केकर हो यि साम्राज्य

इन्दु थारु
३१ असार २०८०, आईतवार
केकर हो यि साम्राज्य

कविता
केकर हो यि साम्राज्य

जहाँ
मोर डाइ
महिन जलम डेहेबेर
असह्य पीरा होके
अइया कहिके चिल्लाइबेर
जोरसे नाचिल्लाउ कहिके आदेश पैले रहि
डाइहुकन चित्कार करनामे
लगाम लगैना
केकर हो यि साम्राज्य ?

जहाँ
मोर डाइहे
बरा छोट लस्रिमे बान्ह्के
निर्धारित दायरासे
डुर नैजाइ कहिके
खँुटिमे ठोकगिल रहे
डाइन्हे खुला नेगे नैडेहक लाग
लोहक खुँटिमे ठोकुइया
केकर हो यि साम्राज्य ?

जहाँ
मोर डाइहे
हुँकार पहिचान ओ सामथ्र्यके
सजना मैना गाइक
निषेध करगिल
ओ सालीभाटुके गीत किल गाइ सिखाइल
डाइन्हे अपन मुक्तिके गीत गाइ छेकुइया
ओ राहरंगी रागमे कैद करुइया
केकर हो यि साम्राज्य ?

के हो उ
जे मोर डाइक् जिभ छिनल ?
मोर डाइक् मुहेमे बुज्जा लगाइल ?
ओ उ बेला किल खोल्ना
अनुमति डेहल
जोन बेला
मोर डाइक् आवाजले
ओकर साम्राज्यके पक्षपोषण करठ ।

अइसिक मोर डाइक् मौलिक आवाजहे
गुमनाम बनागिल ।

मोर डाइ माटिमे गोबर ओ बुसा मिलाके
घरेक भिटा ओ बहरि निपेबेर
ठोरचे अपन आवाज फेन निप्लि

डिहुवा खेट्वामे आलु ओ मकै गबेलेबेर
छोटछोट ढेलासंगे
ठोरचे अपन आवाज फेन गबेल्लि

बर्खामे बियार लगाइबेर
माटिक् भिट्टर बियारिक जर डबाइहस
ठोरचे अपन आवाज फेन डबैलि

निपट निपट
गबेलट गबेलट
डबाइट डबाइट
सक्कु डाइहुक्रे आवाजविहिन बनागिलैं
सक्कु डाइहुकन्के आवाज गुमनाम बनागिल

मै सोंचटँु
आझके दिन
मुहम बुज्जा लगागिल डाइहँुक्रे
कैसिक अपन भासा हस्तान्तरण करहिँ ?
कस्टोके कैडरलेसे फेन
हुँकार मुहम बुज्जा लगुइया साम्राज्यके भासा हस्तान्तरण करहिँ ?
कि, हजारौं बरस पहिले
निपगिल
गबेलगिल
डबागिल
उ बेला हिम्मत करे नैसेकल
प्रतिरोधके भासा हस्तान्तरण करहिँ ?

इन्दु थारु

केकर हो यि साम्राज्य

इन्दु थारु