मोर डाइ

दीपक चौधरी ‘असीम’
२८ असार २०७८, सोमबार
मोर डाइ

कविता
मोर डाइ

अपन खुन पस्नासे महिन सिंच्लो डाइ
नौ नौ महिना अपन कोखमे पल्लो डाइ
अपन अङ्ग अङ्ग टुर्के
रकटके आँस रोके
भिष्म पिटाके जसिन कुरुक्षेत्रमे
टिरके बिस्टरामे सुटल
बट्ठा महसुस कर्टि
यि प्राकृतिक डुनियाँ डेखैलो डाइ
अपन खुन पस्नासे महिन सिंच्लो डाइ
नौ नौ महिना आपन कोखमे पल्लो डाइ ।

जब ढर्टिमे अइनु
चिल्लैनु कहाँ आगिनु
यहोंर ओहोंर हेर्ना कोसिस कर्नु
अपनहे टोहाँर कोनम पैनु
असिन लागल महिन
ढर्टिम् नाइ मै स्वर्गम् आगिनु
हेर्टि रैहगैनु टोहाँर उ मुह
जेमने मै अपन भगवान् डेख्नु
मोर हाँठ माँठ चुम्टि महिन मैयाँ कैलो डाइ
अपन खुन पस्नासे महिन सिंच्लो डाइ
नौ नौ महिना आपन कोखमे पल्लो डाइ ।

मोर रुवाइमे मोर बोलि सुन्लो
महिं चाहल चिजके आभास कैलो
डुढके रुपमे अपन खुन पिवाके
अपन जिउक् खयाल नैकर्के
डेहँक् अपन मुटुक् टुक्रा समझ्के
मोर स्याहार सुसार कर्लो डाइ
अपन खुन पस्नासे महिन सिंच्लो डाइ
नौ नौ महिना आपन कोखमे पल्लो डाइ ।

नेंगक् सिखाइ बेर
हाँठेक् अंगरि पकर्के
गिरल बेला भुइयँम्से उठाके
एक ठप्पर महिन मार्के
मोरसे ढेर रोके
सुफ्लाइक् लग अपन छाटिसे लगाके
डुख सहेक्, संघर्ष करेक्
हरेक मोरमे हाँसके जिअक् सिखैलो डाइ
अपन खुन पस्नासे महिन सिंच्लो डाइ
नौ नौ महिना अपन कोखमे पल्लो डाइ ।
दीपक चौधरी ‘असीम’
कैलारी २ बुसौटी कैलाली

मोर डाइ

दीपक चौधरी ‘असीम’