अस्टिम्की

सागर कुस्मी
११ भाद्र २०७८, शुक्रबार
अस्टिम्की

बालकविता
अस्टिम्की

गुर्ही मानके आइल अस्टिम्की घरघर ।
मुर्घी बोल्नासे पहिले खैठैं रातके दर ।।

लहा खोरके डाइ समान जुटाइल ।
अस्टिम्की टिक्के रातभर गीत गवाइल ।।

डिडिक संगे मै फे भुख्ले बरट रहुँ ।
दिनभर भुख्ले सुक्कुर सुक्कुर करुँ ।।

बाबा बनाइल मेरमेरिक भिटामे चित्र ।
अस्टिम्कीमे जसिकफें चाहठ चरंगिक् सिढ्रा ।।

छुटुकी भैया लागल काटे खिरक चोंटी ।
डुवारिम् उछिट्के फोर डेहल कर्वक् टोंटी ।।

बिहान लडियम् अस्राके फरहार कर्ली ।
खँरिया फुलौरी हलुवा रोटी फेन खैली ।।

ढकिया भरके अग्रासन डेहे आइल नाना ।
साँहिजुन नानक् संगे खोब खैनु खाना ।।
मिति २०६९/४/२५/५
सागर कुस्मी

अस्टिम्की

सागर कुस्मी