हर दिन हर एक लावा समस्यासे जुझटुँ मै

तिलक डंगौरा
२० भाद्र २०७८, आईतवार
हर दिन हर एक लावा समस्यासे जुझटुँ मै

गजल
हर दिन हर एक लावा समस्यासे जुझटुँ मै ।
झरफरसे गिर्के झरफरसे हरबार उठटुँ मै ।

प्रदेशमे ओके घर परिवारमे रहल डाइबाबा,
लर्का पर्कनसे संगे बैठके रमैना झुकटुँ मै ।

किहिन सुनाउँ किहिन कहुँ इ मनके व्यथा,
टबेमारे मनके बात मनमे प्यारी ठुनटुँ मै ।

कुछ हटसम मोर नाइ मोर लर्का पर्कनके,
मजा भविस्यके लग मेहनत कर्टि डगुरटुँ मै ।

ढेर चिन्ता ना लेउ डाइबाबा ओ टुँ फें प्यारी,
मोर छुट्टी होगैल इहे डसियामे घरे पुगटुँ मै ।
तिलक डंगौरा
जानकी १ दुर्गौली कैलाली

हर दिन हर एक लावा समस्यासे जुझटुँ मै

तिलक डंगौरा