बिरहुल बसिया

सुशील चौधरी
१० श्रावण २०७८, आईतवार
बिरहुल बसिया

कविता
बिरहुल बसिया

इतिहासके ओ पन्नाम रकट पस्नाले लिखल्
बर्बरता ओ विभेद भरल
शब्द्म संगीत भर्क
सिस्कर्टी बा, आझ
म्वाँर बिरहुल बसिया ।१।

अपन्हे अन्ढार कोन्ढ्वा मसे निकार्क
सभ्याताके गीत गाए सिखैलक्
उह नादान मर्दावनके
क्रुर बन्धनकम बैठ्लक
जन्याओन्के झन्खन ्
बिट्खोर्टी बा आझ
म्वाँर बिरहुल बसिया ।२।

मनै मनै बीच समानताके
पर्दा भिट्टर
जातीय विभेदके मारम पर्क
टिच्कल मन ह
सढलैटी बा आझ
म्वाँर बिरहुल बसिया ।३।

भुमिसुत्र मुल आदिबासी
जे बन्झ जमिनह गुल्झार पारल
उह, कालान्तरम दासताके जंजीरम
लपेट्गिलक् यथार्थ
खिटुकोर्टी बा आझ
म्वाँर बिरहुल बसिया ।४।

अपन भासा भेस संस्कृतिम
रसाइल रंगबिरंग फुलरिया म्वाँर देश
सांस्कृतिक साम्राज्यम अपचलनले
घायल मोटुहन
सुम्सुमैटी बा आझ
म्वाँर बिरहुल बसिया ।५।

टमान जालझेल अपमान शोषण
दमन ओ अपसंस्कृतिहन
चुनौती डेटी
मुक्तिक गीत गुन्गुनैटी बा आझ
म्वाँर बिरहुल बसिया ।६।
सुशील चौधरी
मजोरबस्ती बर्दिया

बिरहुल बसिया

सुशील चौधरी