गजल

रामचरण कुस्मी चौधरी(एकल यात्री)
८ कार्तिक २०७८, सोमबार
गजल

जागी थारु डाडु भाइ एक जुत बनके आब आई हम्रे ।
हम्रे पुरान देउती, देउता संस्कुति खोजी चलो जाई हम्रे ।।

अपन भाषा कला हक अधिकार, पहिचानके लग थारु जागी ।
हमार थारु भाषा हेरैती रहलमे खाजी सक्कुजे बाचई हम्रे ।।

यी माटिक हम्रे फें थारु नेपाली जनता हुइ कहिके जुती ।
यहे धर्तीमे सक्कुजे मिल्के थारुनके संस्कृति झल्काई हम्रे ।।

सुटल थारु जागी जागी आब ते जागी आघे बह्री काहुन ।
दिनेक रोश्नी फेक् सेकल पाछेक पइला बह्राई हम्रे ।।

लाल चोल्या फुन्ना लागल लहङ्ग लगाके ढकिया बोक्ना दिदी ।
अहा ! कत्रा सुग्घर थारुनके पहिरन हमार चिन्हाँई हम्रे ।।


           रामचरण चौधरी

गजल

रामचरण कुस्मी चौधरी(एकल यात्री)

धनगढी -१ मिलनपुर बस्ती (पूरान एयरपोर्ट )