बाबक् चस्मा

तुलाराम सनम
१ आश्विन २०७८, शुक्रबार
बाबक् चस्मा

निबन्ध
बाबक् चस्मा

करिब २८ बिगाह जमिन रहे कैलालीके साडेपानीमे । मै छोट रहुँ । डाइ ठनिक चहरचन्डी जस्टे रहे । मन्डरहुवा नाचके सौकिन । नच्ना, गइना, औरेक बात कट्टि नेंगना डाइक स्वभाव रहिस् । घरमे काम करुइया बुक्रहिनहे काम अर्हाके अपनेभर सा“झके खाना खाके गाउँमे जाए । रात नाच हेरे जैना सल्लाह करिंट । नाच फेन हप्ता भर हुइना थारु गाउ“मे । हहरैना, झुम्ना खैना, पिना मे भर टे डाइ महा आघे रहे । रातके नाच हुइनासे पहिले पा“च दश जाने जन्नीनके बगाल खटिया सहित नाचघर हुइना ठाउँमे पुगजाइँट् डाइनके ।

बाबा भर टे महाँ मडुवा । मुर्घा बोल्नासे पहिले बाबाहे छबुवा जाँर चाहिस । डाइ जाँर नैछाब डेहेटे अपनहि हिरहोट्ठा बनाके पिइ लेहे । बिहन्नीसे शुरु होजाइस । बे ठेगान नैहुइना मेरके पिके फिट । लिड्रल मट्वार रलेसेफेन काम कैनामे माहिर रहे, एक लम्बर । एक्को अअलस नैमाने । काम जस्टे फेन कमैयन संगे दिनभर काम करे असल तरिकासे । कमैयाँ, बर्डिवा ओ छेग्रहुवा गयरुवनहे जिम्मेवारी सहित काम कर्वाए । गालीगलौजके शब्द नैनिकारे । सा“झ कमैयनसंग बैठके पिना बाबक रोजाना रहिस ।
डाडा महिनसे आठ बरसक भारि रहे । दुई डिडीनसे फें भारि । एकठो भैया । दुई डिडी ओ भैयक््््् छोटेमे मौट होगैलिन । इ बात महिन याद नैहो । बँचल कलक् हमरे दुई जाने किल, डाडा ओ मै । डाडक् नाउँ मान बहादुर ओ मोर भर धन बहादुर । मान बहादुर नाउँ जस्टे डाडक टे गाउ“मे खोब मानसम्मान रहिस । नाउँ चलल मनैयाँ रहे मान बहादुर । ठोरठोर आछट पाटि हेर्ना ओ फु मन्टर जन्लक ओरसे डाडाहे घरघर आछट हेरे जाइ परिस । आछटपाटि हेर्ना, टोक्टा कर्र्ना, गुरै करल बाफत छबुवा जाँर घोंघिक टिना डाडक् रोजाना पारिश्रमिक रहिस । कलाकार फेन रहे डाडा टे । मन्डरा बजैना कला सायद गाउँमे केकरोठन नैरहल हुइ, बाबा जस्टे । दिनभर घरमे काम कर्ना ओ रातके भर नाच कर्ना बाबक् कामे रहिस । सब जाने डाडाहे मिरडंगिया कहिके बलाइस । कट्रा सुन्दर नाउँ मिरडंगिया । नाचमे मन्डरा बजैना मनैयाँ, मंडरिया ।

गाउ“के सब हस घरमे टक्¥याङ टक्¥याङ ढेंकी बोले । बिहान ३ बजेसे । आझके जस्टे आधुनिक ओ अत्याधुनिक मिलके जबाना आइल नैरहे । जन्नीनहे चकियामे दाल पिसे परिन । डोक्नीमे चट्नी पिस्ना, सुप्पासे चाउर केरैना । ढकियामे धान चाउर लगायत समान उठाके डेहरीमे ढारिंट । खैंचा लेके चरि काटे जाइ परे, कट्रा सुन्दर संस्कार हमार समाज । घरके डेंउटा रना कोठाहे डेहुरार कठैं । डेहरिसे बेंरहल लम्मा घर रहे । दुई भाइनके कोन्टी अलग अलग रहे । डेहरिके नाउँ फेन फरक फरक रहे । बजिनिया“, पटहा, ढुन्की, चौरही, लोरहिया अस्टे अस्टे । पटहा डेहरि बेंरहल घरके उत्तर ओरिक कोन्टीहे थारु भासामे डेहु्रार कोन्टी कना चलन बा । जोन कोन्टीमे खेखरी, मैंयाँ रहठ । बेंटेंक लठ्ठी ओ चुर्किक बर्हनी, जोग्यक् जबिया, माटिक घोरी ओ आउर फेन डेंउटन ढर्ना चलन बा । घरमे गाउ“क् गन्यमान्य बरघर, भलमन्सा महटाँवा हरडम आउजाउ रहिन । घर चम्पन रहे ।

घरमे बाकसके नाउँमे भौंका ओ झिंरा रहे । सोन चा“दीके गहना ढर्ना काममे भौंका प्रयोग होए । बहरिमे कलात्मक झिंरा रहे । जेमने कलात्मक तरिकासे सजाइल ढकिया, डेल्वा, नुइया, घुग्घी लागल बेना ढारजाए । डेहरिक घरके कोन्टी छुत्याइल रहे । डेहरि, भौंका, झिंरा, ढकिया, डेल्वा, बेना, बन्ठी, खटिया, डरि डुलैचा थारुनके सम्पत्तिके नाउँ रहे । सब चाज रहे घरम् । डाइक् नाउँमे मेरमेरिक गहना रहे । सोन ओ चा“दीके गहना किल । फोंफी, बुलाका, मँगौरी, बाजुबीर, कारा, फुलि, टर्कि लगायत टमान गहना रहे । सक्कु दुई दुई जोर गहना रहल हुइ ।

घरम् कौनो चिजके कमि नैरहे । करिब चार सय सम भेंरी रहिंट । सय से ढेर गैया, आठ गुँइ गोरु, तीन जोर डुुहुना भैसिनियाँ, दुईठो लरहिया रहे । डन्लपके चलन आइल नैरहे उ बेर । कठुवक् चक्का हुइल लरहिया रहे । हरबरठोक हरबरठोक कैके धान बोकिंट कमैंयनके । घर से भारि घारी रहे । भेंरी करयइना गोठ अलग रहे । गैया, भैंसिनियाँ, गोरु बछरु रना सब फरक फरक रहे । लरहिया ढर्ना ठाउ“ अलग रहे । पैंरा ढर्ना ठाउँ टौवा अलग रहे । गोहुँक् बुसा ढर्ना अलग्गे अँटुवा बनाइल रहे घारीमे ।

यि गैया, गोरु, भैँस, भेँरी, छेगरि हेर्ना मनैं फेन अलग अलग रहिंट । अलग अलग पद, पद अनुसारके काम, काम अनुसारके जिम्मेवारी, सब अपन अपन जिम्मेवारी पुरा कर्ना, गैया चरहुइया गयर्वा, भैंस चरहुइया भैँसर्वा, भेँरी चरहुइया भेंरहुवा, छेग्री चरहुइया छेग्रहुवा, खेटुवामे काम कर्ना ओ हर जोट्ना मनै कमैयाँ, कमैयँनके जन्नी बुक्रही ओ बुक्रहीनके लर्का कमलरहिया ।

थारु समुदाय प्रशासनिक रुपमे ओस्टे फेन बलगर बा, डरगर बा ओ प्रजातान्त्रिक फेन, गाउँसमाजमे भलमन्सा, महटाँवाँ, जमिन्डार, गुरुवा, चिरकिया जस्टे घरके प्रशासनिक फाँटमे फेन अलग अलग पदमे कर्मचारी विभाजित रहिंट ।

पाछेक समयमे यि ओ अस्टे पदके कर्मचारी लोग दासके रुपमे राजनीतिमे प्रयोग हुइ लागल । नेपालके सामन्ती सरकार, बाहुनबादके चौघेरामे थारु राजनीति एकदम खटम हुइल । दश गाउँके दुनियाँमे बलगर शासन कर्ना महटाँवाँ, भलमन्सन कमजोर हुइलैं । सामन्ती प्रशासक लोग थारु समुदायके शासन ओ प्रशासनके किल्ला ढलाइ चाहुइयन पुरा थारु समुदायहे कमैयाँ, कमलरीनके रुपमे घर, समाज ओ राजनीतिमे प्रयोग हुइ लग्लैं, थारुनके अस्तित्वके धरोहर ढलाइ खोजगैल, खेत, खरान कर्ना ओर जाँर डारुमे रमैना हमरे कमजोरी नेपाली राजनीतिके खुराक जस्टे हुइल । यिहे कारणसे हो हमार ८ बिगाह जमिन गाउँक् प्रधनवा नुकछुपके अपन नाउँमे करल । हमार जमिन, हमारे घर, हमार छेगरिभेँरि, हमार गाइ गोरुनसे हम्रिहिनसे अलग करागैल, डुर करागैल, जाँर डारु पिके नाचकोरमे झुम्ना ढेर कमजोरी रहे हमार ।

पाछेजाके कमैयाँ होके हमरे खरौलामे अइलि । साह्रेपानी गाउँसे आइल ओरसे घरके नाउँ सँरपनिहाने होगैल । ठाह्रे कहेबेर हमार घरहे सरफरान घर कहिके चिन्ह्ठैं । खरौला गाउँमे लम्मा बसाइ नैहुइल । ५ बरस बाडमे मोर वियाह हुइल खरौला गाउँमे । भोजके बाड ठोरठोर बँचल सम्पत्तिके विषयमे डाडक ओ मोर बिबाद शुरु हुइ लागल । एक्के घरम भौजी गहनामे सजके नेंगना ओ मोर जन्नी गहना बिहिन होके नेंगेबेर महि लाज लागे । बिबादके शुरुवात महि कैले रहुँ । यिहे बिबादके कारण हमरे डाडा भैया अलग हुइली । एकठो कहकुट बा–‘अक्ली घर नैचलठ, डुक्लीसे घर नैबनठ’ । घरसे अलग होके मै खरौलासे अमौरी कोडरिहान घर कमैयाँ लग्ना कहिके खरौलासे बसाइ सरके अइनुु । कमैयाँ, बुक्रही बनके काम करठ करठ जिन्गी कटलक् पटा नै पैनु । आठ सन्तानके बाबा होके फेन कमैयाँ जो रहुँ ।

सबजे सुकुम्बासी बनक लाग जंगलओर लगलैं । घरम दुःखके लडिया कहटि रहे । ८ सन्तानमे (केउली, नाथु र प्रकाश) ३ जे किल बँचल रहिंट । ओकर बाड मै फेन सुकुम्बासी बनक लाग दुई छावा ओ एक छाइ लेके मै फेन जंगलओर लग्नु । सुकुम्बासी बनल बाड तीन जे (फूलाराम, तुलाराम, जगतराम) जन्मलैं । बहुट दुःख कैके बनाइल ठोरचे खेटुवा रहे, भलभुटियन दुःख डिइँट् । झोपरी जरा डिइँट्, बुवारा टिटल धानमे गोरु चर्हाडिंइँट् । अइसिन बात हुइ नैडेहक लाग एमने टोहाँर डिडीके ढेरे भूमिका बा । डिडीहे अन्याय ना करहो, खेटुवामका धान बचाइ नैसक्के हठिखोल्याके किनारे–किनारेके जग्गा डेले बटुँ । उ फेन मोरे हो । अझकल झगरा करठ, अन्याय नैसहना, अपन अस्तित्व ओ पहिचानके लाग कदम पाछे नहटैना, डहिटान भेंरहुवा हुइबेर टोरे महला डाडा प्रकाश फेन बिट्गैल । आब पाँच जाने बटो, एकठो हाँठके अंगरि हस । बलगर, डरगर होके एकजुट होके रहहो, हमार टे उमेर जाइलागल । केकरो दमन, अन्याय, अत्याचार ना सहहो ।

एक सँस्सु कहल बाबक कथा खतरनाक लागल । ओहे समयमे मै मालिका एफ.एम. लम्कीमे समाचार बाचकके रुपमे जागिर करुँ । गाउँक रिपोर्टिङके क्रममे बाबासे मजाक मजाक मे बाबाके जिन्गीके संघर्षके सवाल पुछनु । जवाफ अइसिन भेटैले रहुँ कि यी कथाहे साहित्यके कौन फ्रेममे सजाउँ । बहुट बरससम सोंचना लागल । बाबाके ओ मोर संघर्षके पैला निबन्धके फ्रेममे सोहाइठ की कहिके संघर्षहे फोटु जस्टे सजाइक लाग मै निबन्धके फ्रेम बनाइटुँ ।

गुलाब सुन्दर रहठ, टेम्ह्री लागठ, फूलठ ओ झरठ, ओ पाछे जाके कुरकुट बनठ । घुरौरामे फेंकाजाइठ । ओकर सुवास कोइ नैलेहठ । केंउला हिल्लामे फूलठ, हिल्ला फुहर रहठ, टब फिन टलुवक बिचमे फूलठ, ओहे फूलाहे मनैं टुरे खोज्ठैं । उहि टुरठैं फेन, किचुल्ठैं ओ पाछे जाके कुरकुट बनाके घुरौरामे फेक्ठैं ओ ओकर सुवासके अस्तित्व हेराजाइठ ।

मनै सजिव प्राणी, संसारमे जट्राफेन सजिव प्राणी बटैं, सर्वश्रेष्ठ प्राणी कलक् मनैंनहे कठैं । उ ढेर सोचठ, बिचार करठ, समुन्द्र मन्थन करठ, घुस्करिया करठ, नेंगठ, डौरठ, गिरठ मने मनैनके अस्तित्व एकचोटटे नैलरठ, एकचोटटे नैगिरठ, अस्तित्व नैओराइठ । घोरुवम चहुर्ना मनैयाँ सवारी करठ, कबु उसटठ, चोट लागठ, उपचार करठ, ठीक हुइठ, फेन प्रयास कैके घोरुवकमे सवार करठ, सफर करठ, मजा ठाउँ घुमठ, दुनियाँ हेरठ ओ आनन्द लेहठ ।

मनैनके जिन्गाी जो हो । जिएक लाग संघर्ष गाडीके इन्जिन जस्टे बलगर अनिवार्य हुइ परठ । मनै जिन्गी जिएक लाग बहुट संघर्ष करेपरठ । कर्रा संघष अपन लगनशिलतासे सार्थकता मिलठ । जिन्गी सार्थक हुइठ, सहज हुइठ ओ सरल फेन हुइठ ।

नैसोचल फेन हुइसेकठ जिन्गी, सोचलसेफें नैसोचल हलि हुइठ । असफल, निराश, उदास, अभाव, दरिद्र जिन्गी कोइ जिए नैचहठैं । जो फेन संसारमे सफल हुइ चाहठ । आशेआश संघारके मनमे सुखी, खुसी ओ आनन्दमय जिन्गी जिए चाहठ । यी संसारमे अब्बेसम सोचल से फेन नैसोचल हस हुइल बा । संसारहे ओजरार बनैना थोमसहे हजार चो संघर्ष करे परलिन । नौ सय उनान्सय चो असफलता मिलल रहिन । हजार चो मे सार्थकता मिल्लिन । नेपालमे एकिकरण कैके बाइसे ओ चौबिसे राज्यहे एकराज्यमे परिणत कर्ना पृथ्वी नारायण शाहहे बहुट हार खाइ रिल रहिन, ढेर चो सुनसान बैँठक बैठके योजना बनाइ परलिन, योजना सफल बनइना सैनिक तयार करे परलिन, सैनिकहे शैन्य तालिम स्वयम डेहे परलिन ओ डोलामे बोकके सहि लराइक मैदानमे अपनही पुगके सेननहे हौस्याके शुरताके नमुना हो ।

नेपालमे युद्ध असम्भव रहे । मने सम्भव हुइल । यी सम्भव फेन संघर्षसे हुइल हो । नेपालहे भ्रष्टचार मुक्त बनाके घुसघोर, सामन्तबाद ओ शाहवंशके एकलौटी शासन अन्त्य करक लाग नेपालमे गृहयुद्धके खाका कोरगैल । नेपाल छोट हुइलेसे विशाल देश भारत जस्टे नेपालहे टमान स्वायत्त प्रदेशमे विभाजित कैके प्रत्येक जाति, लिंग, भाषा, धर्म, संस्कृतिके विकास कैना योजना बनल । थरुहट, मगरात, लिम्बुवान, खम्बुवान राज्य स्थापना करक लाग पिछडल वर्गहे सपना डेखाके युद्धके संरचना तयार पारगैल । युद्ध कुछ हदसम पूरा हुइल । नेपाल सात स्वायत्त राज्यमे विभाजित हुइल मने पुर्णता भर नैपाइल हो । यी सम्भव फेन संघर्षसे हुइल हो ।

सीताहे पाइक लाग रामहे धनुषवाण टुरे परलिन । पृथ्वी से स्वर्गसम सोनके सिँढी बनैना रावणके सपना संघर्ष बिना अधुरा ओ अपुरा रहल । ताकत, बल ओ घमण्डके भरमे सपना केकरोे पूरा नैहुइठ्, ओहे मारे हुइ रावणके फेन पूरा नैहुइल । संघर्ष सफल्ताके सिंढी हो । संघर्ष हरेक कदम कदममे कैके सफल्ता अवश्य मिलठ ।

संघर्ष भारि भारि किल कर्ना नेहो । गरिबके झोपरीमे चुल्हान बर्ना फेन संघर्ष हो । दिनभर हर जोटके दुई मुट्ठा धान फराके होए या घाँस काटके भैँसिनियाँ पालके होए, दुध दुहके साहुजीहे बेचके होए या इट्टा से सुन्दर महल बनाके होए । शब्द शब्द जोरके समाचार बनाके होए या सुइ लगाके उपचार कैके होए जिन्गी जिएक लाग संघर्ष कैना अनिवार्य बा । संघर्ष बिना जिन्गी सार्थक बनाइ नैसेक्जाइ ।

२८ बिगाह जमिन हुइल जमिनडारके छावा मोर बाबा अपन जीवनकाल सम कमैयाँ बनके औरेक घर गोठमे, खेटखलिहानमे काम करल पिडा कसिन हुइ ना ? गाउँके प्रधनवा बिना कसुरके सजाइ काहे डेहल हुइ ? कल्पना करलेसे आँस चुहठ । गाउँमे सामन्ती प्रधनवा जमिन, गैया, भैँस, भेँरि छेगरि सदाके लाग अलग करल कलात्मक तरिकासे बनाइल घर, घरके भिटामे हाँठी, मँजोर ओ फूलासे सजाइल वास्तुकला, बगियामे रहल आम, अम्रुट, कटहर लगायत रुखबिरुवा एकफाले छोरके जाइ परलेसे केकर मन नैरुइ ?

बुडु जाँर डारुमे झुम्टी रहना, बर्का बरापु नाचगानमे, बाबा छोट रलक मारे कुछ करे नैसेक्ना, चाहके फेन कुछ करे नैसक्ना अवस्थाके कारण जाली प्रधनवाके दुष्ट कर्मके कारण मो बाबा जमिनडारसे कमैयाँ बनल सत्य बात हो । आझ ओहे कमैयाँके छावा जमिनडारके नटिया होके रहे नैसेक्ना कारणमे रहस्य खोजटुँ । शब्दके खेटी करटि शोषक, सामन्त, दलाल, फटाहा बाहुनबादके अन्त्यके लाग युद्ध मैदानमे उट्रल बटुँ ।

मै बहुट कहाइ सुनले बटुँ बाबक् । कमैयाँ ओइने अपन मालिकके बाटी, बिहान ३ बजेसे रातके बेरसम करलेक संघर्षके कौनो मूल्याङ्कन नैहुइल बाबाके । डैबसे फेन ढेर दुःख डेहल रहे । बाबा एघार सन्तान जन्माइ सेक्ना डाइके प्रशव पिडाके आभाष पटा बा महि । दुःख, पिडा, अभाव, वियोग, पिर, ब्यथा, बेडना बाबक नैचाहल गोचा ओइने फेन हुइन, नैचाहके फेन बाबासंगे सहयात्रा करल गोचा ओइने हुइन । ओहे गोचनहे डुर करेक लाग मै संघर्षके मैदानमे उट्रे परल एकठो रहस्य खोज्टी बटुँ आझ ।

डाइ कहे कि, ‘हम्रे बुक्रहि रहि, फेन अन्नाके कबु कमि नैहुइल हमार, किसान फेन पुरान चाउर, दाल ओ मेटियामे तेल रहे हमार संगे ।’ किसान ओइने बुक्रहिसे चाउर सापटी लिइँट् । टब्बेहे, २०३५÷३६ सालके बाट हो । जमिन सक्कु जहनके कम कम हुइटि गैल । छावाके छावा, छावासे छावा, छावाके फेन छावा, छावासे नाटी, पुटनाटी हुइटि सक्कु किसान जमिन बँट्वारा करटि कमैयाँ, बुक्रहि जस्टे होसेकल रहिंट् । कमैयाँ ओ किसान छुट्याइ नैसेक्ना अवस्था होसेकल रहे । समय अपन गटिमे चल्टि गैल । मनै बच्चा, युवा, बृद्धा हुइटि बुढेसकाल लागल फेन पटे नैहुइल । समय एकनासले चल्टि बा । सायड सक्कु जहोरसे बलगर एहे समय हो । कोइ चहके फेन रोके नैसेक्ना ।

नेपालके राजनीति परिवर्तन होसेकल रहे । २०४० साल ओहँर कमैयाँ सुकुम्बासी होके आत्मा स्वतन्त्रताके रक्षाके लाग संघर्ष करटि बटैं । टब्बेहे कमैयाँ, बिना घरके, हलिया, दलिया, सुकुम्बासी बन्ना बाजीक जस्टे । बनुवाँ फँर्ना, बाघ, भालु, साँप, बिच्छी, औंलो जुरी लगायत संक्रमण कमैयनके संघर्षके साथ पैलि । कन्ढम हर ओ फर्हुवा लेके बाबा फेन कम्मर कसके लागठ् । सुकुम्बासी बन्ना बनुवाँ ओहँर कुड्के गैल रोजीरोटी छोरके बनुवाँ ओहँर लैजइना आयश्रोतके मुल सुख्के हुइ बाबाके दुःखके दिन रुप फेरके फेन आडेहल । कम, पिडा, उडास आइल मनमे । दुःखके आझिकके पहारमे चर्हे बेला बाबा फेर ३ ठो बच्चाहे जन्म डेहल । डाइ प्रशबके पिडासे मुरझुराइल हुइलिन् । ओहे ३ प्रशब पिडाके भिरमे दशठो बच्चाके रुपमे मोर जन्म हुइल हो । मोर टरे मोर भैया ११ औँ बच्चाके रुपमे अपन तरिकासे जन्मलक् हो ।

मै बाबासंगे ढेर बाट पुछले बटुँु जिन्गीमे । सायड घरमे ठोरचमें दुइ चार काला अक्षर भैंस बराबर हुइलेक ओरसे हो । बाबा कहठ् कि, ‘सुकुम्बासी ओइनसे ढेर दुःख संगे लरे परल । गरिबीसे गुजरे परल बेला डुश्मन ओइने दुइ दुइ चो भैंस चोर डेलैं । सम्पत्तिके नाउँमे गहना रहे । गहना बेंचके छोटछोटे डोंगिल कमजोर गोरु किन्नु, बनुवाँ जोटलक आरोपमे भलभुटियन हर काटडिइँट् । डारु ओ मुर्घा घुसके रुपमे खलाइ परे, मुर्घा बनाके घर पठाडिइँट्, कनबुच्ची लगाइँट् । मानौँ हमरे जंगलमे खेल्लक कारण लर्कापर्कनहे सजाइ डेना व्यवहार होए । औरे जहन जग्गा दान डेलेसे आउ। ओइने दुश्मन बन डेलैं । झोपरी आगी लगाडिइँट्, हर टुर डिइँट्, गोरु जंगलमे खडेरडिंइट्, ठोरठोर हुइल बाली फेन चर्हाडेना भलभुटियन । ससरारिक मनैं फेन गरयाइँठ खोबे, सायद सुकुम्बासी बन्ना बेलामे ससरारिक जग्गामे बैठलक हुइ । जग्गा बनाइ नैसेक्बो, हमार जग्गामे कहिया सम बैठबो कहिके हुइ सायद गरयाइँट् । कुछ फेन नैरहे घरम् मुस्किलसे अट्रा जग्गा कमैले बटुँ जिन्गीमे, भाइभाइ झगरा नैकरहो बराबर लेहो डिडीहे फेन डेहो ।’

मै लम्मा साँस फेरुँ, साेंचुँ, ‘बाबा संघर्ष किल नैकरलैं जिन्गीके महायुद्धमे तरवार उठाके लरल हुइँट् । आखिरमे जिटलैं फेन ।’ बाबाके संघर्षसे हुइ आझ हमरे सुकुम्बासी होके जंगलके किनारमे बैठे पैलि । दुईमुरी फरैना जमिन बनैलि । नाउँमे नैहुइलेसे फेन जोटे पाइटि, खाइ पाइटि, रमाइटि । ११ जे सन्तान मध्ये मै १०औँ नम्बरमे परठुँ । ६ जे स्वर्गवास, बाँकी पाँचजे अपन तरिकासे संघर्ष करटि यी दुनियाँमे । दुई डाडन स्कूलके मुह नैडेखल, विद्या कौन चिरैंयक नाउँ हो पटा नैहुइन, भैया बिचमे पर्हाइ छोरल, डिडी वियाह कैके ससरार गैल, काला अक्षर भैंस बराबर अक्षर चिन्नाह कलक मै किल । १२ समके चानचुने पर्हाइ, बाबाके सपना छावा जसिक फेन डाक्टर बनैना, पैसा बिना कोइ डाक्टर बनि ? डाक्टर बनक लाग पैँसा चाहठ । पैँसा बिना कोइ पर्हे नैसेकजाइठ, आघे बरहे नैसेकजाइठ, कसिक बन्ना डाक्टर ? बाबा जा जैसिन हुइलेसेफे उहाँके सपना भारि रहिन, अपने नैपर्हलेसेफेन छावाहे डाक्टर बनैना उहाँके सपनाहे, सोंचहे हृदयसे गर्व करठुँ । ‘बाबाके चस्मा करिय रहिस कि का ना ? छावाहे डाक्टर बनैना सपना डेखल ।’

तुलाराम सनम
जानकी ५ अमौरी कैलाली

बाबक् चस्मा

तुलाराम सनम