बौरहुवा

विन्तिराम महतो
३१ असार २०७८, बिहीबार
बौरहुवा

बौरहुवा
उप्पर हेरठ, डराइहस कर्टि भागो भागो करिया बद्रि आइटा उराके लैजाइ कहटी, डौरटी घसखन्द्रिमे घुसट जाइठ् । कबु घरी हेरटी घबराइहस करठ, हरे सांझ परगील, दिन जाइटा रेउ कैहके हांक पारेहस करठ् ।

अइसिन बात ओकर मुहसे दिन भर निकरर्टी रहठ् । चौकीदारी करेहस चिल्लैटी गाउँ गाउँ घुम्टी रहठ । जहंै पाइठ उहंै उडर जाइठ । जंहर टंहर फेंकल चुरोट बिरिक् ठुटठा पिएठ । फांटल चिठल लुगरा, जिंगजिंगरार भुट्ला, लाल लाल बरेबरे आंखी, बरेबरे डाह्री मोछ पल्ले गल्ली गल्ली बरबरैटी नेगंठ् । पियास लागठ टो हाँठ गोर भुँइयाँमे टेक्के छेगरी भेंरी हस् मुह लगाके सौंक सौंक खोल्ह्वक् पानी पेटभर पियठ । उहिन रोग ना विरोग, सब पचैले बा । छोटछोट लरका उहिन डेख्के भगठंै । गल्लीक कुक्कुर ओकर पाछे पाछे भुँकठंै । कोइ बौरहुवा आइल, बौरहुवा आइल कैहके ढेलाले मरठंै । बौरहुवा स्यांस्यां फ्याफ्या कर्टि भागठ ।

कबु गोरु भैंसिनके पररुन खोब सुहराइठ ओ सोगाइठ । हरे टैं फें इ संसारमे आगिले, बरा कररा परी रे । कनि हर जोटे सेक्ठे कि नाइ ? लर्हिया टाने नाइ सेक्बे टो बेढब पिट्वा पैबे । पेट भर खाइ पैठे कि नाइ कहटी लगलगाइहस् करठ । विचारा इ संसारमे अइटी कि बँढुवा पागिले कहटी बछरुवक् डोरिया छोरे जाइठ कि मनै डेख लेहठंै ओ चिल्लाइ लगठंै । भंैस चोर, भैंस चोर, बौरहुवा भागे लागठ । मनै पाछे पाछे डौरे लगठंै । बौरहुवा बेढब पिटुवा पाइठ ओ बरबराइठ् सारेउ पापीउ एकदिन एकर सजाय पैबो भगनुवँक घरमे टाटुल तेलमे टटौवा पैबो ।

एकदिन बरघरान ५÷६ महिनक् हँठलग्गा लरका ओसरहुवामे सुटाइल रेहे । लरका हाँठ गोरा उठाउठा बलहामे अक्केली खैल्टी रेहे । टब्बे बौरहुवा पहुँच जाइठ ओ बरबराइ लागठ् । हरे छुटीछुटी हाँठ बा इ हाँठसे भरुवा उठाइ सेक्बे कि नाइ । इहाँ टो बरे गरुगरु बोझा उठाइक परठ । बरेबरे पहरुवा नाघेंक् परठ । घाम पठ्रा पानी सहेक परठ । बरे कर्रा परी रे कहटी कैंच कंैच दाँत पारठ । चिबली बाँढठ् । हाँठेक् मुठ्ठा कसठ । टब्बहे लरकक् डाइ आजिठिस ओ चिल्लाइ लगठिस । बचाउ बचाउ बौरहुवा मोर लरका चोराइटेहे । बचाउ बचाउ । सब डौरे लगठैं । बौरहुवा जिउ छोरे भागठ ।

बौरहुवा मिर्चिहान घर पुगठ् । बौरहुवइ डेख्के सुगुवा रामराम कहठ । मिर्चिहाने सुगुवा पल्ले रहठैं । विचारा बौरहुवासे अभिनसम कोइफें अट्रा मजासे रामराम कैहके बोल्ले नाइ रेहे । सुगुवक् बोल सुन्के बौरहुवा नाचेहस् करे लागठ । अपन भुट्ला नोचे लागठ । मुह बकोटे लागठ । एक घचि परसे भुँइयाँमे ढरामसे गिरपरठ । मनै तमाशा हेरे हस् जुट्जिठैं । कोइ हाँसे हस करठ, कोइ डराइहस करठ टो कोइ वहाँसे भागठ । बौरहुवा ओ सुगुवाके हालत अक्के रहठ । डुनुजे मनोरन्जनके साधन बनल रहठंै । ओइनके दिमागी हालत के बुझी ? उ डुनु जे अपन जिन्गीसे निराश होके बिग्रल मानसिक सन्तुलनके उपज रहंै । एक जंगलमे स्वतंत्र उड्ना पंछी (पटटु) मनैनके पिजडामे बन्द रेहे । बिना डाइ बाबक मनैन्के आवाज सिखटेहे ओकर आवाजके अर्थ के बुझी । उ टो बौराइल रेहे । अपन हालतसे तंग आके मनैन्के आवाजके नक्कल करट रेहे । डोसरओर विचार के मारा रेहे बौरहुवा । ओकर गम्भीर विचारके अर्थ के लगाइ । डुनुजे बौराईल रहैं ।
विन्तिराम महतो
जानकी ६ खरर्गौली कैलाली

बौरहुवा

विन्तिराम महतो