लङ्गगा चोल्या छोर्के, जिन्स पैन्ट काहे लगाइ लग्लो

–रामचरण कुश्मी चौधरी ‘एकल यात्री’
१४ कार्तिक २०७८, आईतवार
लङ्गगा चोल्या छोर्के, जिन्स पैन्ट काहे लगाइ लग्लो

गजल
लङ्गगा चोल्या छोर्के, जिन्स पैन्ट काहे लगाइ लग्लो ?
अपन संस्कृति छोर्के,औरेक सस्कृति चोराइ लग्लो ।।

हमार पहिचान कहाँ गील खै कैके खोज्थो आब काहे ।
भौकामे ढारल लेङ्गगा चोल्या मुसनसे कटाइ लग्लो ।।

आबते जागी थारु युवा अपन पहिचान बाचइ हम्रे ।
आज काल्ह अपन पहिचान फे तँु मेटाइ लग्लो ।।

भोजमे गइना माँगर मन्द्राके नाँच कहा गील खै ।
लौदिस स्पीकार मे आए हम बराती बजाइ लग्लो ।।

दशियामे नच्ना सखिया नाँच कँहा गील आबते देखो ।
मन्नी बद्नाम हुइ बिदेसीनके नाच देखाइ लग्लो ।।

–रामचरण कुश्मी चौधरी ‘एकल यात्री’

लङ्गगा चोल्या छोर्के, जिन्स पैन्ट काहे लगाइ लग्लो

–रामचरण कुश्मी चौधरी ‘एकल यात्री’