डुनियाँमे कहुँ नै भेटैबो

दिपक चौधरी "असिम"
२९ पुष २०७९, शुक्रबार
डुनियाँमे कहुँ नै भेटैबो

गजल
छोर्के जैबो महिन टुँ जिट्टि नै पैबो ।
खोज्बो इ डुनियाँमें कहुँ नै भेटैबो ।

खुस नै रहबो डुर होके महिनसे टुँ,
पियाके आघे अपन लजर झुकैबो ।

सेजिया टुँ सजैबो चितामे मै जरम्,
मिल्जैम् माटिमे टुँ महिन भुल जैबो ।

बात जब चलि प्यारके इ डुनियाँमे,
याद आइ मोर प्यार आँस टुँ झरैबो ।

सपना मिलि संगे बिटाइल दिनके,
अकेलि रो-रोके अपन मन बुझैबो ।

धनिसे नाता जोर्बो गरिब डेख्के टुँ,
धनके माटमे बिग्रि यार टब पछ्टैबो ।
दिपक चौधरी “असीम”
कैलारी २ बसौटी, कैलाली

डुनियाँमे कहुँ नै भेटैबो

दिपक चौधरी "असिम"