सपनक् महल

रामप्रकाश चौधरी ‘अन्धकार’
२० श्रावण २०७८, बुधबार
सपनक् महल

कविता
सपनक् महल

लाल रंगके पन्नामे
लाल अच्छरसे
बनैटी बटुँ
जिन्गीक तस्बीर
ओ बारबार पह्र्रटी
गहिराइमे ढब्लँगिया मार्के
फैलैटी बटुँ डुर टक नजर
खबरदार ! साँछी बा टीकापुर ।

जहाँ मै अपन मनके भासा बोल्टुँ
टुँ मोर डिलके ढर्कनसम् नैबुझ्ठो
जहाँ मै पानी पानी हुइटुँ
टुँ सुख्खा हुइटो
आझ पलपलमे मोर सपनक् खिलाप
उर्टी बा बम बारुदके ढुँवा
हुइटी बा सपना चक्नाचूर मोर
खबरदार ! साँछी बा टीकापुर ।

उज्जर रंगके पन्नामे
उज्जर अच्छरके खेटी
शान्तिक् संकेत रहे
चिप्पे चिप्पेसे चल्टी रहे
आझ मोर खिलापके हर जवाफ
पहिचानके खेल मैदानमे
लाल अच्छरसे हुइ टोहाँर
खबरदार ! साँछी बा टीकापुर ।

सोंच्टो मोर घर भुवा बनाके
सपनक् नामोनिशान मेटा डेउ टे
भ्रममे बटो टुँ दिवा सपनामे
सोंच्टीटो कफन डेना मही टे
प्राण डेना जग्गामे
सुनो आझ सिकलसेलसे फेन
नैडगमगाइल हो मोर धरोहर
खबरदार ! साँछी बा टीकापुर ।

रामप्रकाश चौधरी ‘अन्धकार’
महडेवा डेउखर दांग

सपनक् महल

रामप्रकाश चौधरी ‘अन्धकार’