चार मुक्तक

हिराकुमारी चौधरी
१२ आश्विन २०७८, मंगलवार
चार मुक्तक


पित्तरहे सोन कहुइया व्यापारी बटाँ
जनतनहे चुसुइया मासंहारी बटाँ
धान बैठैना कैहके गीत गैलक हो
टब्बो वर्षौ से खाली बखारी बटाँ

फुला टुरुइया आप्ने माली बा
बिना काम भाषणमे ताली बा
स्वीट्जरल्याण्डहस् बनुइयनके
रुप मजा भिट्टर मक्रक जाली बा

फुला बगैंचामे हजार बा
ऊ फुला बिक्ना बजार बा
टुरुइया ओ फकुइयनमे
रसकिल चुस्न गद्दार बा

आँधीसे टुर डेहल डँरिया जीवनके
वर्षौ बिटल खाली बा पन्ना जीवनक
ओह्टाके नेगें खोज्ठुँ काँटा सब
बदल्टी बा आज जमाना जीवनके

हिराकुमारी चौधरी 

गोवरडिहा –६ महदेवा, द्योखर, दाङ

चार मुक्तक

हिराकुमारी चौधरी

गोवरडिहा –६ महदेवा, द्योखर, दाङ