हे ! भगवान

रामप्रकाश चौधरी
२९ असार २०७८, मंगलवार
हे ! भगवान

कविता
हे ! भगवान

बुद्घि डेउ बुद्घिमान बर्गहे
एक डोसरहे सुन्वे नै कैना
यी विशाल धरोहरमे
बुझना ओ बुझैना
सुन्ना ओ स्ुनैना
हेर्न ओ डेखैना
परिवेशके विकास कैडेऊ
हे ! भागवान
बुद्घि डेउ बुद्घिमान बर्गहे ।

करब टे कहलही रहिँट्
बनाब टे, कहलही रहिँट्
बुद्घिमान लोग
अग्हन ४ आझ
डुर डुर जाइ लागल्
उ ४ फेन आझ
लग्गे लग्गे आइ लागल्
बुद्घिमानके बाचा कसम
आझुसे का करे झुर हुइ लागल्
जोन नैफर्के देशमे अनिकाल बा
आझ फेन
मल्गर माटी बा यहाँ
समठर फँट्वा बा यहाँ
कलकल बह्ना कुल्वाहें
मने फेन अनिकालके संकेत का करे ?
जोन नैफर्के अनिकाल बा
काल्ह रहे आझ बा काल्ह रही
खै टे उ संविधानके खेती
कहाँसे सुरु हुइ , कहियासे सुरु हुइ
यी ढेर प्रश्न मोर मनमे बा,
मोरहस् हजारौं अबुझके मनमे बा
मने हे ! बुद्घिमान्
खै टुहिनके मनमे कहिया आइ ?
खेती कैना टक कहिया बनी ?
हे ! भगवान
बुद्घि डेउ बुद्घिमान वर्गहे ।

तराईमे धान बर्हल्
पहाडमे सन्तोला बर्हल्
हिमालमे स्याउ बर्हल्
यी समाचार अइटी रहेबेर
अइटी रहठ्
संविधानके खेती सुरु नैहुइल्
चिन्तन मनन करुइयन
खाली गनगन कैटी बटाँ
ना कौनो उद्देश्य बा,
ना कौनो लाज,
सिजन नै मिल्ठो कटि
शुभारम्भके साइट नै मिल्ठो ।

प्रमुख प्रमुखके जात नैमिल्ठो
मै हुँ कहुइयनके बात नैमिल्ठो
यम्हे मुह् छोराछोर हुइटी बा,
यी बहसके विषय बनैटी
खै ! संविधानके खेती
३६५ दिनमे कैही पर्ना
करब कैहिके कसम खैलक
३६५ दिन घट्टी रलक
ना कौनो ख्याल हो,
ना कौनो चिन्ता,
आब टे यी सोंच्ना मन डेउ
संविधान लिख्न टन डेउ
आब टे हे ! भगवान
बुद्धि डेउ बुद्धिमान वर्गहे ।

रामप्रकाश चौधरी
महाडेवा डेउखर दाङ

हे ! भगवान

रामप्रकाश चौधरी