिन । अपन डमड्वाहे सुट्ना डेठंै । सिकरिया सुन्टी रहट अपन सस्रारिक सक्कु बात । ओट्रैमे माउ कठिस अरि पटोहिया सिकार बच्गील बा, मै सिकार भोकरीमे ढारके टीकठीमे टगाडेहटुँ नैटे रातके बिलरिया आके खाडी । रोज दिन टे बिलरिया अइटी रहट । अत्रा कहिके जम्मा जे सुट्जिठैं ।

सिकरियक् जुन जिउ लागल रहिस् । सिकारके यादमे निन नै परठुइस् । जब अढ्ढा रात हुइल । सस्रारिक मनै जम्माजे निडैलैं । टब सिकरिया सिकार खाइ चल डेहट भोक्टीमन ढारल सिकार खाइ । टिक्ठी मनसे भोक्टी निकारके सिकार खाइक् लाग रहट टे साेंचट अब्बा टे सिकार खाइ लागम टे हड्डी बोली । इहीसे भोकरीमे कपार पेलाके सिकार खैना सोंचट । भोक्टीमे कपार पेलाके सिकार टे खाइट मने भोक्टी अटक जिठीस् । निकरना बहुट कोशिस करट मने भोक्टी कपारमनसे नैनिकार पाइट । आब का करुँ–का करुँ कहटी भोक्टी फोर फारके मेख्रा घल्ले गुड्री घुमुरके सुट जाइठ । बिहान होजाइठ् । डमड्वा उठ्बे नैकरठुइटीन । अस्टे करटी करटी महा दिन होजाइठ । जब सस्रारिक मनै गुड्री फेकैठीस टे डमड्वा झरफराके उठ्के ‘बान ना बान सारन मेख्रा घलैना बान’ कहिके गरकिट्टैले भागके घरे आजाइठ । टबसे सिकरियक् लाजक् ठोप्रा बनजिठीस । टबसे सिकरिया कबु नै सस्रार जाइठ् ।
अट्रै हो बात अट्रै चिट । हँसिया लेबो कि बेंट ? बेंट । टोहाँर ओ मोर सदादिन भेंट ।
दुर्जन कुमार चौधरी
कैलारी–६, कैलाली

सिकरिया

दुर्जन कुमार चौधरी