गजल: गुरही बिसेस

सागर कुस्मी
४ भाद्र २०८०, सोमबार
गजल: गुरही बिसेस

गजल: गुरही बिसेस


इ गुरही इ खुशी आइल फेनसे ।
घर घरमे चम्पन छाइल फेनसे ।

रंगबिरंग लावा गुरही मेरमेराइक,
कहुँ हड्यार कहुँ काइल फेनसे ।

दिदिबहिनीयन लहंगा बिलोजमे,
चुरिया गुरियामे सजाइल फेनसे ।

केराउ चाना मकैक लवारैलवारा,
भुजागुडा सक्हुन खवाइल फेनसे ।

बरस भरिक रोगबिरोग खाटीखुटा,
खान्जखिन्ज पुरा हटाइल फेनसे ।

पुर्ख्यानी संस्कार पुरान बातचित,
लावा लर्कन बात बटाइल फेनसे ।

गाउँघर सहर बजार चम्पन कैके,
थारुनके इतिहास रचाइल फेनसे ।
सागर कुस्मी

गजल: गुरही बिसेस

सागर कुस्मी