दुःखी जीवनहे हाँसके फे बितैनी नारीन्के जात ।
हेल्हा हुइल ठाँउमे हक नै पैना नारीन्के जात ।।
परतिन् औरेक इसारम् चले यी कैसिन जिन्गी ।
मनै होके फेंन काहे डरैना नारीनके जात ।।
यातनासे भरल बतिन जीवन दुःखसे सजल बतिन् ।
काटैसे किल घेरल ठाँउमे अटैना जिना नारीनके जात ।।
शिक्षा दुर बतिन करिया भाँडा लग्गे बतिन् ।
जोन्हियाँ हस् फे दुःख लजैना नारनिके जात ।।
कलमके नाउँमे चद्धतुवा दब्ला गुज्ना घुमाइ पर्ना ।
सुप्पाहे किताब बनाके चाउरहे केरैना नारीनके जात ।।
–रामचरण कुश्मी चौधरी ‘एकल यात्री’