परदेशके बट्ठा

कृष्णराज सर्वहारी
२९ भाद्र २०७८, मंगलवार
परदेशके बट्ठा

परदेशके बट्ठा

परदेशिन्के बारेम बहुट पोस्टा लिखल बा, सलिमा बनल बा । यी बिचेम बहुट थारु युवा फेन परदेशमे पस्ना चुहैनाके संगसंगे अपन देशके अवस्था समझके अपन मातृभासामे कलम फेन चलैटि रहल डेउखर महडेवक् आरके स्वागत ।

केंवाँर एकल गजल संग्रहके लाग साहित्यामे स्वागतहे स्वागत बा । गजलकारहे अम्रिकामे बैठ्के रोजिरोटीक् लाग अंगे्रजी बोल्ना बाध्यता बटिन् । लकिन उ सपना टे थारुमे डेख्टि बटाँ, जेकर प्रमान हो यी पोस्टा । विदेशमे बैठुइया स्रस्टन मैं हरडम आत्मपरक निबन्ध लिख्ना अर्जि करठँु, मने ओइने खै काहे गजलमे किल झिझ्कल बटाँ, चलो कुछ टे लिख्टि बटाँ, यीहे बरा बाट हो ।

केंवाँर पोस्टा सम्पादन करेबरे मनेम फुट्फुट्टि खेलल् कि एकर शब्द बनौट कसिक कर्ना हो ? २०७३ सावनमे आदिबासी जनजाति उत्थान राष्ट्रिय प्रतिष्ठानके आयोजनामे घोराहीमे कैगैल डैगौरा थारु भाषा मानक लेखनमे कुछ नियम टय हुइल रहे । जेम्ने ञ, ण, श, क्ष, त्र, ज्ञ, त, थ, द, ध अक्षर थारुन्के मुँहेमसे उच्चारन नैहुइना ओरसे नैबेल्सना, सक्कु शब्द ह्रस्व लिख्ना कहिगैल रहे । उहे अन्सार मैंयक पहुँरा (२०७३) गजल संग्रहके सम्पादन कैगैल रहे । मने बर्सौंसे बेल्सल शब्दके रुप एकफाले बडलके अन्खोहर बिल्गाइल ओर्से व्यवहारिक कठिनाइ आइल । ओहेसे यी पोस्टामे मध्यमार्गी ढार अन्सार कुछ बडलाउ, कुछ लावा प्रयोग कैगैल बा । नेपाली भाषामे बवाल मच्के पुराने अवस्ठामे घुमेहस थारु भाषाके अवस्थामे फेन व्यापक बहस करे पर्ना जरुरी बा । भाषा लिख्ना कि भासा ? महि यहाँ दुइ जन्हनके बाट, उल्लेख करहि पर्ना हस लागल । पहिला बाट मोर सम्पादनमे २०७३ के बिहान पत्रिकामे लावा बर्न व्यवस्था अन्सार परिर्वतन करेबेर कवि, कथाकार सन्तराम ढरकटुवाके प्रतिक्रिया रहिन् । सोह्र पह्रठाँ टे मनै बौरैठाँ कना सुन्ले रहुँ । सर्वहारी सोह्रसे उप्पर पीएचडी पह्रके बौरागैल, थारु भासा जम्मा बिगार डेहल । डोसर बात भाषावीद अमृृत योन्जनके कहाइ रहल, मनैन लावा शब्द एकफाले पचैना कर्रा लग्ठिन, ओहेसे आबक् लाग सुरु सुरुमे आगन्तुक शब्द भर जस्टे बेलसजाइठ, ओस्टक लिख्लेसे मजा, बेन ढिरे ढिरे परिर्वतन कर्लेसे मजा रहि । ओहे बातके सिख्खा इ पोस्टामे बेल्सना प्रयास कैगैल बा ।

यी पोस्टाके गजलमे खासकैके परदेशके पीडा, देशके बेथिटि ओ मैयाप्रेम कैके ३ मेरिक गजल सिमोटल बा । योग्यता, क्षमता अन्सार देशमे जो काम मिल्लेसे काहे मनै बिदेश जैटाँ ? टाटुल मरुभुमिम् काहे पस्ना चुहैटाँ ? कना गजलकारके प्रश्न बा । परदेशमे फेन देशके हालट डेख्के रुवाइ बा । उहाँ कहठाँ ।

गजलकार: आरके स्वागत

देशके प्यार कट्रा लागठ परदेश आउ टब जन्बो ।
घरक मैयाँ कसम जागठ परदेश आउ टब जन्बो ।
बहुट मनै विदेशमे हेरा जइठाँ । दुइ चार बरस औरे देश बैठ्िट कि मै टे अपन भाषा बिस्रा डर्लु कहिके लाज पजाके कहठाँ । अइसिनमे अम्रिकाके कुइरिन्यकमे नैभुलाके गजलकार आरके अपने थारु जातके बठिन्यासे माँगी भोज कर्लां । उहे टे सायद गोसिन्याँहे सम्झैठाँ ।

सुख दुख बराबर बाँटब मुटु आधा आधा ।
मैगर मैंयाँ हरडम साँटब मुटु आधा आधा ।
गजलकार यी पहिला पोस्टामे संगसंगे औरे पोस्टाफें हलि प्रकाशित करिंट कना शुभकामना बा ।
कृष्णराज सर्वहारी
काठमाडौ

परदेशके बट्ठा

कृष्णराज सर्वहारी