चन्द्रौटासे गोरखपुरसम

हिराकुमारी चौधरी
१२ आश्विन २०७८, मंगलवार
चन्द्रौटासे गोरखपुरसम

चन्द्रौटासे गोरखपुरसम


गोरखपुरके गोलघरमे रहल नेपाली लजसे हम्रे बिहानके ५ बजे बिदा लेली । सारा डग्रेम् बिजुली –बत्ती बरंल रहे । मनैनके चहल– पहल बिलकुल नै रहे, मने डग्रीम्् दुई जनहन से भेट हुइल् । हम्रे जैना डा बेरीके दवाई खानामे जैना डग्गर भुलागैली । लगभग १ घण्टाके नेगाइसे हम्रे दुर पुग्गैल रही । मही लागे ‘सगँ भुलाइल कराकुल’ हस् ।
एक जनहनसे पुछली –डा बेरीके मेडिकल जाने रास्त कहाँ परी ?
ऊ कहल–‘उधार परी ।’
जेहोरसे ऐली ओह्रे देखाइल् । मही मिछछावन लग राख्ले रहे । हम्रे रिक्सा पकर्ली ।भारु्र १० जनही लेहल ओ ठाउँमे पुगा देहल ।
जहाँ जाऊ फुहारके बास आए । जहाँ हेरो फुहर । हम्रे डा. बेरीके मेडिकलमे पुगेबेर बिमारी कोइ बैठल,कोइ बिस्तरा लगाके सुतल रहिँट् । अत्रा गन्धौर ठाँउमे कैसिक बैठल् हुइही, मै मने – मने सोच्लुँ । हमे्र उहाँसे कुछ दुर ठनिक सफा ठाँउमे जाके बैठ्ली । जहाँ एक जाने चौकीदारी कर्टी रहे ।हमे्र बैठ्ना अक्मकाइट् देख्के पुछल्– ‘कहाँ आए हो ?’
दधिराम डाडु कहलाँ – ‘दवाइ कराने ।’ऊ फेन कहल्–‘दलाली वालोसे सावधान रहना । नही तो पैसा बर्बाद हो जाएगा ।’
ठीक है । दधिराम कहलाँ ।
दधिराम डाडु लाइनमे बैठ्के मोर नाँउ दर्ता कराइलाँ । ७ बजे होर डा.बेरी आइल् । बिमारीनके भिरभार धेर रहे । मोर पाला ८ः३० बजेहोर आइल् । एक आध घण्टाके चेकअप पाछे दवाइ जम्मा भारु ८१ रुपियक् । कत्रा सस्ता दवाइ ।
गोरखपुर रेलवे स्टेशनमे हमे्र १० बजे पुगल रही । रुट नं.९ मे बढनी जैना रेल रुकल रहे । आउर कहाँ – कहाँ जैना रुकल रहे, मै नै जन्लुँ । मने धेर रेल रुकल बिल्गे । मनैनके भिरभार रहे । हम्रे टिकट कटाइ काउन्टरमे पुग्ली । लाइनसे प्यासेन्जर रहिँट । लाइनमे बैठ्के टिकट कटैलेसे सवा १० बजेक रेल जरुर छुट् जाइट् । लाइनमे बैठल एक प्यासेन्जर कहल – महिलाओ के लाइन नही होटा । जाउ आगेसे टिकट कटालो ।’ मै बिना लाइनमे बैठल् टिकट कटैलुँ । एकठो बिरोध कर्टी रहे तब्बो मै टिकट कटैना सफल हुइलुँ ।
काउन्टरसे टिकट कटाके निकरेबेर बढनी जैना रेल हिले लागल् । जैना सुरु कर रख्ले रहे । अब का कैना हो । हमे्र तीन जाने दौर्ली । मोर बुहर््वा सब्से आघे –आघे । तब मै ओकर पाछे दधिराम डाडु । मोर बुहर््वा सब्से आघे चल्टी रेलमे मोर चौर्हगैलाँ ।तब दधिराम ।मै का करु क नै । चौहुर्ना कोसिस करु सेक्बे नै करुँ । छोट ढेंग मनैं, रेल आउर जोर मचे लागल । महीँ चौर्हाइक लग एकठो बाजी लवन्डा सहयोग कैल् । मै चल्ती रेलके दवार पकर्टी किल ऊ पाछेसे उठाके धकेलल् । धन्य मै ऊ रेलके डिब्बामे पुग्लुँ जोन डिब्बामे मोर बुहर््वा ओ दधिराम डाडु रहिँट । चौर्हैबेर डर नै लागल पाछे सम्झेबेर अभिन डर लागठ् । मै अप्नेहे अचम्म पर्लू । कैसिक मच्टी रेलमे पुग्लुँ । ऊ लवन्डा नै रहट् ते मै मच्टी रेलमे जरुर चौर्हे नै सेक्टुँ । जरुर मही गोरखपुर रेलवे स्टेशनमे रोइक परट् । अत्रा किल नाही ऊ कोसिस मोर अनावश्यक रहे कना आभाष आझ फेन हुइटा । मोर सामान्य गल्ती हुइट टे ऊ समयमे मोर ज्यानके खतरा रहे । या मोरमे चोट लाग्ना सम्भावना धेर रहे । वास्तवमे चल्टी रेलमे चौहर््ना हमार गल्टी रहे । सही समयमे पुगके रेलमे सुरक्षित यात्रा कैना ओ दुर्घटनासे बाच्न यी दिनके मोर बुझाइ हो । मैटे रेलमे चौर्हगैलुँ । मही चौहर््ना सहयोग करुइया चौहर््ल कि नै ? के हो ऊ, मै जाने नै सेक्लुँ ? लकिन आझ फेन ऊ रेल गाडीके घटना समझके किल अगं सिरिङ्गसे करठ् । मने कोइ हड्बडाके काम कब्बो नाकरी । सुरक्षित जिन्गी बिटाइ । सम्झटुँ, फेन फागुनमे गोरखपुर जैना बा । टैह्को न फेन रेल चौर्हक लग फेन दौरे परे ।

हिराकुमारी चौधरी
– गोबरडिहा –६ महदेवा, द्यौखर

चन्द्रौटासे गोरखपुरसम

हिराकुमारी चौधरी

गोबरडिहा –६ महदेवा, द्यौखर