स्वागत कर्टि रहे गजलीय ‘केंवाँर’

छविलाल कोपिला
२७ भाद्र २०८०, बुधबार
स्वागत कर्टि रहे गजलीय ‘केंवाँर’

पोस्टा समिक्षा
स्वागत कर्टि रहे गजलीय ‘केंवाँर’

समकालीन नेपाली गजलके अवस्था हेर्ना हो कलेसे २०६०÷०७० गजल दशकके रुपमे स्वीकारे सेक्ना अवस्था बा । यहोंर थारु भाषाके गजलके अवस्था फेन सत्तरके दशक गजलमय हुइल बिल्गाइठ् । पचासके दशकमे छिट्फुट पत्रपत्रिकामे बिल्गैना गजलके अन्हार २०५७ सालमे किल बिल्गाइल् । कैलालीके जोखन रत्गैयाँक ‘चोराइल मन’ पहिल गजल संग्रहके रुपमे मानजाइठ् । ओकर पाछे २०६१ सालमे भुवन भाइक ‘आछट्’ लक्की चौधरीक ‘सहिदान’ ओ छविलाल कोपिलाके ‘भौगर’ कैके अक्के बरसमे तीनठो गजल संग्रह निक्रल् । आझ थारु भाषामे दुई दर्जन ज्यादा गजल संग्रह प्रकाशित हुइल बिल्गाइठ् । थारु गजलके इतिहास हेरेबेर जम्मा डेढ दशक किल हुइल बिल्गाइठ् ओ यी समयावधिमे गजल सिर्जनाके भारी विकास ओ विस्तार हुइलक फेन लिरौसीसे अनुमान लगाइ सेक्जाइठ् ।

गजल एक सिद्धान्त केन्द्रित काव्य बिधा हो । उहेसे सैद्धान्तिक अध्ययन विनाके गजल सुन्दर गजल नैबनठ् । गजल लेखन सौखसे लिख्ना एकठो बाट हो, मने इहिहे स्तरीय बनाइक लग सिद्धान्त ओ संरचनागत प्राविधिक अध्ययन ओ साधना अनिवार्य बा । यहाँ तुक (अनुप्रास) मिल्लेसे गजल मन्ना गलत मनोविज्ञान फेन बा । भाव गम्भीर्यताहे ओट्रा ख्याल नैकैके तुकबन्दी सिर्जनाहे जबरजस्त गजलके दायरा भिट्टर घुसैना गजलप्रतिके अन्याय हो ।

आर के स्वागत देउखरके एक लौझी गजलकार हुइट् । गोवरडिहा ६ महदेवा निवासी स्वागत कुछ बरस यहोर अमेरिकामे बैठ्के अपन पस्ना चुहैटि बटाँ ओ संगे सिर्जनाहे फेन निरन्तरता डेटि आइल बटाँ । उहाँ विदेशी भूमिमे बैठ्के ढेरहस गजल सिर्जैले बटाँ । ओसिक टे उ स्वदेश बैठेबेर फेन कुछ गजल लिखिंट् । हुँकार गजलकारिता फेन ओट्रा लम्मा नैहुइन् । करिब ४÷५ बरस यहोंर छिटफुट रुपमे स्थानीय पत्रपत्रिका ओ एकाइ डुकाइ कार्यक्रममे गजल सुनैना बाहेक साहित्यिक चिन्हजान कम बटिन् । भरखर, भरखर लिख्ना क्रममे उहाँ परदेशी जीवन गुजर्ना एकठो बाध्यात्मक परिस्थितिके कारन फेन सतहमे कम पहिचान हुइसेकठ् । मने पछिल्का समय लोभलग्टिक सिर्जनासे उहाँक गजलीय भविष्य ओज्रार बिल्गैठिन् । उहाँ गजलमे ढेर छन्डिक विषयवस्तु समेट्ले बटाँ । देशप्रेम, आपन मौलिक संस्कृतिप्रति चिन्ता, विकृति विसंगति ओ प्रेमप्रणय उहाँके गजलके मुख्य विषयवस्तु हुइन् । उहाँ जब डाइ बाबा घर परियार हिर्डामे ढैके आनक भूमिमे रगत चुहैटि चुहैटि देश सम्झठाँ ओ आपन गजलके शेरमे असिक गुट्ठाँः

योग्यता क्षमता अनुसार काम मिलि कलेसे
कामकाज करल अनुसार दाम मिलि कलेसे

परदेस खाडीसे जरुर मैं नेपाल जइम हजुर
साँझ विहान खैना माना, माम मिलि कलेसे

विदेशी भूमिमे रकट पस्ना चुहैलेसे फेन मेहनतमे सुन्दर सपना डेख्ना ओ सपनासँगे कबो एकाध अन्ढार भविष्य फेन डेख्ठाँ ओ लिख्ठाँः

मेहनत कर्लेसे भविष्य सुन्दर स्वर्निम हुइ सेकि
मेहनतके गुर्छार फल अप्ने खल्तिम हुइ सेकि
आपन मन मुटुके टुक्रा का करे विदेश पठैठो
विमान स्थलके उक्वार भेट अन्तिम हुइ सेकि

परदेशमे पैसक रुख्वा रहलहस परदेशिन्हे पैसावाल सम्झना हमार मनोविज्ञानहे उहाँ पीडा सहित असिक चिठाँः

परदेशमे डलर नै फरठ हजुर, हरदम पैसा मंग्ठो
जानोकि रुख्वम्से झरठ हजुर, हरदम पैसा मँग्ठो

मोजमस्तीसे जिन्गी नैचलि ठोरचे भविष्य फे सोचो
ओस्टे हो कि काम परठ हजुर, हरदम पैसा मँग्ठो

उहाँक हृडामे देश ओ अपन भुमिके मैयाँ बटिन् । बर्सौसे आपन भूमि, कला, संस्कृति ओ इतिहास बोकल ठाँटठलो रक्षाके लग संकल्प फेन कर्ठां, अपन माटि, अपन पहिचानके राज्यसे उत्साहके शब्दभाव असिक व्यतm कैठाँः

थारु हम्रे तराइके मालिक थरुहत राज्य नैछोरब
जल जमिन बन्वा झालिक थरुहट राज्य नैछोरब

हाँस हाँसके बलिदान डेम अगर जरुरत परि कलेसे
संगी बनम् सहिद सालिक थरुहट राज्य नैछोेरब

अपन गजलमे प्रणय भाव प्रस्तुत कैले बटाँ । उल्रा बैंसके विपरिट लिङ्गी प्रतिके आकर्सनसे मनैन्के स्वभावहे उहाँ फेन अपन विगटहे आगटमे समझटि टुलना कैटि असिके अपन शेर गुट्ठाँः

कबो झँक्याके हेर्लुं, कबो नुक नुक टुहिन
कसमसे सुग्घर डेख्के हेर्लुं रुक रुक टुहिन
जबसे डेख्लु टुहिन, नजर गस्कल रहिगैल
छड्के लजर नै गैल कहुं, झुक झुक टुहिन

विदेशी भूमिहे अपन कर्मथलो बनाके सिर्जना क्षमता ढैना गजलकार आर के स्वागतके यी गजल संग्रह ‘केंवार’ के सामान्य रुपरेखा हो । यम्हें कला, संस्कृति, मानवीय स्वभाव, सामाजिक उत्पीडन, दुःख, देशप्रम, प्रेमप्रणय, लगाके विषयवस्तुमे केन्द्रित ६१ ठो गजल समावेश कैले बटाँ । यिहे ओरसे यम्हेंक कुछ गजल भौतिक परिवर्तन, सामाजिक सदभाव, मानव जीवनके उन्नयनके सकारात्मक सन्देश डेनामे सफल हुइल बिल्गाइठ् । गजलकारके ढेरहस गजल विदेश बैठेबर लिख्लक ओरसे परदेशके यथार्थ पीडा सहज अन्मान लगाइ सेक्जाइठ् कलेसे कुछ गजलके शेर श्रृंगारिक भावमे फेन लिखल बा ।

आझ श्रृंगारिक लेखनके नाउँ अस्वाभाविक शब्द बौछारसे मनैन्हे कामुक, यौन उत्तेजित अथवा अश्लिल बनैना दस्प्रयास फेन हुइटि बा । साहित्यमे हरेक लेखन मर्यादित हुइना चाहि । सालिनता मनैन्के लग एक भावनात्मक प्रणय हो । जौन सक्कु समाज, समुदाय या सक्कु उमेर समूह ओ परिवार भिट्टर लिरौसी पचाइ सेक्ना चाहि । सिर्जनधर्मीलोग जहिया फेन सौहाद्र्रता ओ सद्भाव कायम कैना डग्गरओेर केन्द्रित हुइना चाहि ओ हरेक सिर्जना बहुआयामिक ओ बहुपक्षिय हुइना चाहि । उहाँक गजलमे सामान्य श्रृंगारिकता मिलठ् । नेपाली काव्यमे खास कैके तीनमेरके श्रृंगारिक प्रभाव बिल्गाइठ् । भोजपुरी, नेपाली लोकलय ओ उर्दू । भोजपुरी उच्छृंखल श्रृंगार लावा सिख्नौटि स्रष्टा लोगनके ज्यादा प्रभाव पर्ले बा कलेसे कुछ पुरान लेखनलोग नेपाली लोकलयमे आधारित पहिल पङ्ति कौनो प्रकृतिसे सम्बन्धित घटनाके वर्णन कैना ओ डोस्रा पङ्तिमे अपन बाट ढैठाँ । इहि मध्यम श्रृंगारके रुपमे लेहे सेक्जाइठ् । टिसर उर्दू श्रृंगार, जौन सालिन, सौम्य ओ बिम्बात्मक रहठ् । यकर कलाकौसलतासे मधुर बनादेहठ् । पछिल्का समय नेपाली गजल लेखन यिहे धारओर आकर्षित हुइल आइल बा । मने थारु भाषके गजलमे बहुट कम प्रयोग बिल्गाइठ् । यी सिख्खा थारु गजलकारलोग अनुसरन कैना जरुरी बा । मने थारु भाषाके ढेर गजल भोजपुरी प्रभाविट बिल्गाइठ् । उहेसे असिन गम्भीर जिम्मेवारी लावा स्रष्टालोगनके कन्ढापर आइल बा ।

यी संग्रहमे संग्रहित गजल हेरेबेर सक्कु गजल सामान्य संरचना भिट्टर रैह्के सिर्जना कैल बिलगाइठ् ओ स्वनिर्मित लयमे सिर्जना हुइल बा । समयसंगे परम्परागत शैली उलङ्घन कैके लावा ढाँचामे सिर्जना कैना चलन बह्रके आइल बा, गजलकार फेन एक्रे पाछे लागल बटाँ । मने परम्परा उलङ्घन कैलेसे फेन सिद्धान्त केन्द्रित रहना जरुरी रहठ् । आधृनिक नेपाली गजल हेरेबेर गजल लेखनके न्युनतम सर्त काफिया हो । काफिया विनाके सिर्जना गजल हुइ नैसेकि । गजलकार स्वागतके काफिया हेरेबर ढेरहस बिचलन डेखपरठ् । जा जसिक रहलेसे फेन उहाँक गजलकारितामे ‘हुइना टेल्वक कज्र्यार पटिया’ कहेहस् भारि आशा कैना ठाउँ बा । उहेसे सक्कु बात यहाँ उल्लेख कैनासे फेन कुछ जिम्मेवारी पाठक लोगनमे सौंप्लेसे न्याय संगत हुइ कना लागल् । उहेसे यकर उचाइ ओ समग्रता नप्ना जिम्मा फेन पाठक लोगनमे छोरटुँ ।

अन्त्यमे देउखरके स्रष्टा जे मल्गर जिया (मन) लेके हमारठन गजलके पहुरा लेके अइटि बटाँ यी खुशीके बाट हो । उहेसे यी सराहनीय कामके प्रशंसा कैटि दिलसे बधाई ओ सफलताके शुभकामना ।

छविलाल कोपिला

स्वागत कर्टि रहे गजलीय ‘केंवाँर’

छविलाल कोपिला