नै बनल मोर देश

लक्की चौधरी
२४ असार २०७८, बिहीबार
नै बनल मोर देश

कविता
नै बनल मोर देश

पोर, परार, चिरार
मोर देश बन्ना आश !
मने
बटिया हेरट् हेरट्
पुगे लग्नु आझ पचास
टौन फें
नै बनल मोर देश ।।

जब गोमन्ह्याँ करुँ
पञ्चायतके छाँही !
जब पैला सर्नु
धुँवा–बारुदसे देश रुइल
निर्दलसे बहुदल
व्यवस्था परिवर्तन हुइल
टौन फें
नै बनल मोर देश ।।

मनै मरके
व्यवस्था परिवर्तन कर्ली
पुरानसे लावा लन्ली
आब टो
हुइ विकास कली !
सबजे ओहे सोँच्ली
टौन फें
नै बनल मोर देश ।।

राणा, पञ्चायत, राजतन्त्र
प्रजातन्त्र, लोकतन्त्र–गणतन्त्र
सक्कु शासन व्यवस्था हेर्ली
देश बन्ना आसमे झण्डा बोक्ली
खाली पइला,
ओहो टाटुल सडक !
टौन फें
नै बनल मोर देश ।।

देश बनैना सपना
सबजे डेखैलैं,
आझ, काल्ह, परौं, लरौं
कहटी कहटी भुलैलैं !
द्वन्द्व, लराई झगरा करैलैं
देश बन्ना आशमे
टमानजे बन्दुक पट्कैलैं
टौन फें
नै बनल मोर देश ।।

राणा, शाह, चन्द, थापा
गिरि, रेग्मी, देउवा–कोइराला
भट्टराई–खनाल–अधिकारी
दाहाल–नेपाल–ओली !
सक्कु जनहन हेर्ली
टौन फें
नै बनल मोर देश ।।
लक्की चौधरी
धनगढी ५, कैलाली

रचनाः २०७६ वैशाख २७ गते

नै बनल मोर देश

लक्की चौधरी

लेखक गोरखापत्र दैनिकके उपसम्पादक हुँइट् ।