सावन सजनी

७ श्रावण २०७८, बिहीबार
सावन सजनी

सावन सजनी

सावन सजनी बरसे झिन बुँदिया रे, टुटे बजरा केवरीयाँ
अरे रानी भिजैं रंगी रे महलीया, पिहा होे परुदेशे ।

यी सावनके महिना । थारुनके पुख्र्यौली पेशा खेतीपाती । ओहेसे खेतीपाती कैटी सजना गैना चलन बा । थारु (पुरुष) ओ मेढारुन (जन्नी) के गैना सजनक् राग फेन फरक फरक बा । खेतीपाती करेबेर जरखुरलमे पिहा संगेसंगे नैरलेसे कौन रानीक् मन खुशी रहिहिस जे । भिजके ओकर आँगक् काँटा टे फुल्ठिस, मने काँटा सँवार डेना पिहा नैरठिस ।

थारु मांसाहारी हुइँट् । मास, मछ्री, घोंघी, सुट्ही ओइनके भन्सम् हरदम छोंपों हुइठिन् ।
सासुनहे खवैबुँ हरनियाँ रे
कि ससुरुवन खवैबुँ मजोरवा
डेवरनहे खवैबुँ बालुरिखिया चिरैयाँ
पिहा परुदेशे ।

यहाँ जन्नी सम्झठ् । मोर शिकारी पिहवा परदेश चलगैँला, नै टे घरभरिक मनैन् मेरमेर चिजीक शिकार खवइने रहुँ । शायद ओकर ठरौवा महा शिकरिया रहल हुइहिस् ।
भाग्यो रे सुगा भाग्यो रे, कजरी वनमे भाग्यो
गोहीक पिहाँ बटाँ रे शिकरिया बत्तीस गोली मरहीँ ।

डोसर सजना हेरबी कलेसे ठोलीबोली हुइल पिहवा, जन्नी लैहर चलजैम कना धम्की डेठिस् टे सजनामे कहठ ।
जायौ रे धानी जायौ रे, टिकुली छोरी जायो
टिकुली हेरी हेरी जियरा बुझैबुँ, सिरहनी ढैके सुटबुँ ।

जन्नी नैरहलमे अझकल टिकली नैहो कना कहावत हो राखल । दुई जन्नी भोज कैना चलन पहिले हमार समाजमें आउर ज्यादा रहे । यी बातक साक्षी सजना बा ।
मनरख्नी कहठ ।
मोरे अंगना होके गैलो छैला,
मही नै जगैलो ।

ओहोर आनक जन्नीसे आँखमिचौली खेलुइया नक्टाहा ठरौवा टिबोली मारठ ।
डुवारी टोर बटंै सग्गे ससुरुवा रे, बहरी टोर जेठवा
सेज पठ्री बटंै टोर समिया, कैसे रे टुहिन जगैबुँ ?

ओहोर ठरवासे अघाइल छिनार जन्नी मनरख्नाहे उयाय सिखाइठ ।
गोरीयम मारी जगैटो रे हम धानी जगटुँ
छोरी जैटुँ रे पिहवा, टोहाँरे संग लगटुँ ।

भोज वियाह होके लैहर घरसे दूर गैलेसे फेन ठरवा बाहेक मन मिल्ना सब्के संघरिया रठिन् । यहाँ मन मिल्ना संघरियक् ठरवा औरे ‘गोही’ टेकल सुन्के सम्झाइ जैठी । मने विवश चेली अपन वेदना असिक सुनैठी ।
अरे, नोन तेल हुइटैँ जोख्टुँ रे, पिहा कैसे जोखौं
गोरु भैंस हुइटैँ बँढटुँ रे, पिहा कैसे बाँढौँ
मुर्गी चिंग्ना हुइटैँ छोप्टुँ रे, पिहा कैसे छोपौँ
मोरे पिहा मरद भँवरवा, छत्तीस फूला लोह्रहीं

थारु समाजके जन्नी हेरी कत्रा लाचार बटाँ । ठरवा जत्रा मस्टाए, छत्तीस फूला लोह्रना जात हो कैहके मन मर्ले रैह जैठाँ । अइसिनमें ओइनहे लैहरके सम्झना अइना स्वाभाविक हो ।
बाबा बटाँ पुर्खा पुरनियाँ रे, भैया बा छोटी
डाडु बटाँ आनेक घर हरोहिया के रे लेहे आइ ?

टरटिहुवार आगैल । लैहरीक मनैं लेहे अइना हो । मने बाबा बुह्रा राखल, भैया छिटीमिटी बा । डाडु आनक घरक कमैयाँ बा । महीँ के लेहे आइ ? अइसिनमे कबुकबु टे जोगिन्याँ बन्नास फेन मन किही नैलागी ।
जोगिन्याँ बजावैं सोनक् बसिया रे
रुपन लागल डोरी हो ।
अइसा मन लागल मयरी
जोगीन होइ जैबुँ ।

मने थारु बठिन्याँ जोगिन्याँ बनल कमे सुन्जाइठ । बेन भन्सरिया, बर्डिन्या जिन्गी बिट्ठिन । एक भन्सरिया अपन बर्डिवा ठरवाहे सजना मार्फत् असिक जगैठी ।
भोर भैल भिन्सरीया रे मुर्गा बाँग बोलेँ
छोरो बर्डिवा अपन बरडा, मैँ पनघट जैबुँ ।
यहाँ बर्डिन्या घारी बहारक् मारे हाली बर्डा छोरे कठी । मने भिन्सहरी बर्डा चह्राइ जैना बात नैआइल, गोरु डोरके औरे ओर सारो सम कलक हो ।

थारुनके जट्ना फेन मन्टर बा, ओम्ने शिव पार्वतीक् डुहाइ बा । सजनामें फेन ओइनके स्थान बा । जस्टे कि खेती करेबेर मलखाद किनक लाग रलक गोरु बछरु फेन बेंचे पर्ना अवस्था आइठ । महादेव महा दिनसम सुट्ठाँ, टब गौरी (पार्वती) जगाइ जैठी ।
गौरी टे गैने जगाइ रे, उठो हो महादेव
बसहा बेंची डारो, छिन भर सुटहो ।

यहाँ गरज परके नैकि बसहा (बरडा) सायद हरहट होके गौरी बेंचक् लग अर्जि कर्ठी । गरज परल रटिन टे महादेव दिन उठट्सम नैसुट्ने रहिंट ।

सजना अपनेमें महिरावन बा । एकर नेपाली, अंगे्रजी भाषम् फेन व्याख्या, विश्लेषनके आवश्यकता बा । इही गायनमें, चलनचल्तीमें समाजसे नैहेराइक डेहक लग सजना प्रतियोगिता कैना, क्यासेट निकरनामे ढिल्वाही नैकरना चाही ।
कृष्णराज सर्वहारी
लमही ७ छुट्की घुम्ना डेउखर दांग

सावन सजनी

कृष्णराज सर्वहारी