हजारौं रहर बोक्के नेंगटुँ इ देशमे

सागर कुस्मी ‘संगत’
२४ असार २०७८, बिहीबार
हजारौं रहर बोक्के नेंगटुँ इ देशमे

गजल
हजारौं रहर बोक्के नेंगटुँ इ देशमे ।
सपनक् सहर बोक्के नेंगटुँ इ देशमे ।

मोर मुटुमे घाउ खोज्ठो काहे टुँ,
मै मुटुमे असर बोक्के नेंगटुँ इ देशमे ।

यहाँ बीर सहिडन्हे समझके आझ,
लम्मा सफर बोक्के नेंगटुँ इ देशमे ।

भ्रस्टाचारिन्हे सखाप पारक् लाग,
हाँठम् जहर बोक्के नेंगटुँ इ देशमे ।

यदि भेटैम कलेसे बुद्धहे जरुर कहम्,
शान्तिक् खबर बोक्के नेंगटुँ इ देशमे ।
सागर कुस्मी ‘संगत’
लेखक हरचाली साहित्यिक त्रैमासिक पत्रिकाके प्रकाशक ओ प्रधान सम्पादक हुइँट् ।

हजारौं रहर बोक्के नेंगटुँ इ देशमे

सागर कुस्मी ‘संगत’

लेखक हरचाली साहित्यिक त्रैमासिक पत्रिकाके प्रकाशक ओ प्रधान सम्पादक हुइँट् ।