हमार गन्तव्य

लक्की चौधरी
४ श्रावण २०७८, सोमबार
हमार गन्तव्य

कविता
हमार गन्तव्य

खै कहाँसे शुरु करुँ ? कहाँ अन्त्य ?
नैडेख्ठुँ कहुँ, हमार थारुन्के गन्तव्य ।
बैठक, ख्याल, कचहरीमे सुन्ठुँ मन्तव्य,
कुहि नैडेख्ठुँ, पूरा करट आपन कर्तव्य ।।१।।

कमजोर बा प्रतिनिधित्व, राजनीति, प्रशासन
कहिया हुइ हमार, नेतृत्वमे देशके शासन ?
एकतासे काम करी, नैहो जरुरी अब भाषण,
मेहनत कर्बी टब ना, घर भर्के हुइ राशन ।।२।।

पर्ही लिखी गुनी बनी, खाइ कोइ जहागरी,
मुद्दा मामिलाके काममे, टग्रासे आघे सरी ।
चुप लागके बैठ्ना नैहो, लर्ना ठाउँमे लरी,
मेहनत कर्बी टब ना, प्रगतिके फारा फरी ।।३।।

शिक्षा, ज्ञान हो हतियार, करी सबजे आर्जन,
भ्रममे नापरी, नैसेक्बी चलाइ आब महाजन ।
दुःख करुइया थारु पुर्खा, मस्ती कर्लंै राजन्
नैपर्ह लिखके दुःख पैलैं, हमार पुर्खा आजन् ।।४।।

राजतन्त्र, प्रजातन्त्र, हेर्ली पञ्चायत ओ लोकतन्त्र,
शासन व्यवस्था फेरगिल, आइल फेर गणतन्त्र ।
बदलगिल जबाना मने, नैबदलल् हमार तन्त्र,
कहिया जग्बी कबतक, हुइटी रही षडयन्त्र ।।५।।

एक आपसमे लर्ठी हम्रे, झगरा फें बहुत कर्ठी,
डोसरके प्रगति डेखके, भित्रे भित्रे बहुत जर्ठी ।।
घरेक बाघ हम्रे, बाहर केक्रो आघेफें नै पर्ठी,
नैपियटसम लाट हम्रे, पिटिकिल गन्जी फर्ठी ।।६।।

युवा पुस्टा डेखाउ डगर, कहाँ हो गन्तव्य ?
कसिक बनी आब हमार, शान मान भव्य ??
गुजरगिल समय बहुत, आझु करी अब्बे,
पर्हबी लिख्बी टबकिल, बन्बी हम्रे सभ्य ।।७।।

लक्की चौधरी
धनगढी ५ कैलाली

हमार गन्तव्य

लक्की चौधरी