खुट्ली चिरैंयाँ

दुर्जन कुमार चौधरी
३१ श्रावण २०७८, आईतवार
खुट्ली चिरैंयाँ

कथा
खुट्ली चिरैंयाँ

जबानाके बात हो । एकठो देशमे एकठो बहुट सुन्दर सुग्घुर गाउँ रहे । उ गाउँ मनिक मनै बहुट मिलनसार रहिंट । सब काम सामाजिक रुपमे मिलके करिंट । समाजमे आइल सुख दुःख एक आपसमे बाँटके निप्टाइँट् । समाजमे कौनो समस्या परटी किल भल्मन्सक् ठन जाके गाउँ मनिक मनैन हार गुहार करके जैसिक हुइलेसे फेन उ समस्याहे कैसिक समाधान करे सेकजाइ कना बातमे लागिंट । उ गाउँमे सब मेरके परिवार रहे । कोइ गरीब रहे टे कोइ धनी । कोइ भरल पुरल रहे टे कोइ माँग्के खैना मेराइक फेन रहिंट । गाउँमे सब जात जाति रहिंट, टबफें सबजे मिल्के बैठल रहिंट । गाउँ बिल्कुल बन्वाँसे घेरल हराभरा रहे । टबमारे उ गाउँक नाउँ रहिस हराभरा गाउँ । गाउँ मनिक मनै आपन घरके आँजर पाँजर रुख्वा लगाके गाउँहे ओस्टही हराभरा कैले रहिंट । उ गाउँके रौनके बिल्कुल फरक रहे ।

बहुट पहिलेक बात हो । ओहे हराभरा गाउँमे एकठो खोब छोट याने कि सुखी परिवार रहे । उ परिवारमे बुर्हिया ओ बुर्हवा किल रहिंट । उ घरक मनै बहुट मुर्गी मुर्गा पल्ले रहिंट । उइनके गुजारा ओहे मुर्गी मुर्गा बेच्के किल होजाइट रहिन । खेतीपाती ढेउर रलेसे फेन उ परिवारके घर खर्च मुर्गी बेंच्के किल चलजाइन । टबमारे मुर्गी अपने नैखाके बरु ओहे मुर्गी बेंच्के अपन गुजारा चलाइँट् । ओहे घरक बुर्हवाहे मुर्गा खाइ नैपाके लागिस रिस । एक दिन बुर्हवाहे लग्लिस रिस । बरबराइ लागल अपन गोसिन्याँहे सुनाके । सारक मुर्गी पल्बो किल पल्बो । खाइ ना पिए मिले, गुहे किल डब्बो । कबुकाल्ह टे खाइ मिल्ना हो । जहोर हो ओहोर पिल्टुँगे किल डेख्बो । ना कबु् बिसी आए । सब मुवाके लैजाइँट् । कुछ टे खाइ मिलट मुअल उअल कुल । एक दिन बुर्हवा बन्वाँमे गिल टिहुवारके लाग पट्टा टुरे । पट्टा टुरे गैल टे आइबेर झंलीमे डेख लेहल ढोढर रुख्वा । ढोढर रुख्वा डेख्के उ जुक्ति सोचे लागल । जुक्ति सोचल उ घरे गैगिल ।

अरी बुर्हिया हम्रे दुईठो ठेपर किल बटी यानि कि दुई जाने किल बटी । हम्रे बुर्हाव टे हम्रिहिन के पाली रि बड्डी । सहि बात कलो होइ बुर्हवा । मने का करी टे ? कुछ उपाय फेन टे नैहो । मै एकठो जुक्ति सोच्ले बटुँ । आझ बन्वाँमे गैल रहुँ पट्टा टुरे टे खुट्ली चिरैंयँक् ठाँट डेख्नु । उ खुट्ली चिरैंयाँहे पालब टे कैसिन हुइ । बरवार हुइटे बेंचब टब ढेउर रुप्या आइ । टब हमार जिन्गी हम्रे चैनसे बिटाब । मने रोज मुर्गी मारके रिझाके डेहे जाइ परी । खुट्ली चिरैंयाँ मुर्गीक शिकार किल खाइट् । टब बुर्हिया कहट उ टे होजाइ बुर्हवा । जब ढेर रुप्या मिली कलेसे उ मुर्गी खवइना केहका डर । कुछ चिज पाइक लाग कुछ चिज जवाइ परट । बुिर्हया मन्जुर होजाइट खुट्ली चिरैंयाँ पल्ना । टब बुर्हवा डेखाइ लैजाइट खुट्ली चिरैंयँक् ठाँट । यहे ढोढर रुख्वामे ठाँट बटिस । टै रिझाके यहाँ शिकार भात ढारडिस ओ खुट्ली चिरैंयाँ मै टोर लाग शिकार भात नानडेनु कहिस । टब खुट्ली चिरंैयाँ बोली खुट्रुंग कहि टे टै शिकार भात ओहै ढारडिस । खाके सेकी टे फेन भाँरा लेके आजाइस कैहके अपन बुर्हियाहे खोब सुग्घुरसे सिखा डेहेट ओ डुनु जे संगे अपन घरे चलडेठैं । बुर्हिवा चलाक खेलक लाग अपन बुर्हियाहे लम्मा डगर डेखाइट ओ अपन लाग छोट डगर बनाइँट् ।

डोसर दिन बुर्हवा सक्करही उठट ओ बुर्हियाहे बिना अहरैले अपनही अपन मनसे काठी चिरे लागट । अइसे दिन टे बुर्हियाहे ४ बात सुनाइक् परिस मने उ दिनसे बुर्हवा अपन मनका काम करे लागल । बुर्हियाफे काम करट डेख्के खुशी होजाइट । बुर्हवा अन्गुटही उठके खोब मजासे मुर्गी मारके पनाके रिझाइ डेडेहट अपन गोसिन्याँहे । बुर्हिया खोब मजासे रिझाइट ओ चलडेहेट मुर्गीक शिकार भात लेके । बुर्हिवा आघे छोट डगर सोझ जाके आघे ढोढर रुख्वामे पेलजाइट् । बुहिंयाहे लम्मा डगर डेखैलक् कारण बुर्हिया ढिला पुगट । बुर्हिया शिकार भात लेके पुगट टे खुट्ली चिरैंयाँ मै शिकार भात लेके आगीनु, ले शिकार भात कहटीकिल बुर्हवा बोलट खुट्रुंग । टब बुर्हिया शिकार भात खवाइट ओ आजाइट भाँरा लेके । बुर्हवा फेन शिकार भात खाके छोट डगर आके आघे घरे बैठल रहट । जब बुर्हया घरे पुगट टे बुर्हवा कहट खवैले खुट्ली चिरैयाँहे खाना । टब बुर्हिया कहट हाँ खवइनु । टुँ जस्टे कलो ओस्टके कनु टे बोलल खुट्ली चिरंैयाँ खुट्रुंग कहिके ।

टेसर दिन फेन ओहे खिडा करठंै । चौठा दिन बुर्हिया कहट–आझ टे हेरे परी खुट्ली चिरैंयाँहे । कट्रा बरवार हुइल बा । रोज जाइट जाइट मिच्छा गिनु । गोर फेन पिराइ लागल । आझ टे हेरही परी कहट । फेन बुर्हवा सम्झाइट ओ कहट–अब्बेहे का हेरबे री अभिन टे भरखर भुट्ला जामठुहिस् । एक दुई अठ्वार पुगेडेना हो टे हेरना हो । सस्सा नैरहलहस करना । फेन बुर्हिया बात मानजाइट । ओस्टके एक दुई अठ्वार सम टे पालल खुट्ली चिरंैयाँहे ।

आब दुई अँठ्वार पुग्ना दुई दिन रठिस टे फेन कहे लागट । आझ टे मै हेर छोरम कहिके कहट । फेन बुर्हवा सम्झा डेठिस ओ उ दिन फेन नैहेरट । अस्टे करट करट घरक् मुर्गी जम्मा ओरागिलीन । खाली ठरकेंसरा मुर्गा किल रहिजिठिन । टब बुर्हिया मनमने कहट मै जब जब खुट्ली चिरंैयाँ हेरक लाग रठुँ, टब टब बुर्हवा हेरे नैडेहट । आझ टे हेर छोरम् कहिके बिना बटैले शिकार भात लेके चलडेहेट । बुर्हवा फेन छोट डगर जाके ढोढर रुख्वामे जाके बैठ जाइट । बुर्हिया कहट–खुट्ली चिरैया मै शिकार भात लेके आगीनु । ले शिकार भात कहिके ढोढर रुख्वामे ढार डेहेट । खुट्ली चिरंैयाँ बन्के बैठल बुर्हवा शिकार भात खाइ लागट टब बुर्हिया ढोढर रुख्वामे लेरी उच्याके बरबट्टीक सेक नै सेक्के हेरट । मुस्किलसे हेरपाइट टे अपन बुर्हवाहे मस्टसे फल्ठी मारके आरामसे ढोढर रुख्वामे शिकार भात खाइट डेखट ।

बुर्हिया रिसक मारे चुर होजिठिस । पूरा १२ बरसक् रामायण ओहैं सुनाइ लग्ठिस । भुजा फुटेहस परपर परपर गरयाइ लग्ठिस । मुहमे टे जानोकि सारा संसारके शक्ति आगिलहस् गरयाइ लग्ठिस । मुहम् माछीफे बैठे नैडेठिस । अट्ना जल्डी गरयैठिस कि १२ बरसक रामायण १ दिनके १ घण्टामे ओरवैनाहस् । बुर्हवा जुन मुसुर मुसुर हँस्टी रहिजाइठ । ‘अट्रा ढेर मुर्गी रहिंट मारे इ डैहजरक् कारण सब मुर्गी खाडारल । मारे खुट्ली चिरैंयाँ पाली हुँ । ओहे खुट्ली चिरैंयँक् कारण आब ठरकेंसरा मुर्गा किल बँचगील बा । मै फें अन्ढरी टे हुइटुँ बिना बात बुझ्ले, बिना हेरले औरेक बात मन्नु’ कहिके बुर्हिया खोबसुन बरबरैटी घरे चल जाइट । रिसक मारे बुर्हिया बँचल बिठा ठरकेंसरा मुर्गाहे मारट । पनाइँट् रिझाइट् ओ खाइट्, बाँकी बचलकुचल भौकामे ढारट । बुर्हवा चिप्पेसे आके ओहे भौकामे पेलजाइट । बुर्हवा भौकामन ढारल शिकार खाइट ओ भौकामे निदा जाइट । बुह्रया भौका बिना हेरले उच्याइट टे उच्या नै पाइट । अपन परोसी लग्गेक घरक मनैन भौका उच्याइ बलाइट् ओ उच्याके अपन लैहर चलडेहट । बुर्हिया जाइट जाइट बन्वाँ पुगट टे बुर्हिवाहे मुटास लग्ठिस टे भौकामे मुट डेहट । मुट जब भौकमसे चुहे लग्ठिस टे बुर्हिया कहट–यहँरी मै भौकामे बजारसे नान्के महकनी तेल ढरले रहुँ । ढरकगिल कि का ना अँराइ लागल कहिके खोब हाँठम् लेके कपारीम मसोरट ओ लगाइट् । फेनसे एक कोस दुर जाइट टे फेन बुर्हवा मुट डेहट । फेन बुर्हया कहट–यहँरी मै बँचल मुर्गक शिकार ढरले रहुँ । ओहो ढरक गिल काहुँ, खोबसुन शिकारक झोर अराइटा, चुहटा । अट्रा मेहनत करके पकैले बटुँ । कहाँ ओस्टे जाइ डेना हो, फोकट्या चुहाटा । जस्टे चुहठिस ओस्टे चाटट् । चाटट् टे नोनार लग्ठिस । यल्लो टिना टे नोनार रहे काहुँ । रिसक मारे टिना कैसिन रहे कहिके फेन पटा नैपैनु, नोनार रिझा मरनु काहँु ।’ कहटी बुर्हिया जैटी बा लैहर । दुई कोस दुर नेंगके बरबट्टीक् लडिया पुगट । लडिया पुगट टे कहट–शिकारक् झोरफें चुहटा । आब मिझ्नी खालिउँ कहिके भौका पटकट । काहेकि भौका मजासे उटारे सेक्ना क्षमता टे होनै । बरबट्टीक् उच्याइल भौका उ फें । भौका पट्कटी किल भौकमसे बुर्हवा फेल्कुटसे बाहेर निकरट । फेन गरयाइ लागट बुर्हिया अपन बुर्हिवाहे–‘ठोरचुन बँचल शिकार फेन नैछोरले टोरी कोर्हिया निंगोरवा । आब टुहिन छोरके चलजिम जिन्गी भरके लाग ।’ कहटि खोब बरबराइट ओ गरयाइट बुर्हिया अपन बुर्हवाहे ।

बुर्हवा मुस्कुरैटी कहट–अहोइ प्यारी मोर बुहिया, टोहाँर बाहेक के बा मोर जिन्गीमे । टुहि टे मोर साहारा हुइटो । टुहि मोर प्राण हुइटो, टुहि जिन्गीके बँच्ना आधार हुइटो । अट्रै किल नैटोहाँर फेन टो यी जिन्गीमे कोइ नैहो । ठरवा मेहरवनके झगरा टे एकदम हुइटी रहट । अट्रैमे दुखी होजिबो टे घर कैसिक चली । मोर बात छोरो टुँ अक्केली लैहरमे कट्रा ढेर दिन बैठ्बो । लैहरिक मनै एक दिन मजा मन्ही दुई दिन मजा मन्ही । एकदम ओहे मेराइक् मजा ठोरो मन्ही । एक दुई बात सुनाइ डरहीं । बिना बात सुन्ले मजासे खाइ नैपैबो । यिहीसे मजा टे हमारे घर बा । मजासे जिबो । ज्या पैबो ओहे खैबो । टबमारे एक दिन जैसिक फेन घुमके अपन लैहरसे सस्रार घर अइही परी । बरु चलो घरे जाइ डुनुजे मिलके अपन घर संसार चलाब कहटी गजब सम्झाइल अपन बुर्हियाहे । टेलारमेलारसे बात बट्वाइल ओ अपन गोसिन्याँहे मजासे डग्रीमसे घुमाके घरे नानलेहेल । टबसे एकआपसमे मजासे मिलजुलके जिन्गी कटाइ लग्लैं, बिटाइ लग्लैं । अट्रै हो खिस्सा कहानी । हँसिया लेबो कि बेंट ? बेंट । टोहाँर ओ मोर जिन्गीभर भेंट । जय गुर्बाबा ।

दुर्जन कुमार चौधरी
कैलारी ६ कैलाली

खुट्ली चिरैंयाँ

दुर्जन कुमार चौधरी