भयाँवन रात

भोजराज चौधरी
११ श्रावण २०७८, सोमबार
भयाँवन रात

कथा
भयाँवन रात

सयौं मौजाके मालिक विशाल वावुसाहेव एकठो खानदानी रहिस् । ऐश्वर्यवान वैभवशाली समृद्ध ओ सुन्दर व्यक्तित्वके प्रतिरुप मानजाइ । बाबक् विर्ता पाइल अथाह दौलत ओ एकलौटा छावा रहलेक् ओरसे ऐयास, बिलासी ओ जिद्वी स्वभावके रहैं । दौलतके आडमे बाहेरेसे जत्रै प्रतिष्ठित समाजसेवी डेखैलेसे फें भिट्टरसे ओत्रै क्रुर, तानाशाह ओ अपराधी प्रवृतिके मनैयाँ रहंै उ ।

विशास बाबुसाहेवके दुई सन्तान रहिन । बरका छावा नरेशबाबु, जौन सदरमुकाममे रहैं । छुट्की छावा प्रकासबाबु भारतके डेहरादूनमे पर्हटी रहैं । मलिक्वा विशालबाबु अपन सन्तानके सुख सायलके बहुत ख्याल करंै । कौनोफें चिजके कमी नाइ हुइडेहंै । गाउँसे नरेशबाबुके लग रासन, पानी, घ्यू, तेल, मच्छी ओ सिकारके सुख्टी बराबर पठैटी रहठैं । छोटका प्रकाशबाबु विदामे गाउँ आके एक दुई महिना बैठके चल्जाइँ । मनो नरेशबाबु मुस्कीलसे गाउँ आइँ, खै कैसिन कहना हो, अपन बाबासे बात नाइ मिल्के हो की ? बहुत जल्दी खटपट होजाइन् । उहेमारे आब टो गाउँ अइनाफें छोर डेलेबटैं ।

यहाँ काम करुइया नोकर चाकर हम्रे कुवाँके मेंघीहस् बाहेर दुनियाँ टो डेख्ले नाइरही । सिर्फ अत्रै जानी हमार पालनकर्ता अन्नदाता यिहे मलिक्वा विशालबाबु होइँ । कोठारमे सबदिन सय कडौं मनैनके लग खाना बनुइया बीस पच्चीस भन्सरिया बिप्टैले रहंै । बराबरा मनैनके आवत जावत हुइना कौन के हो ? कुछ पटा नाइ चले । मेर मेराइक् सोरहे व्यन्जन भोजन, पकवान रोज बने । के कत्रा खाइटा कत्रा पिएता ना टो रोकटोक ना कोइ पर्वाह रहे । एक हिसावसे कलेसे गाउँमे भोज टो कोठारमे रोज कहना हस् ।

कोठरुवासे लगभग एक किमी उत्तरओर दश बिगही बगिया रहे । वगियाक् भिट्टर दुइ मंजिलाके हवेली बनैले रहंै । उ जबानाके मसहुर कारीगरीके नमूना रहे उ हवेली । बरन्डाके प्रत्येक खुँटामे मेरमेराइक् कलात्मक बुट्टा ओ सिसा लगाइल रहे । डुवारके चौखट ओ पल्लामे मानव आकृतिके अश्लील अमूर्त चित्र खिचल रहे । पुरान जबानाके ईंट्टा, कठुवासे वनल मजवुत ओ सुन्दर, हेर्ना लायक हवेली रहे । हवेलीमे प्रवेश करेक् लग सडकके पच्छिउँक् पाजर लोहेक् मूलगेट पार करके करिव १५० मिटर भिट्टर जाइपरे ।

विगत २५÷३० सालसे मोर बाबा कोठारी काम कर्टि आइल रहे । मल्कान कामकाजमे इमान्दारी ओ वफादारी निभाके कबुनाइ बिस्रैना गुण लगैले रहे । आब टो बाबा यि संसारमे नाइ रैहगैल मने बाबक् लगाइल गुणके कारण महिनफें बह्रिया काम मिलल् रहे । हवेली जोंटले उत्तरेक् पाँजर दुइ कोठाके दिवाल घर जहाँ मै खाना बनाके खाउँ ओ सुटँु । यिहे मोर बैठ्ना क्वाटर रहे । काम कलेसे हवेलीके रेखदेख कर्ना, मलिक्वा सवारी हुइलेसे गेट खोल्ना ओ आउरफें ४ जाने चौकीदार रहंै । ओइनके रेखदेख करेपरे ।

कबुजवु शहरसे साहेवलोग, पुलिसके उच्च ओहदाके मनै, नेता, कर्मचारीफें आइँ, टब टो कामके ठेकाने नाइ रहे । यहंै छेगरा कटे रंगीबिरंगी डारु चले । काम करुइया मनै नाइ पुगंै टो कोठरुवासे बलावा जाइँ । मलिक्वक् अपन खास मनै बाहेक डोसर मनै नाइ आइ पैना नियम रहे । मल्किनियाँफें सायद यहाँ आइल रही की नाइ ? आइल हुइहीं टो जैबिल्ले हो । मलिक्वाफें सबदिन हवेलीमे नाइ आइँ । अपन खास पहुना पाछर अइलेसे किल हवेलीमे सवारी हुइन । पहुनाहुँक्रे चल्जाइँ टो हवेली सुनसान भयावन भूतमहल हस लागे ।

हवेलीके बरन्डामे दुई जोर लाल्टेन सम्मासी रात बर्टि रहे । हप्तामे एक दुई चो रातके मलिक्वा जरुर हवेलीमे पुग्जाइँ । मै गेट खोलँु, ऐसे पारी बोलंै, मनो जब रातके अक्केली आइँ टो कुछ नाइ बोल्के सरासर हवेलीमे प्रविष्ट होजाइँ । कुछ क्षण पश्चात अन्जान चारजाने नकावधारी कोइ लवन्डी लैके हवेलीमे हाजिर होजाइँ । भुखाइल बघुवक् गुफामे चारा डारेहस हवेलीके चौखट भिट्टर ढकेलके डुवार बन्द करके रातके सुनसान माहौलमे हवेलीके आसपास बिलिन होजाइँ । टब सुरु होए हवेलीके अपन कानून ।

हवेलीके भिट्टरसे बारबार दयाके भिख मागट, दुःखी ओ लाचार कोइ नारीके रुवाइ भरल बोल सुनजाए । सोग लग्टिक् बोलमे करल अर्जि ओ दर्द भरल चिल्लाहट सुनके मोर मनमे डर पैदा होए । मलिक्वक् अइसिन करतुत डेख्के ओकार प्रति नफरत हुइजाइठ् । सुरुसुरुमे नोकरी छोरके चल्जैनास् लागे । फेर अप्नहीं साेंचु बरेबरे नेता, पुलिस, कर्मचारी टो हँुकारे मुठ्ठीमे वटंै । हुँकारे नोनपानी खाइटैं, मै काकरे डोसरके लग अपन जिन्गी बर्बाद करुँ । जैसिन चलटा ओस्टहें चल्टी रही । हवेलीक् भिट्टरके गोपनियता भंग या मलिक्वक् हित विपरित कोइफें काम कर्लेसे कसुर हेरके सजाए डेजाए । यहाँ तक की मौतके सजायफें हुइ सेक्ना नियम रहे । मै फें यि नियमके भिट्टर जाँडर रहुँ । उहेमारे अपन आँखीसे घोर अन्याय, अत्याचार ओ कु–कर्म डेख्के आँढर ओ उ अभागी नारी ओइनके करुणा रुवाइ सुन्केफें बहिर वनल रहँु । रातभरके रांंैडलकली भिन्सहरा जुन झोंटमुरी पंmेंक्रैले बरेगरु पौलीसे हट्मटाइ हस कर्टि हवेलीसे निक्रट डेखठंै । बरन्डामे बरट लालटेमके ढुमिल ओज्रारमे मुह नुकैटी अपन घरे ओर भग्ठैं । काकरे की सुर्योदयसे पहिले कोइ डेख ना लेहे ।

रातभर गायव रहल जवान लवन्डीनके जात घरके इज्जत ओ समाजके भयसे यि बातहे दफन करे परिन । घरसे सयान लरकी वेपत्ता रहलेसेफें घर–परिवारके मनै चिपचाप रहना अवस्था रहे । काकरे की थाना–पुलिसमे जाहेरी करके अपने बड्नाम करैना शिवाय कोइ फाइदा नाइ रहिन ।

सक्कारेके मलिक्वा विशालबाबु गाउँओर पैडर नेंगे निक्रठैं । कबु अक्केली टो कबु अपन सालक् संगे । गाउँक् कुवाँमे पानी भरुइया जवान लवन्डी गग्री छोरके टो कोइ अंगना बहर्टी बहर्टी बह्रनी साठ्ठा छोरके नुके भग्ठंै । जान परटा नरभक्षी बघुवा सामने आगैल । काकरे की सुघ्घुर लवन्डी हुँकार नजरमे परनै नाइहो ।

मलिक्वक् नजरसे बँचेक लाग, खैना लगैना उमरमे बिना सिंगार पटारके पट्पटाइल रहे पर्ना । आजाद पंक्षी हस स्वतन्त्र रुपसे घुमे नाइपैना, विचारी ओइनके नैसर्गीक अधिकार छिनगैल रहिन । हरपल भय ओ त्रासके कारणसे मानसिक तनावसे ग्रस्त रहठंै । जवान लवन्डीनके हँस्ना खेल्ना दिनफें मसानघाट हस सन्नाटा बनल रठिन । विचारिनके यहाँ टक की जेकर भोज वियाह हुइलेसेफें मलिक्वक् आदेश आगैल कलेसे ड्ुलहा अपन लौली डुलहीहे टक पहिल रात प्रसादके रुपमे अपर्ण करे परिन् । दुरदुर गाउँमेफें जैबिल्ले रहल हुइहीं मलिक्वक् रस नाइ चुसल फूला ।

उ भयावन रात जौन मै कबु नाइ भूला पइठँु । सदा दिन अस खानापिना खाके मै सुट्ना तरखरमे रहँु । मालिकके घोरवक् टापके आवाज सुन्नु । मै गेट खोले उहरी लप्कनु । सायद आउर दिनसे कुछ ज्यादै पिले रहंै । पियल अवस्थामे हुँकार सामने ठह्रियैनाफें भय लागठ । घोर्वामेसे उत्तरुनै ओ बिना बोल्ले मटाइल हाँठी हस हवेली ओर पौली बर्हैटी गैनै । टक, टक…………… आवाजके साथ सिढी चर्हटी उप्पर चल्गैनै । मै घोर्वाहे घोरसारमे बाँढके अपन क्वाटरमे आगैनु ।

करिब आधा पौने घण्टा पाछे कुछ मेनैनके पदचापसे मोरे ध्यान उँहरी और गैल । उहे नकावधारी मनै एकठो भर्खरके लवन्डीहे बोक्ले हवेलीमे पल्नै । जे सुन्दर बगैचामे टो आइल विचारी मनो फुल्नासे पहिले कुचिले जाइटहे । सब दिन समान्य लग्ना बात मनो आझ मोर आत्मामे अजिबके डर पैदा करटहे । झसक् झसक् मोर हृदयमे हलचल हुइहस लागे । मै हवेलीक् भिट्टरके हरकटसे अपन ध्यान हटैना चाहठँु, मनो मोर ध्यान उँहरी केन्द्रित हुइटी जाइठ् ।

फेरसे हवेलीमे उहे रोहाढाही, उहे दर्दनाक विलाप सुन जाइठ् । छिनाझपटीके क्रममे गिरल सार सामानके आवाज कबु चुडिया, गिलास, बोतल जैसिन सिसाके समान टुटल छनक सुनजाइठ् । एकठो विवस लाचार नारी कण्ठसे बारबार अपन वचाउके लग विन्ती करट सुनजाइठ् । ओकर करुण आवजमे कोइ अइसिन अर्जी नाइरहल हुइ जौन उ नाइ करहुइ उ सैटानहे । का करे की कुछ घाचि पाछे उ विचारीके प्रतिकारहे विफल पारेक्लग मारपिटके आवाज सुनजाइठ । घनीघनी रैहके दर्द मिश्रित आवाज ढिरेढिरे हवेलीके भिट्टर बिलिन हुइटिगैल । महिन लागल सायद उ हैवानके नगा नाच अपन मंजिल तक पहुचगैल हुइ ।

मै अपन आत्मामे साेंच्नु हे ईश्वर यि संसारमे कोइ भगवान बटैं की नाइ ? पौराणीकयुगमे टो समय समयमे भगवान प्रकट होके अधर्मके नास ओ धर्मके रक्षा करैं । कहिजाइठ् त्रेतामे राम अइनै पापी दृष्ट हुँक्रनके नास करके ढर्मी झक्तजनके, रक्षा कर्नै । द्घापरमे कृष्ण अइनै, धर्मके रक्षा कर्टि द्रोपतीके इज्जत बचैनै । यहाँ टो हर रात बदनसिव निरह प्राणी हुँक्रनके बाली चर्हटा । कोइ यहाँ अइसिन भगवान नाइ हो ? जो इज्जत बचाइ आइ ।

जारके मौसमरहे ढुन्ढी कुहिरासे निला आकासके टोरंैयाहुँक्रे नुकटि जाइटहैं । कुछघची रहिके करिया कुचिल बद्रि उमरे लागल । डेख्टी डेख्टी चुक अराइलहस करिया छाँही सक्कुओर अपन साम्राज्य जमा डारल । घुघु करटि आँधी चले लागल । बिजली चम्कटी, बद्री गर्जटी, मुसलधार पानी बर्से लागल । महिन लागल सायद अइसिन घोर अन्याय भगवानसे फें नाइ डेखगैल हुइ उहेमारे पानी रुपी आँस गिरा डरनै ।

भिन्सहरा जुन पानीफें रुकगैल । मै निर्धारित समयमे गेट खोलेगैनु ओ अपने क्वाटरमे आके खटियामे पसरगैनु । सुट्ले सुट्ले गेट ओर नजर टिकैलेरहुँ । हवेलीसे कौनोफें लवन्डी ना टो निक्रठ डेख्नु, ना टो गेटसे बाहेर जाइटडेख्नु । मनमे शंका उपशंका उब्जे लागल । मै साेंच्टी रहुँ उ विचारी अभागीन कहाँगैल कब गैल टब्बहीं हवेलीक् बरन्डाके खुसुर फुसुरसे मोर ध्यान उँहरी ओरगैल ।

मै बरन्डा ओर हेरे निकर्नु मलिक्वा घवराइलहस भिट्टर बाहेर करट डेखाइटहैं । लाल्टेनके ओज्रारमे हुँकार माठेमे पसिनाके बुँद टकल्ट डेखइठिन् । अज्ञात भयसे त्रसित अनुहार मलिन डेखइठिन । मोर मनमे चस्का लागल, का हुइटा कहिके बरन्डामे आगैनु । जब उहाँक् नजारा डेख्नु टो मोर होस हवस् उरगैल । मै हेर्टिक् हेर्टि रैहगैनु ।

दुई जाने, नकावधारी मनै लटपट लटपट कर्टि हवेलिक् भिट्टरसे एकठो लाश निकारटहंै । मलिक्वा जुन, कोइ डेख ना ले कहिके यहँर उहँर कर्टि सावधानी अपनाइटहैं । जब महिन डेख्नै टब उ मनै लाशहे बरन्डामे सुटाडेहनै । उ लाश अन्दाजी १३–१४ वर्षके लवन्डीके रहे । सायद उ यौन पिपासु सैतानके कु कर्मके बोझ नाइ सहेसेक्के अपन प्राण आहुती डेलेरही । मोर आँखीमे विश्वास नाइ हुइटहे, सिर्फ एकठो बुरा सपना डेखेहस लागटेहे । मोर मन मष्टिष्क शुन्य हुइटी जाइटेहे ।

अचानक मलिक्वक् आवाजसे झस्कनु विपतराम जौन नाइ हुइना रहे उहे होगैल । टोर तकदिर खराब रहे उहेमारे यि सब अपन आँखीसे डेखडरले । आब टुहिन बँच्नाफें मोर लग खतराके संकेत हो । ना रहि बाँस ना बोजी बाँसुरी कहटी अपन हाँठेमेका लठ्ठीसे गुप्ती निकारके मोर ओर झम्काइ जाइटहंै, टब्बहीं एकठो नकावधारी लठैट हुँकार हाँठ पकरलेहल । ओ ठोरचे दुर लैजाके कुछ बात कानेमे खुसफूसाइल ।

आबटक फट्कार बिहानफें होगैल रहे । सडकेमे नेंगुइया मनैनके चहल पहलफें बर्हे लागल रहे । वगियक् चौकीडार हुँक्रनके अइना समयमे हुइगैल रहे । फेरसे उहे नकावपोस मनैयाँ महिन सम्झैटी कहल हेर भैया टैं टो जन्टी बटे हमार मालिक कत्रा भारी मनै होइँ । हुँकार इज्जतमे आँच अइना हमार सबके दुर्भाग्य हो । हमार अन्नदाता कहो या पालनकर्ता यिहे मालिक होइँ । काल्हके दिन मालिकहे कुछ होजाइ या जेल चल्जैहीं टो हमार पालन पोषण के करी ? हमार टो रोजीरोटी छुटजाइ, बालबच्चा भुँखे मरजैहीं । उहेमारे मालीकहे बचाइक् खातिर टंै यि अभियोग अपन उप्पर लैले । समाजके सामने सिर्फ अत्रै कहिडे कि यि लवन्डीके मौटके कारण मै हुँ । मही यकर ज्यान मर्नु । टैं चिन्ता नाइकर मलिक्वा टुहिन एक चुट्कीमे छुटालिहीं । बरेबरे मनै सब मालिकके अपने हुइन यि बात तटहिन पटै बा ।

मै मौन रहठँु । का कहँु कहिके सोच नाइ पैठँु । मने मने कहठँुहे भगवान मै का करुँ । फेरसे उहे नकावधारी लठैट महिन धम्कैती कहठ यदि टंै यि अभियोग अपन उपर नाइ लेहबे टो हम्रे टोर ज्यान लैडरबी ।

मै लच्पचिहै अनारी रहुँ । ज्यान मर्ना धम्की सुन्के डरके मारे रोवाढाही हुइ लागठ । मूह, ओठ सुखे लागठ, हृदयगति अनियन्त्रित हुइटी जाइठ । अब्बेके अवस्था जिन्गी ओ मौट विचके फैसला रहठ् । मै डगरके अन्तिम छोरमे रहठँु, एक ओर यमराज ठहयाइल बा डोसर ओर बहुत भारी डुन्ड्रा बा । मै केहोंर जाउँ केहोंर नाइ जाउँ डुनु ओर टो मौट नजर आइठ् । मै मर्ना नाइ चाहठँु, जिन्गी जिना चाहठँु । मर्नासे टो बौरैना ठिक सम्झनु ओ अपन मनमे निर्णय कर लेहनु ।

एक्के डुक्के करटी चौकीदार ओ काम करुइया कुछ मनैफें जुटगैनै । सब जाने चिपचाप रहठंै, सबके नजर मोर उपर रठिन जान परटा मै अपराधी हु । हवेलीमे सन्नाटा छाइल रहे मोर मूहसे जवाफ सुनक् लाग सवजाने प्रतिक्षाके घरीमे रहंै ।

दिन झुल्के लागल उठटि सूर्य नारायणके दर्शन कर्नु मने मने कहनु मोर रक्षा करहो भगवान, टुहिनसे मोर कुछ नाइ छुपल हो , मै निर्दोष बटँु । टभुन फें अत्राभारी अभियोग लेनामे मजवुर बटुँ कहटी मै ज्यानमारा अभियोग अपन उपर लैलेहनु ।

एक्के घची रहिके ठानासे पुलिसके जीप आइल गाउँके आउरफें बरा बराबरा मनै जुटगैनै । टमान कोनवाँसे मुचुल्का उठायागैल । महिन हाँठमे हत्कडी लगाके पुलिस ठानामे लैगैनै ओ लाश पोष्ट मार्टमके लाग अस्पतालमे पठाडेनै । अस्पतालके रिर्पोटके अनुसार उ लवन्डीहे पहिले बलात्कार पाछे हत्या करल अभियोग महिन लगागैल ३ दिन पाछे ठानासे जेल चलान हुइ लागल । ठानक् गेटमे महिन हेरुइया मनैनके भिर लागतहे । बुरहाइलसे जवान जन्नी या ठारु मनै महिन सराप सराप गरयाइटहंै । कोइ कहे डेखइनामे अत्रा मासूम भोले भाले बा अइसिन भारी अपराध करल कु–कर्मी, यिहिन टो मौटके सजाय हुइना चाही । कोइ कहे ठुइ यि पापीहे टो जिट्टी आगाीमे जराडेना चाही, यिहिनटतो भगवान फें माफ नाइ करही । आक्रोस भरल भिर महिन छिहर फुहर कहनामे कोइ कसुर बाँकी नाइ रख्नै ।

मै जिट्टी लाश वनल बलीके बकरा हस टरे मुटी लगैले रहँु । हाँठमे हत्कडी लगैले डो¥याके जीप टक पुलिस लैजाइटहैं । मै के हँु ? अपने आपहे चिन्हे नाइ सेके लग्नु । हत्तेरी उहे दिन मलिक्वक् हाँठे भर अस्टे बात सोंच्टी रटुँ टो का रहे । समाजमे कलंकके रुपमे जिए टो नाइ परठ । मै कब जीपमे बैठ्नु पटे नाइ चलल् जीप अपन गन्तव्य ओर रवाना होगैल ।
भोजराज चौधरी
जानकी १ धर्मापुर कैलाली

भयाँवन रात

भोजराज चौधरी